रविवार, 17 मई 2020

कायदा-ए-इश्क

            कायदा-ए-इश्क
तुमसे दिल की बातें करना दिल की बेअदबी है
दिल  की  बेअदबी  है  हुस्न  की  बेअदबी है।।


अभी तुम्हारे चाहने वाले मिलते डगर डगर हैं
अभी तुम्हारी आँखों  में सपनों के कई नगर है।
अभी  तुम्हारे  यौवन  में  चंचलता है मस्ती है
अभी तुम्हारे लिये मौहब्बत चीज बडी सस्ती है।

अभी इश्क का राज बताना इश्क की बेअदबी है।
ईश्क  की  बेअदबी  है,  हुस्न  की  बेअदबी  है।।


जिस दिन ये यौवन ढल जाये, आँखें भी पुरनम हों
जिस दिन अपनों की नजरों में चाहत भी कुछ कम हो।
जिस दिन हो एहसास गमों का जीवन पर पहरा है
तुम  देना  आवाज  हमारा  प्यार  बहुत  गहरा  है।

अभी वफा की बातें करना वफा की बेअदबी है।
वफा  की  बेअदबी  है,  इश्क  की बेअदबी है।।


तुमसे जब कुछ कहना चाहा तीखे नयन तने हैं
फिर  भी  तुमको  लेकर मैंने सपने कई बुने हैं।
सपनों  पर  क्या पहरा होगा सपनों में जी लेंगें
तुमसे जो कुछ कहा नहीं खुद अपने से कह लेंगें।

गैरों से कुछ मन की कहना मन की बेअदबी है।
मन  की  बेअदबी  है  इश्क  की  बेअदबी है।




                                 

बहुत दिन हुये हैं कोई गीत गाये
जमाना है गुजरा हमें मुस्कराये।

कबीरा की चाकी बनी जिन्दगानी
सलामत न बाकि कोई भी निशानी
नहीं कोई अपना सभी हैं पराये।

न कोई खुशी है नहीं कोई गम है
मेरी जिन्दगी तू बडी बेरहम है
फर्क क्या पडेगा कोई आये जाये।

बहुत दूर दिल से सभी रिश्ते नाते
हमीं ने न चाहा तो वो क्यूॅं निभाते
अकेला कहाॅं तक कोई लौ लगाये।

अजब जिदगी है हमें रास आयी
लगे फीकी फीकी ये सारी खुदायी
कहीं नूर बरसे, कहीे रंग छाये।

             















                   मैं नदी का नीर हूॅं
मैं अभावों की कडी चट्टान में पैदा हुआ,                                   
मैं नदी का नीर हूॅं रूकते नहीं मेरे चरण।

पर्वतों की मैं उपेक्षा पा के भी बढता रहा,                     
पत्थरों से ठोकरे खाता रहा, लडता रहा।                       
देखकर मेरी विजय बुलबुल ने छेडी तान है,                           
बरगदों की डालियों ने झुक दिया सम्मान है।                     
हर तरफ से मिल रहा है स्नेह का आमंत्रण।।

पर अभावों की जो दुनियाॅं मेरे पीछे जी रही,                       
मुझको देने को गति धरती के सब दुख सह रही।               
कर चुका सकंल्प मैं अब ऋण मुझे उसका चुकाना,                 
दीनता का हर मरूस्थल है मुझे उपवन बनाना।                 
चाहता हूॅं मैं धरा परस्वर्ग का हो अवतरण।।

कोई नभचारी नहीं कर पायेगा मेरा अहित,                               
मैं धरा का सुत हूॅं मेरी शक्ति है उसमें निहित।                                 
है यही विश्वाश मेरा ध्येय है मेरा यही,                       
हम धरा वासी गगन को छोड अब पूजे मही।                       
ये न हो सिद्धान्त केवल हो सभी का आचरण।।

ओर होंगे जिनके मन में कुछ कृपा की चाह है,                 
न मुझे वर चाहिये न शाप की परवाह है।                                 
मैं डगर अपनी बनाता चल रहा प्रत्येक क्षण,                 
साक्षी तट के तरू हैं साक्षी हें बालू कण।                       
गीत हूॅं संगीत हूॅं युग धर्म युग का जागरण।।

     
                  सर्द हवाओं का मौसम

ये मौसम पतझर का मौसम पीले पत्ते  झर जायेंगे ।
सर्द हवाओं के झोंकों से  उड़कर दूर बिखर जायेंगे ।

इस  मौसम में धुन्ध भरी है
                  फैल रहा चहुँ ओर कुहासा
पाला मार रहा फसलों को,
                 ठिठुर रही अंकुरित दिलासा

ताक रहे हैं आसमान को, सूरज भैया कब आयेंगे।

कोटर में छुप गये कबूतर
                   मुर्गी दडबे में  है सोती
सर्दी में बन्दर की देखो
                   कैसी हालत खस्ता होती

दाँत मंजीरा बजा रहे हैं, भजन कीर्तन ही गायेंगें।

दृष्टिदोष का भ्रम होता है,
                    साफ़ नहीं  देता दिखलायी
 घर से कौन बाहर को निकले
                    सो जाओ मुँह ढॉंप रजाई

उत्सव हो या शोक सभायें, फिर देखेंगे, फिर जायेंगे।

                 



     अवकाश का प्रार्थना पत्र

नम्र निवेदन करता हूँ  मैं कुछ दिन का अवकाश मिले।

सुबह हुई और टिफिन उठाया
                         बैठ गये बस में जाकर,
फिर भी दप्तर देर से पहुंचे
                         ऐसा होता है अक्सर,
श्रीमती जी घर पर डॉंटे दप्तर में उपहास मिले।

इच्छाओं के मॉग पत्र
                    सब दबा जरूरत के नीचे,
खींच रहे जीवन की गाडी
                              रोनी सूरत को लेके ,
हॉंप रहे हैं तेज दौडते बस थोडी सी सॉंस मिले।

दिल पर भारी बोझ हो जैसे
                          तन मन ऐसा थका हुआ,
जैसे जाता बैल हो कोई
                         परवशता में बिका हुआ,
खुशियॉं ढूंढे चारों कोने चारों बहुत उदास मिले।

खाना दाना, नाच दिखाना,
                           गाना पंछी का जीवन,
पिंजरे में भाता है तुमको,
                         पर उसका भी करता मन,
खुली हवाओं में पर खोले उडने को आकाश मिले।

                         
                             
 
                                 
