शनिवार, 4 अप्रैल 2020

आलेख -सावरकर

आप सावरकर को कितना जाानते हैं। यह भी जानिये..................
हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे सावरकर ने जेल से रिहाई के लिए अंग्रेजों को कई प़त्र लिखे, उन्होंने अंग्रेजों का समर्थन करने व रिहा होने के लिए अनेक दलीलें दीं, यह तो सभी जानते हैं मगर उन्होंने ने बलत्कार के केस में ब्रिटेन में जेल भी काटा था, अंग्रेजों से पेंशन भी ली थी और आजाद भारत में नेहरू को दो दो माफी नामे लिखे थे, यह कम लोग जानते हैं। इसीलिए बहुत से लोग उन्हें माफीवीर व अंग्रेजों का चाटुकार कहते हैं। ।
सावरकर ने 22 जनवरी 1948 को पहला पत्र मुम्बई के तत्कालीन पुलिस कमिशनर के माध्यम से नेहरू जी को लिखा था, जिसमें उन्होंने वादा किया था कि “ जब तक सरकार चाहेगी वे सामाजिक और राजनैतिक कामों से रहेंगे“। इसी पत्र के एक सप्ताह बाद गांधी जी की हत्या हो गई। दूसरा पत्र सावरकर ने 13 जुलाई 1950 में नेहरू को जस्टिस एम सी छागला और जस्टिस गजेन्द्र गडकर के माध्यम से लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि “मैं कोई सामाजिक और राजनैतिक काम नही करूंगा। मैं खुद को बॉम्बे के घर मे बंद रखूंगा। मैं हिन्दुम हासभा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देता हूँ”।
नेहरुजी ने दोनो माफीनामे कूड़ेदान में फेंक दिए थे..सावरकर नेहरुजी से मिल कर भी माफी मांगना चाहता था..पर सरदार पटेल ने नेहरुजी को मना कर दिया था। इसलिए कि दासेनों ही नेता सावरकर को वे बड़ा षडयंत्रकारी और अंगरेजपरस्त मानते थे।
यही नहीं, जब सावरकर जब अंदमान में कैद थे, अंग्रेजों से उनकी बार्ता चल रही थी तो रिहाई के बाद अंग्रेजों ने उनकों ६० रू मासिक पेंशन भी दिये। यही सावरकर लंदन में पढाई के दौरान एक अंग्रेज महिला लाइब्रेरी कर्मी जिसका नाम गूडी था, के रेप के अरोप में जेल गये। सावरकर ने अपने एक मित्र को इसके बारे में पत्र लिखा कि इस बात को छुपाया जाये। कई इतिहासकारों ने इसका दस्तावेजी हवाला दिया है। इसके अलावा उन्होंने पैसे के लिए अपनी पहली पत्नी को भी छोड़ दिया था। इस बारे में फिर कभी लिखेंगे। फिलहाल हैरत और दुख की बात है कि इसी सावरकर को देश की एक जमात वीर और राष्ट्रवादी कहती है।

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