सोमवार, 22 जून 2015

'अच्छे दिनों का योग '



'अच्छे दिनों का योग'

सदियों से हमने योग किया
सदियों सूरज को ताका है
सदियों ज्योतिष की ऑंखों में
खुद को मापा है,आँका है।

लेकिन बेकारी,भूख कभी
ना मिटी कभी,ना घटी कभी
अच्छे दिन किसके योग हुए ?
बतलाओ किसका घाटा है ?

होरी कर्जे में बिंधा हुआ
गोबर को मिलता काम नहीं,
झुनिया को नहीं आसरा है
धनिया को है आराम नहीं।
.
जो सूदखोर करते पहले
सरकारें करती वही काम,
जीते जी कर्ज नहीं चुकता
धरती हो जाती है निलाम।


जीने का कोई योग नहीं
मरने का योग बताओ जी
दिन अच्छे आपके देखें हैं
अपने दिन कहॉं दिखाओ जी।

अब और नहीं भरमाओ जी
कुछ तो थोड़ा शरमाओ जी
अमरीका या जापान,जहाँ भी
मिले ढूंढ कर लाओ जी ।

वादा था पंद्रह लाख मिलेगें
मिली नहीं फूटी कोडी
ठग गयी हमें काली,सफेद
दाड़ी वालों की ये जोड़ी।

वैसे जो थोड़ी बहुत कसर
लुटने पिटने में बाकी है,
उसको भी पूरा करने को
अंदर तक ताका झांकी है।


सोचा न कभी यूँ फैलेगा
व्यापक व्यापम का  रोग यहाँ
इसकी चपेट से बच जाएँ
दिखता है ऐसा  योग कहाँ ?



हे राम बचाना तुम ही अब
ये भक्त तुम्हारे दुष्ट बड़े
ये अपनी तोंद फुलाते हैं
खाते रहते हैं पड़े पड़े।

हमको बतलाते योग बड़े
खुद करते कोई काम नहीं
भूखों से रोटी छीन रहे
मेहनत का देते दाम नहीं।




मुरझाये अपने स्वप्न सभी
सिर पीट पीट कर रोते हैं
कैसे होंगें दिन और बुरे
अच्छे दिन ऐसे होते हैं ?
----- अमरनाथ मधुर

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