आभारी  हूँ  मुझे बुलाया,                                                                      और बुलाकर मान बढाया,                         
मानूँगा  दस्तूर   तुम्हारे,                                                                            पास बिठाओ या फिर द्वारे,
जब तक चाहो साथ रहूँगा ,                                                                             लेकिन अपनी बात कहूँगा ।
ये  सारे  मुस्काते  चेहरे,
ज्यों गुलाब के फूल घनेरे।
मुझको भी अच्छे लगते हैं,
अपने सब दिल में बसते हैं।
पर जो सबसे पीछे रहते,
जीवन के सारे दुख सहते,
उनकी ऑंखें का गंगाजल, 
पूज रहा मेरा मन हर पल।
मैं उस जल के साथ बहूँगा,
उनके मन की बात कहूँगा।
श्रंगारी  गीतों  की  धुन  में,
घुंघरू पायल की रूनझुन में।
सबका तन नर्तन करता है,
हॉं मेरा भी मन रमता है।
लेकिन आहें और कराहें,
कुछ बेकस,लाचार निगाहें,
खुशियों का घर घेर रही है,
ऐसे  मुझको  टेर  रही   हैं,
जैसे  उनके  साथ  दहूंगा,
हरदम उनके साथ रहूँगा द्य
तुमको तो कितनी सुविधायें,
रहती  कब  ऐसी  दुविधायें।
क्या चिन्ता क्यूँ लौग मर रहे,
बन मनमौजी मौज कर रहे।
पर ये मौज मजे तब तक हैं,
जब उनको खुद पे शक है,
जोर औ जुल्म मिटा सकते हैं,
दुनियां  नई बना सकते हैं।
मैं  उनमें  विश्वास  भरूँगा,
उनके हक की बात कहूँगा।
                 


बरसों साथ रहे हम तुम,                                         
बैठे हैं क्यों अब गुमसुम।                                     
किसे पता था इतनी जल्दी                                           
नाता तोड रहे हो तुम।
अभी मनायी थी दीवाली,                                                   
ज्योत जगायी थी उजियाली                               
संग तुम्हारे खेली होली                                         
रंग सजाये यादें भोलीं                                                     
अभी विदा का नाम न लेना                                           
खुशियों को विश्राम न देना                                   
सपने अभी जवान हुये हैं                                               
चाहत के मेहमान हुये हैं।
तुमको विदा कहूॅं तो कैसे                                             
तुमसे जुदा रहूॅं तो कैसे                                           
विदा नहीं कहता मेरा मन,                                         
विदा नहीं कहता घर आॅंगन,
दामन थाम रहे गलियारे,                                         
खिडकी परदे डयोडी द्वारे।                                         
झूम रही बौरायी तुलसी                                           
पुस्तक फाईल खाली कुरसी।
सब दिखते हैं खोये खोये                                           
छू दो तो लगता अब रोये,                                     
मुझसे देखा नहीं यह जाता,                                   
इनसे तोड सकोगे नाता।
ये टेरेंगें सूने मन को,                                       
अलसाये मुर्झाये तन को                                             
इनसे नहीं विराम मिलेगा                                             
सोते में भी काम मिलेगा
ये होंगें तो हम भी होंगें                                         
ऐसा नहीं जुदा हम होंगें                                             
जब चाहों आवाज लगाना                                               
पहले जैसा हमें बुलाना
हम तुमको तैयार मिलंेगें                                           
दिल वाले दिलदार मिलेंगें।                                             
ऐसे नहीं दबा लें दुम,                                           
बरसों साथ रहे हम तुम।
                                                 

















रूपसी तेरी इन आँखों में मधुमय संसार समाया है।

कितना चाहा था दूर रहूॅं
            इन आँखों के आकर्षण से
कितना चाहा था दूर रहूॅं
              मैं प्रेम जाल के बन्धन से
पर इन आँखों के जादू ने कैसा मुझको उलझाया है।

न जाने कितने युग बीते
               मदहोश हुआ है जग सारा
सब झूम रहे हैं मस्ती में
               ऐसा है नशा प्यारा प्यारा
युग बीत गये खाली न हुआ कैसा सागर लुढकाया है।

मुझे स्वर्ग दिखायी देता है
                तेरी आँखों के दर्पण में
मधु भीना प्यार झलकता है
                  तेरी आँखों के नर्तन में
ये प्यार तुम्हारा सच्चा है या मुझको बस बहकाया है।
                               


हो उठा है मन विकल अब उन्हें पुकार लूॅं
और सारी जिन्दगी उसपे ही निसार दूॅं ।

सोचता हूॅं सिर चढाउॅं राह की क्यों धूल मै
पत्थरों की प्रतिमा पर क्यों चढाउॅं फूल मैं
मन उसी का आज है कि आरती उतार लूॅं।

कौन कह रहा चमन में महक उठे फूल हैं
मुझको तो लगा था ये कि तीक्ष्ण हुये शूल हैं
शूल सी है जिन्दगी भी फूल से सवाॅंर लूॅं।

मैं करीब जितना आया दूर उतना वो गया
फासला न कम हुआ वक्त सब गुजर गया
मुस्करा के कह रहे वो बस उन्हें निहार लूॅं।

अब अकेली न कटेगी जिन्दगी की राह ये
हसरतों से न मिटेगी जिन्दगी की चाह ये
तब मिलन से होगा क्या जब साॅंस भी उधार लूॅं।

                       


आज 'मधुर' अनजान हो गये |

दिल के देवालय मे अब तक हमने की थी जिसकी पूजा
अपना माना इस दुनियाॅं में जिसके सिवा ना कोई दूजा
आज उन्हें मैं कैसे पूजूॅं देव मेरे इन्सान हो गये।                   
                               आज 'मधुर' अनजान हो गये |


इस महफिल में उस महफिल में गीत बनाकर जिसके गाउॅं
करूॅं कामना रोज मिलन के सपनों में जिसके खो जाउॅं
आज उसी का उत्तर पाकर विचलित सब अरमान हो गये।
                                आज 'मधुर' अनजान हो गये |

जिसकी आँखों से आंसू मेरे गीतों ने ढलकाये थे
मुस्कानों की बात अलग है सुख के सागर छलकाये थे
आज उसी की आँखों में हम अपनी ही पहचान खो गये।
                                  आज 'मधुर' अनजान हो गये |
                                                   



मेरे सनम हाॅं आज नही पर कल होगी पहचान तुम्हें
बस्ती बस्ती गली गली जब कर दूॅंगा बदनाम तुम्हें ।


अब हमने सागर की लहरों में कश्ती को छोड दिया
साहिल से हम दूर हुये भॅंवरों से रिश्ता जोड लिया
अब हम भेजेंगे तूफाॅं से जीने का पैगाम तुम्हें ।


काॅंटों का अभ्यास है लेकिन चोट सुमन की सहेंगें कैसे
घाव देह के भर जाते हैं दिल के घाव भरेंगें कैसे
इतने पर भी मन नहीं होता कह दूॅं मैं पाषाण तुम्हें ।


सोचा था चलते चलते जब राहों में थक जायेंगें
जुल्फों का साया कर दोगी बाॅंहों में सो जायेंगें
कोई तो करना ही होगा हमराही स्वीकार तुम्हें।

                             




गीतों से भेज रहा प्यार का पैगाम
महफिल के मीत तुझे सौ सौ सलाम।

धीरे धीरे गुलशन में आने लगा पतझर
क्हाॅं गये विहग वृन्द कहां गये सहचर
पर्वत पे छाने लगी सिन्दरी शाम।

वंशी की धुन पे क्या गाता है बन्जारा
जीत गया प्यार में  जो अपना दिल हारा
चाहत में बीत गयी जिन्दगी तमाम।

आज मधुर मौका है मयखाना खोल
देखें तो कौन देगा मदिरा का मोल
छलक छलक जाता है यादों का जाम।
                 








नमन तुम्हें शत बार
स्वेटर का यह ताना बाना
अपने दिन के भाव सजाना
सीखे तुमसे कोई छिपाना
अपना प्यार अपार।

जन्म दिवस की आयी बारी
तुमने कहा यह भेंट हमारी
महकादो जीवन की क्यारी
देकर अपना प्यार ।

 पर प्यार तुम्हें मैं कर न सकूॅंगा
दिन अपना यह दे न सकूॅंगा
यह दुपिणा मैं सह न सकूॅंगा
रोक नयन के वार ।

सोंप चुका जिसको अपना मन
सहा नहीं जिसने अपना बन
उसके जो मैं शत शत जीवन
गाउॅं गीत हजार।
                   





किसी के आंसुओं में आज
मेरे आंसू मिल जायें|

चमन को आज मैं भूला
     पवन को आत मैं भूला
          गगन भी आज मैं भूला
                      उडा हूॅं पंख फैलाये।
कोई रोया यहाॅं आकर
         कोई रोया वहाॅं जाकर
             हमारी अँखियाँ रो रोकर
                          बनी सावन की घटायें।
हमें जब नींद न आती         
       पता नहीं रात क्यों आती
             क्या आधी रात ही भाती
                                   जो उठकर गीत बनाये।
जमाने रोक न राहे
      भरेंगें कब तलक आहें
            सनम फैला भी दो बाहें
                   रहा हमसे नहीं जाये।
                                     



मुझे तुम प्यार करने दो

चमन से हो के जब गुजरा
यही बुलबुल ने गाया है
नया सौरभ नया गुॅजन
नया मधुमास आया है
अनूठी प्यार की गाथा
मेरे दिलदार रचने दो|

चुनरियाॅं ओढ़  सतरंगी
उठी हैं नाच तितलियाॅं
संग देने को वृक्षों ने
बजायी मस्त बाॅंसुरियाॅं
समाॅं संगीत का छाया
थिरकता मन मचलने दो|

सुमन कोई नहीं मेरे लिये
यदि पास में तेरे
बता आयेंगे काम कब
उगे जो शूल घनेरे
ओ उपवन तीक्ष्ण काॅंटों से
मुझे श्रृंगार करने दो।
                   





आ जाओ सनम तुम एक बार
युग युग से जो सपने देखे हो जायेंगें पल में साकार।

आँचल में तुम्हारे दूॅंगा टाॅंक
मैं अपनी आँखों  के मोती
क्या प्यार की समता कर सकती
मन्दिर के दीपक की ज्योति
आवाज पहुॅंचती क्या तुम तक मैं कब से तुमको रहा पुकार।

मैं दूर खडा देख करता
मुस्कान तुम्हारे होटों की
सहलाता दिल का दर्द रहा
मधुमय पीडा थी चोटों की
यह गीत चषक लेकर मुझसे मधु पीडा पीता जग हजार।

तस्वीर तुम्हारी है दिल में
अपने मन को समझाने को
अब और बचा बाकी क्या है?
इस सूनेपन में गाने को
ये गीत अमर हो जाते फिर जो तुम गा देती एक बार।
                               


यह कैसा मधु मास है साथी यह कैसा मधुमास?

फूल खिले हैं लेकिन उनकी खुश्बू कहाॅं खो गयी?
पंछी तो गाते हैं अनेकों बुलबुल कहाॅं सो गयी?
यह फागुन का ही है महीना कैसे हो विश्वास?

यह कैसा मधु मास है साथी यह कैसा मधुमास?

साारे साल सोचता था मैं ऐसा फागुन आयेगा
बुलबुल नग्में गायेगी जब फूल फूल मुस्कायेगा
पतझर बनकर बिखर चुकी है अपनी तो हर आस।
यह कैसा मधुमास है साथी यह कैसा मधुमास?

कहाॅं गयी वो ख्वाबों की मलका, सपनों की रानी
मेरा मन पागल हो ढूॅंढे कहाॅं छिपी है वो दीवानी
आज धरातल से टकराये सपनीले आकाश।
यह कैसा मधुमास है साथी यह कैसा मधुमास?









ओ सुनहरे स्वप्न मेरे!
आ उजाला भी न देखा खा गये तुमको अंधेरे।
ओ सुनहरे स्वप्न मेरे! ओ सुनहरे स्वप्न मेरे!


दीप आकाशी बने कुछ जो तिमिर में झिलमिलाते
दीप मन्दिर के बने कुछ आरती में जगमगाते
अब बुझाने को चली हैं आंधियां झंझा झकोरे।
                           ओ सुनहरे स्वप्न मेरे!

एक सतरंगी वो उपवन बस जहाॅं मधुमास ही है
एक सतरंगी वो दुनियाॅं चाॅंद तारे पास ही हैं
मन भला भ्रमित हुआ क्यों देख देख शत शत रूप तेरे।
                           ओ सुनहरे स्वप्न मेरे!

गीत मधुर प्यार के गा जिन्दगी एक साज है
कौन रोकेगा तुझे तू बादशाह बेताज है
ख्वाब ये कहकर गये सब हौसले हैं पस्त मेरे।
                            ओ सुनहरे स्वप्न मेरे!





आज धरातल से टकराये
उडते पंछी बेपर के |
मेरे सपने बिखर गये यूँ
जैसे पत्ते पतझर के।
ओ कुहरीली साॅझ बता दे
कहाॅं खो गया पथ मेरा?
गहन तिमिर घिरता जाता है
कहाॅं डाल दूॅं मैं डेरा?
लघु दीप की किरण कोई
पथ मेरा आलोकित कर दे
मन्जिल मेरी बहुत दूर है
बढने की आशा भर दे
आह निराशाओं के बादल
कैसे बढते जाते हैं ?
जाने किस धरती से
मेरा स्वर्ग लूटने आते हैं
कोई कह दे उनसे जाकर
स्वर्ग न मैं लुटने दूॅंगा
जब तक तन मे प्राण शेष हैं
स्वप्न न मैं मिटने दूॅंगा।
               


सुनाउॅं गीत कौन सा हें सारे गीत प्यार के |
सुनोगे गीत बन्धु तुम सुनोगे गीत प्यार के।

अभी सुबह के स्वप्न में मदहोश सा मैं हो रहा
खली जो आँख देखता हूॅं अब तो शाम ढल गयी
ल्गा की जैसे हाथ से ये जिन्दगी फिसल गयी
मैं राह में खडा रहा वो रास्ता बदल गयी
मुझे न इतना होश था कि कुछ कहूॅं पुकार के।

वो दिन भी थे जब गीत गाती थीं हजारों बुलबुलें
वो दिन भी थे जब भोंरे गुनगुनाया करते फूलों पर
वो दिन भी थे तितलियाॅं मॅंडराया करती फूलों पर
सितारे आसमाॅं के लुटाते थे मोती फूलों  पर
चमन में छा गयी खिजाॅं ये गीत हैं बहार के।
                         





गीत गाता है बन्जारा कोई सुनो।
वे ना राहे रहीं फूल महके जहाॅं अब है सहरा कोई हमसफर तुम चुनो।
                                         गीत गाता है बनजारा कोई सुनो।|
     

तितलियों के परों से रहे खेलते
                      तुमने भॅंवरों की गुनगुन सुनी है बहुत।
तुमने बुलबुल के नग्में सुने हैं बहुत
                            दिन गुजारे हैं गुलरूान में तुमने बहुत।
राह रोकी थी तब भी जब आये यहां राह रोकेंगे अब भी ये काॅंटे सुनो ।
                                               गीत गाता है बनजारा कोई सुनो।|

तुमने ख्वाबों में बरसों तराशा जिसे
                             संग मरमर की आज वो मूरत कहाॅं?
जिसको पाने की खातिर लुटया सभी
                           उसको पाने की आज वो हसरत कहाॅं?
वो सपने बिखर भी गये है तो क्या, जीना है फिर से संतरंगी सपनों बुनो।
                                                  गीत गाता है बनजारा कोई सुनो।|

ये मुकाम भी पहले पडाव सा है
                     जिसको मंजिल समझकर ठहर तुम गये।
दूर लहराता रेत का सागर है वो
                      जिसको दरिया समझकर बहक तुम गये।
गैर की रहनुमाई में भटके बहुत तक, मंजिल पानी है तो रहनुमा खुद बनो।
                                                       गीत गाता है बनजारा कोई सुनो।|

जिन्दगानी चार दिन का ही नाम है
                     चाहे हॅंस के जियो चाहे रो के जियो
फिर न माॅंगे मिलेगी कहीं बूॅंद भी
                         जब तक मयखाने मे जी भर के पियो
हम भुला देंगें सारे जमाने का गम, ये है पैगाम ए पैमाना पी के सुनो।                     
                                              गीत गाता है बनजारा कोई सुनो।|
                                       

चाहत का चलचित्र चला तो दृश्य मिलन के भी आने हैं।
जे दिल में तूफान उठा दे मुझको वही गीत गाने हैं।

भॅंवरों की गुन्जार सो गयी बुलबुल नग्मे भूल चुकी थी
इस मधुवन का हाल न पूछो ऐसे भी कुछ दिन आये हैं।
आंसू से हर क्यारी सींची लता एक न मुर्झाने दी
पतझर के मौसम में मैंने गीत बहारों के गाये हैं।

पर पतझर का ध्यान त्याग दूॅं वो मेहमान चार दिन का है
कागज के जो फल महकते अब मुझको वो महकाने हैं।

अपना यह मनदीप जलाकर मैं उतारता रहा आरती
अर्पित अपना हृदय सुमन कर मैं करता आया हूॅं अर्चना।
पर पाषाण मूर्ति ने तो मौन न तोडा क्षण भर को भी
धवल दीवारें देवालय की हॅंसती मेरी देख भावना।

मठाधीश अब तुम भी सुन लो आज रही पूजा करनी है
मुझको प्रस्तर प्रतिमाओं में इन्सानी दिल धडकाने हैं।

जाने किसको खोज रही हैं इस महफिल में मेरी आँखें ?
गीत नहीं क्यों गाने देती, बढ़ती धडकन उखडी साॅंसे?
क्यों छायी है हर चेहरे पर एक निराशा एक उदासी
वही पुरानी राहें हैं क्या मैं कल भी गुजरा थ जहाॅं से?

बासन्ती मुसकान सजाये कुछ मुखडे देखे थे मैंने
सदाबहार गुलशन से मुझको सारे चेहरे मुस्काने हैं।

                     मेरा प्यार
एक किनारा मैं हॅं साजन और दूसरा तू है किनारा
मेरा प्यार नदी की धारा मेरा प्यार नदी की धारा।

एक करीब आता है जितना दूर दूसरा उतना होता
पाने के अरमान संजोये पाने के अवसर सब खोता ।
देखो क्या नियति है देखो साथ साथ रहना है उनको
ना वो अलग हैं ना वो मिलेंगे मौन हुआ उनमे समझौता।

ऐसा ही कुछ जीवन अपना क्यूॅं नाराज सनम तुम मेरे
कैसे हाथ पकडने दूॅं मैं जब जलता है देख के सारा ।


कितनी सदियाॅं बीत गयी हैं प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में
अपनी वो संदेशवाहिनी जाने खोई कहाॅं लहर ।
आकर सब हमराज तुम्हारे बुलबुल से फूट रहे हैं
जाने क्या चर्चा करते हैं मेरी सीपी शंख इधर।

 तुम अपने हमराज संभालों वरना एक बूॅंद पानी पी
कर देगी बदनारम टिटहरी सारे जग में प्यार हमारा ।


गिरी गह्यवर वन मरूभूमि में झरने झील रूप रच रचकर
नीर वही बहता रहता है बरसा था जो बादल बनकर|
एक दिवस वह भी आता है पीछे रह जाते दोनों तट
सीने के सागर के जगती है जलधरा खुद ही जाकर|

साजन जन्में बार बार हम फिर सरिता  के कूल बने हम|
दोहराया जाये हाॅं यूॅं ही फिर प्रणय इतिहास हमारा।

             







मुझसे पूछो एक बार तुम
       मैंने गीत लिखे हैं कब कब?

प्रतीक्षा में खडे हुये जब पथ निहारते दृग पथराते
बस मुसकान किरन पाने को गिन गिन कर हर पल रह जाते।
पलक झुकाये लट बिखराये मेरे सनम चले जाते जब
हृदय से उच्छवासे उठती आँखों  में आंसू आ जाते।

बिना बहे उन अश्रु कणों की आकृति कोरे कागज पर
मेरे बनाने की कौशिश में छन्द बने बनजाने जब जब।
            मैंने गीत लिखे हैं तब तब
                         मैंने गीत लिखे हैं तब तब।


सूनी सूनी रातों में जब चींखा करता था मन मेरा
कितनीरात अभी बाकी है कितनी देर अभी है अंधेरा।
हाॅं मैं विस्मृत न कर पाया शबनम जैसे आंसू ढलकर
पूछा करते थे जुगनू से कितनी दूर अभी है सवेरा।

मैं आँखों से परखा करता काजल हेमन्ती रातों का
सरवर तीरे चीखा करता आधी रात विहंगतम जब जब।
                                    मैंने गीत लिखे हैं तब तब |
                    तब मैंने गीत लिखे हैं तब तब।


पता नहीं मौसम ऐसा था या मैं ही कुछ बहक गया था
मधुवन में जब कली खिली थी मेरा भी मन महक गया था
जब बुलबुल ने आकर गाया मेरे पास प्यार का नग्मा
जाने कैसा जादू था वो मेरा तनम न चहक गया था

फूल मिला या शूल मिले हैं मधुवन वाले इसे जानकर
भोरें हॅंसी उडाये मेरी तितलरी मुण्े चिढाये जब जब ।
मैंने गीत लिखे हैं तब
                    तब मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
                             


मेरे नुपुर की रूनझुन में मेरे हृदय का क्रन्दन है|
कैसे कब किसको समझाऊँ  मेरा जीवन भी जीवन है।

रूप का ये बाजार की जिसमें देह के व्यापारी  रहते हैं
शाम ढले महफिल सजती है रात ढले तल मन लुटते हैं|
अधरों की मुस्कान में बन्दी अन्दर कितना सूनापन है।

मैंने भी तो सपने देखे थे पैरों में पायल होगी
जिसकी छमछम से साजन की प्यारी निदियाॅं घायल होगी
आज कहाॅं मेरे सपने हैं आज कहाॅं मेरा साजन है?

स्वप्न सजीला लोक छीनकर दुनियाॅं कैसी खुश होती है
कगज के टुकडो  में मेरी अस्मत की कीमत देती है
उन कामुक धनवानों का उपवन के भौंरे जैसा मन है।
                           


शहर तुम्हारा गाॅंव हमारा

ये पथरीला शहर मुबारक सनम तुम्हें
                 मुझको मेरे गाॅंव की गलियाॅं बुला रहीं।

धुॅंआ उगलती यहाॅं मिलों की चिमनियाॅं
                  एक विषैली गन्ध हवा में छायी है  
वहाॅं खेत में पीली सरसों झूम रही
                  सोंधी महक  लिये बहती पुरवाई है                   
ये  धुॅंधियाली  शाम  मुबारक  सनम  तुम्हें  मुझको  संध्याएं बुला रहीं।                                            ये पथरीला शहर मुबारक सनम तुम्हें मुझको मेरे गाॅंव की गलियाॅं बुला रहीं।

उजला मुखडा लिये हुये हर काला दिल
                        रंग बदलता पल पल क्या विश्वास करूॅं,                                     जब मन्दिर को लूट रहा आराध्य स्वयं
                        ओर किसी से कैसी क्या मैं आस करूॅं।                                     
मीठी मीठी बात मुबारक तुम्हें सनम, मुझको भोली भाली बतियाॅं बुला रहीं।                                               ये पथरीला शहर मुबारक तुम्हें सनम मुझको मेरे गाॅंव की गलियाॅं बुला रहीं ।।                                   

तुम चाहो मुझको यूॅं जैसे गमले में यहाॅं
                               गुलाब का फूल उगाया जाता है।                                       मैं कैसे सह जाउॅं बोलो यह बन्धन
                             मुझको तो वनफूल का जीवन भाता है।                                       
ये गमले के फूल मुबारक तुम्हें सनम मुझको सूरजमुखी की कलियाॅं बुला रहीं।                                                   
ये पथरीला शहर मुबारक तुम्हें सनम मुझको मेरे गाॅंव की गलियाॅं बुला रहीं ।।                                   


आसमान में बदली के संग उडने को
                 वनपाखी सा मचल मचल जाता है मन।                                     शीशमहल  क्यों  मुझे  बनाये है बन्दी,
                      मैं न जी पाउॅंगा पिंजरे का जीवन।                                                   

ये चिडियाघर रहे मुबारक तुम्हें सनम मुझको बागों में कोयलिया बुला रही।                                   ये पथरीला शहर मुबारक तुम्हें सनम मुझको मेरे गाॅंव की गलियाॅं बुला रहीं ।।                                   

एक  अधूरी  चाह  लिये  अपने  मन में
                        वापिस गाॅंव चला जाउॅंगा मैं अपने।                                          हाॅं  मुस्काने  बाॅंध न  पायेंगी  मुझको
                      और न  बहका पायेंगें छलिया सपने।                                           

ये डिस्को औ डाॅंस मुबारक तुम्हें सनम मुझको ढोलक की थपकियाॅं बुला रहीं।                                     
ये पथरीला शहर मुबारक तुम्हें सनम मुझको मेरे गाॅंव की गलियाॅं बुला रहीं ।।                                   
                                             









ओ सनम तेरे अधर गर गीत मेरा छू सके।
स्वप्न मेरे पंख पाकर नील नभ में उड सकें।

जगमगाती दीप सी तुम झिमिलाती तारिका
तुम हृदय के सीप में हो एक मोती प्रीत का।
तुम कभी देखो इधर तो सामने हम रख सकें
स्वप्न मेरे पंख पाकर नील नभ में उड सकें।

कल्पना की डाल पर हो तुम सुमन सी मुस्कराती
मन के मन्दिर में उभरती आरती तुम गुनगुनाती।
हाॅं कभी कह दो यदि तुम साथ हम भी उड सकें
स्वप्न मेरे पंख पाकर नील नभ में उड सकें।

तुम नदी की लहर सी हो बुलबुलों सी तुम विमल
उत्स आभा का लिये तुम या किसी निर्झर का जल।
जो तुम्हारे साज ओ सरगम गीत को स्वर दे सकें।
स्वप्न मेरे पंख पाकर नील नभ में उड सकें।







कौन सुनेगा मेरा गीत ?
कोई चेहरा तो हो ऐसा जो अपना सा हो प्रतीत।
कौन सुनेगा मेरा गीत ?

ये चेहरे असली या नकली इसको कौन बता सकता है
हर इन्सान चतुर इतना है सब कुछ यहाॅं छुपा सकता है।
किससे सीखूॅं चेहरा पढना पढना इन आॅंखों की भाषा
तन तक कोई पहुॅंचे शायद मन तक कैसे जा सकता है?

ओ मुसकानों के जादूगर तुम खुद ही समझा दो ना अब
ऐसा न हो सम्मोहन में जीवन हो जाया व्यतीत ।
                              कौन सुनेगा मेरा गीत ?

मैंने जब भी चाहा पतझर को मधुमास बना डाला है
झरने वाली कली में खिलने का विश्वास जगा डाला हैं।
मैं बढना बन्द कर सकता हूॅं क्रूर कहकहों की आंधी का
जब भी चाहा जहाॅं भी चाहा मौसम वहाॅं बदल डाला है।

मेरे छोटे से जीवन में जाने कितने अवसर आये
जब अन्दर से हार गया और गया बाहर मैं जीत।
                             कौन सुनेगा मेरा गीत?

आने दो कल को आने दो बनकर आयेगा कल आज
उसको भी सिर पर रखना है फिर कोई ऐसा ही ताज।
मेरे तरन्नुम पर झूमेगी फिर सारी अन्जुमन ये
फिर मधुमय सरगम छेडेंगें मेरे नग्मों पर ये साज।

दो गगरी नयनों की लेकर भरने आउॅंगा फिर मैं
मेरे रूप् के सागर तट पर भून न जाना ओ मन मीत।
                                         कौन सुनेगा मेरा गीत?
                               




सब कुछ सूना सूना लगता मेरे साजन बिना तुम्हारे।

सूखे पेड की डाल पर बैठी
                  गुमसुम गोरैया एकाकी।
कुहरीली पतझरी शाम में
                  साथी रहा न कोई बाकी।

सहचर सभी छोडकर उड गये किसको रोये कैसे पुकारे?
सब कुछ सूना सूना लगता मेरे साजन बिना तुम्हारे।


उस असीम नीले अम्बर में
                    उडती हुई कपासी बदली।
ऐसी लगती महानगर में
                 घूम रही ज्यों कोई पगली।

चुंधियाँ देते आँखें जिसकी,चमचम करते स्वर्ण नजारे।
सब कुछ सूना सूना लगता मेरे साजन बिना तुम्हारे।


एक आवाज सुना करती हूॅं
                   कुछ अनजानी कुछ पहचानी।
धीमे धीमे कहती है जो
                      भूली बिसुरी प्रेम कहानी।

कब तक मन को बहलायेंगें स्मृति के स्वप्न सहारे।
सब कुछ सूना सूना लगता मेरे साजन बिना तुम्हारे।


अब तो कोई चमत्कार ही
                      तुमसे भेंट करा सकता है।
जीवन के सूने मन्दिर में
                      कोई दीप जला सकता है।

क्या तुम फिर से आ पाओगे मेरे साजन मेरे द्वारे?
सब कुछ सूना सूना लगता मेरे साजन बिना तुम्हारे।



फिर बहक उठी कलम आज मेरे हाथ की
गीत प्यार का कोई अब लिखा जायेगा|

स्वप्न तिरने लगे नयन की झील में
मुख कमल सा कोई मन रिझाने लगा।
जिसकी किरणें भी हैं नर्म गर्म साॅंस सी
ऐसा सूरज कोई पास आने लगा।

अब लजाने लगी मुस्कराती कली
पंखुरी का मुकुट अब सॅंवर जायेगा ।

बज उठी बाॅंसुरी जब अधर पर कोई
मन को राधा वही याद आने लगी।
हृदय मोहन विकल गोपियाॅं मस्त हो
मुॅंह चिढाने लगी मुॅंह छुपाने लगी।

चुंधियाने लगी रूप की चाॅंदनी
फिर से बादल कोई उसको सहलायेगा।

मन मचलने लगा फिर किसी की चाह में
कल्पना के महल फिर से सजने लगे।
जिन्दगी प्यार है जिन्दगी प्यार है
हर किसी से यही फिर से कहने लगे।

फिर से कहने लगे प्यार के ही लिये
अब जिया जायेगा अब मरा जायेगा।





           
न सुबह का गीत हूॅं, न मैं हूॅं शाम की गजल।
सूनसान जिन्दगी में कोई तो करे पहल।।

दूर तक चला अकेला राह में थका नहीं
पर किसी भी मोड पर न हमसफर मिला कहीं।
ठिठक-ठिठक कर बार बार चेहरे पढता मैं गया
आँख में किसी की लेकिन प्यार था कहीं नहीं।

जिस किसी से भी मिला वों अजनबी सा ही मिला
बेरूखी को देखकर ये नयन हो गये सजल।|

एकला चलो अरे तुम एकला चले चलो
कितनी बार अपने मन को मैंने समझया मगर।
प्यार का खुमार भी तो जिन्दगी में चीज कुछ
मुझको मिलता ये जबाब तू किधर है बेखबर।

सोचता ही मैं रहा मिली वजह कोई नहीं
सपने क्यों न मैं बुनूॅं खडा करूॅं न क्यों महल ?

मैं भी शाहजहाॅं हूॅं दिल का मैं भी जहाॅंगीर हूॅं
फिर क्यों मेरे वास्ते ही नूरजहाॅं कोई नहीं।
ख्वाब मेरा सूना सूना ताज अधूरा क्यों है
इसको क्यो मुमताज कोई देखकर रोई नहीं।

हर किसी से है गिला सिला कोई मिला नहीं
बात मेरी है असल हर शख्स पर कहे नकल।|




       
मीत प्रणय के गीत अधूरे तुम बिन गाउॅं तो क्या गाउॅं?

कैसे भूलूॅं स्वप्न सुनहरे तुमको पाने के जो देखे ?
मुझको क्या मालूम की मेरी किस्मत में न सुख के लेखे?
मैं एकाकी कोई न साथी पीर हृदय की किसे सुनाउॅं ?

तुमने भी कब दिया है अवसर मन की बात अधर पर आये
प्राण तुम्हारे पग जब देखे बढते हुये डगर पर पाये
मैं सहमा सा खडा सुकेशी राह तुम्हारी देखे जाउॅं।

एक बार तो कभी सुनयने विनत नयन उॅंचे कर लेती
वाणी से जो कह न सका वो आँखों में ही तुम पढ लेती
भरे भुवन में नैनन से बातों की तुमको याद दिलाउॅं।

खडा हुआ मैं उन राहों पर पुनः सुदर्शने स्वप्न ये देखूॅं
एक बार तुम पथ से गुजरो मैं बढ आगे तुमको टोकूॅं
बासन्ती रूत सुनो कोकिले चुप क्यों तुम मैं समझ न पाउॅं।

पर ये कैसे हो सकता है बढती हुई समय की धारा
आँखों के ये आंसू ले ले लौटा दे वो वक्त हमारा
दो मन प्राण एक होते जब नहीं धरा पर पडते पाउॅं।
                             







आज प्रिये फिर सूनापन है घेर रही है याद तुम्हारी
जैसे यमुना तट वंशी पर टेर लगाये हो बनवारी।

काश विकल मन समझ ये पाता बीता वक्त न फिर आता है
चार कदम के हमराही से क्या जीवन भर का नाता है ?
मैं पागल हूॅं जो मधुभीनी बातों में अब तक सोया हूॅं
द्वार तुम्हारा दूर रह गया साथ चल रहा सन्नाटा है।

मेरे सपनों के महलों प्राण तुम्हारी सूरत हॅंसती
मेरी अँखियाँ सींच रही हैं जिसके आँगन की फुलवारी।

कहीं राह में किसी मोड पर शायद हम फिर मिल जायेंगें
पता नही विश्वास यही क्यूॅं दिल में समा गया है गहरा।
कितनी दूर चला आया हूॅं मैं एकाकी अपने पथ पर
तुमको क्या मालूम कि मैं हूॅं कब कितना किस मोड पर ठहरा।

जब भी दी आवाज तुम्हें तब गूॅंज उठा खालीपन मेरा
थके कदम बढता जाता हूॅं बढना जीवन की लाचारी।

कैसा होता वो पथ चुनते साथ-साथ जिस पर हम चलते
मैं थक जाता तुम मुस्काती, तुम मुसकाती तो मैं गाता।
और शाम जब गहरा जाती, हरी दूब पर पाॅंव पसारे
चादर ओढ सितारों वाली तुम सोती मैं भी सो जाता।

लेकिन प्राण यहाॅं कब संभव स्वयं चुने जीवन पथ अपना
रहबर राह नियत करता है राही रोये उमरिया सारी।


                                   
मैं आज अधूरे गीतों की कतरन बटोर
लिखने बैठा हूॅं गीत तुम्हारे नाम प्रिये!

वो गीत जिन्हें मैं साथ तुम्हारे गा न सका
जिनके गाने को अधर तडफते हैं मेरे।
वो स्वप्न जिन्हें साकार नहीं कर पाया मैं
जिनको जीवन के स्याह अंधेंरे हैं घेरे।

उन गीतों के गायन का होगा नहीं छोर
वो सपने होंगे फिर से ललित ललाम प्रिये!

क्या हुआ जो मेरे पथ में कुछ काॅंटे ज्यादा
क्या हुआ जो मेरे पथ पर कोई नहीं साया?
बस चार कदम तो दूर रही हो तुम मुझसे
ये बात अलग मैं दूरी कम न कर पाया।

पर मैं निराश होकर बैठूॅं क्यूॅं किसी ठौर
देखूॅंगा कब तक भाग्य रहेगा वाम प्रिये!

मैं गीत तुम्हारे गाता बढता जाता हूॅं
फिर क्यों एकाकीपन का हो एहसास मुझे।
वो भटक गये जो हमराही बन साथ चले
मैं देख रहा उनके मन के अरमान मुझे।

मेरे मन में आशा भरती हर नयी भोर
कुछ निकट तुम्हारे बतलाती हर शाम प्रिये!

विश्वास आज भी है इतना मेरे मन को
यदि तुमने मेरा गीत आज भी सुना कहीं।
आवाज तुम्हारी भी उसमें मिल जायेगी
तुमको पायेगा रोक कोई अवरोध रहीं।

क्योंकि हृदय में उठे प्रीत की जब हिलोर
बन्धन समाज के हो जाते नाकाम प्रिये!
                       

                                   





ओ मन के मीत हृदय की प्रीत अधर के गीत तुम्हारे नाम।
सुनहरी सुबह तुम्हारे नाम, रूपहली रात तुम्हारे नाम ।

तुम्हारे लिये गगन में गीत
                     सुनाते पंछी उडें हजार
तुम्हारे लिये खिले हर फूल
                     बहेे बधुवन में मलय बयार

विहग की चहक सुमन की महक पवन की बहक तुम्हारे नाम।
ओ मन के मीत हृदय की प्रीत अधर के गीत तुम्हारे नाम।

तुम्हारे लिये उगे नित चाॅंद
                  सुधा के रजत कलश ढुलकाये
तुम्हारे लिये उषा की किरन
                      स्वर्ण राशि बरसाती आये
गुलाबी गात सजा प्रभात लाये सौगात तुम्हारे नाम।
                                 


अधूरे ख्वाब

अब भी ये मेरा मन प्यासा का प्यासा है
रूप ओर प्रीत की चाहता दिलासा है
मैंने जो पूजा के फूल संजोये हैं
लगता है सबके सब वो रोये रोये हैं
दीपक बाती भी राख हो जायेगी
पूजा की थानी में कालिख रह जायेगी
ओ सौन्दर्य की देवी मरे ख्वाबों की मलिका
मेरे मृदु सपनों में रंग भरने को आ
दुनियाॅं से बेपरवाह देता हूॅं आवाज
गीतों की धडकन बन सरगम के स्वर साध
जीवन के मरूथल में गंगा का जल लेकर
पायल छनकाती आ मधुरस डुलकाती आ
तेरे आने से सब रजनीगंधा के सुमन
फिर से खिल उठेंगें महकेगा घर आँगन
तू जो न आयी तो ख्वाब अधूरे ही
रात की स्याही से पराजित हो जायेंगें
बरसों अंधेरे से एक एक किरन के लिये
संघर्षरत थे जो थक कर सो जायेंगें
गा गा कर तुमको आवाज लगाता हूॅं
एकाकी पीडा में तुमको बुलाता हूॅं
 ओ मेरी शहजादी बीती है रात आधी
सपने सतरंगी कर उजले उजले रंग भर
जीवन की परिभाषा कुछ पाने की आशा
सपने ही देते हैं अपने जो होते हैं
बाकि पराया सब अनछुई छाया सब
उनकी न बाते कर आ सपनों में रंग भर
ख्वाब जो मेरे हैं तुझ बिन अधूरे हैं।










ओ मेरे अभिशापित जीवन तुम आशा की डोर न तोडो।
उद्वेलित मन हार मान यूॅं, साहस ओ विश्वास न  छोडो।

सब को कब मिलती सब खुशियाॅं रह जाते अरमान अधूरे
ऐसा कोई नहीं जगत में जिसके स्वप्न हुये सब पूरे।
तुम क्यों दिल छोटा करते हो सत्य यही है इस दुनियाॅं में
तुम भी इस दुनियाॅं का प्राणी सच्चाई से मुॅंह न मोडो।

ओ भावुक मन सपनों से क्यों जोड रहा है नाता गहरा
ज्ञात हो गया जो दुनियाॅं को लग तायेगा इस पर पहरा।
पैर टिके हैं जिस धरती पर उसको देखो उसको समझो
सोने के मृग जैसे सपने तुम उनके पीछे मत दोडो।

वो अपराधी रूप प्यार के स्वपन सजाये जो आँखों में
अधर मधु की बात करे जो गंध बसाये हो साॅंसों में।
तुमने यही गुनाह किया था फिर क्यों सजा न मिलती तुमको
नहीं दोष यह ओर किसी का दीवारों से सर न फोडो।

जब तक स्वप्न देखने वाले ध्यान नहीं देंगे धरती पर
तब तक ये दुनियाॅं वाले  भी रहम नहीं खायेंगें उन पर।
टूटे दिन टूअे सपनों को जग आंसू घर में सुख जोडो।
                                     





रूप रंग रस गंध नहीं पर जीखे शूल लिये है जो
ऐसे किसी कुसुम को पाकर बोलो मुझको क्या करना।


सच है मैं शूलों का आदि फूलों की पहचान नहीं
छालों वाले पग पाते हैं मधुवन का सम्मान नहीं।
पर मंजिल के पास पहुॅंचकर हाथ न आया कुछ भी तो
जीवन भर रिश्ते छालों का का बहुत कठिन होगा भरना।

मैं एकाकीपन का प्रेमी सन्नाटों का साथी हूॅं
अंधियारे से हार गया जो उस दीपक की बाती हूॅं।
यहाॅं स्नेह का नाम नहीं है उजियारा हो तो कैसे ?
संभव नहीं किसी दीपक का ऐसे जीवन भर जलना।

ओ मेरे सतरंगी सपनों अब मुझको आवाज न दो
पंख कतर डाले हैं मेरे तुम मुझको परवाज न दो।
जब उडता था आसमान में अच्छी लगनी थी दुनियाॅं
जब से पैर टिके धरती पर एक मुसीबत है जीना।
                               






ओ मेरे अभिशप्त जिन्दगी तेरे लिये कहीं न प्यार।
तू फूलोें के स्वप्न सजाती जग देमा काॅंटों के हार।                 

सावन आया फागुन आया शरद पूर्णिमा की रजनी
पर कब मन का सुमन खिला है अंधियारे में हुई कमी ?
जाने क्यों खुशियाॅं सब मेरे द्वारे से ही लौट गयी
मेरे आँगन घोर उदासी ठहरी हर मौसम हर बार।

जैसे हर मौसम हर पाहुन गम का गले लगाया है
वैसे ही इसको अपना लो यह जीवन का साया है।
अब साये से दूर भगना केवल एक नादानी है
दूर भागने से साये का ज्यादा होता है विस्तार।

सपने सच होने से पहले अगर टूटकर कर बिखर गये
बुरा न मानो इससे भी कुछ दिन जीवन के निखर गये।
जो सच हो जाते सब सपने सारा जग होता बैरी
जीना मुश्किल हो जाता फिर पहले ही जग खाये खार।
                                 




चाहे बदनाम करे ये जग या काॅंटों से भर दे मेरा मग
प्रियतम की नगरी से पहले मेरे पग न यकने वाले।

मेै एकाकी पथ भी दुर्गम बरगद की कोई छाॅंव नहीं
मैं जिस पथ पर बढता जाता उस पर मिलना न गाॅंव कहीं
मेरे विश्वासों की छाया, मेरे अरमानों की बस्ती
बढते जाने का सम्बल है, पड जायें पाॅंवों में छाले।

कुछ कर्म मेरे कुछ भाग्य मेरा जो मेरा हर सपना झूठा
पर उनसे तो बेहतर ही है जिनका दिल अब तक न टूटा।
उनको होगा मालूम ही क्या पीर प्यार की होती है?
कैसे लिखता कवि गीत यहाॅं सबके दिल को छूने वाले।

ओ मेरे भाग्य विधाता बस ज्यादा मत इतना कर देना
जो भी मेरे पथ पर आयें उनको भी ऐसा वर देना।
मन हो तो नाचे निर्जन में गाये सूनेपन में भी वो
उसकी स्वर लहरी को सुनकर विरही जन शीतलता पा लें।
                                   






आज सनम हम मिल न सकेगें जग बैरी है अपना सारा
पर निराश मत हो जाना तुम आने वाला कल है हमारा।

अपने पर विश्वास अगर है बढो न देखो पाॅंव के छाले
मिलना है तो मिल जायेंगें क्या कर लेंगे दुनियाॅं वाले
दूर बहुत तुम पर इससे क्या आँखों में है अक्स तुम्हारा।

आह सुहाने कितने वे क्षण सपनों में जब तुम आती हो
जैसे मन के क्रीडाॅंगन में धवल चाॅंदनी छा जाती हो
देवदूत सा इठलाता है मन उजियारा तन उजियारा।

सदियों से यह रीत जगत की प्रेमीजन मिलने न पायें
ऐसा वक्त कभी न आया फूल प्यार के खिल मुस्कायें
इतने पर भी हर मौसम में फूल प्यार का खिला न हारा।

यहाॅं नहीं मिल सके अगर दो प्यार भरे दिल वहाॅं मिलेंगें
असमय ही मुर्झाने वाले फूल प्यार के वहाॅं खिलेंगें
स्वर्गिक सुख और स्वर्गिक तन मन, स्वर्गिक होगा मान हमारा।।
                                   
                                   


























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