रविवार, 31 मई 2020

माथे पर रखे न होते अगर धर्म के झण्डे
सोचो ठाली बैठे रहते कठमुल्ला और पण्डे |
और सियासी बाजीगर भी हमको नहीं लड़ाते
एक बराबर होता हमको फ्राई डे और संडे |


सिर्फ कुल्हाड़ी का कसूर ना पेड़ों के कटने का 
कुर्सी की भी हवश रही कुछ कद ऊँचा करने का |
और हमारी ख्वाहिश ने भी कम आराम ना चाहा 
ए सी ही मजा लिया शीतल समीर झरने का |

तुमने कपड़ों की ही पहचान करी है अब तक
हमने किरदार से पहचान लिया है तुमको I
लश्कर ए तैयबा हिज्बुल मुजाहिदीन नहीं
सबका सरदार हमने मान लिया है तुमको I

बाज बैठा सामने है, सोच पर पहरा घना है,
किस तरह से फिर परिन्दा चहचहाये जोर से।
बात इतनी सी समझना कौन भारी बात है?
इक नज़र उसको ज़रा तुम देख तो लो गौर से ।

टिम टिमा रही दीपिका इधर, उस ओर दिया है बुझा हुआ
इस ओर रौशनी प्रखर हुई,उस ओर अन्धेरा घना हुआI
तम में घिरते गिरते पड़ते कीचड में सनते जाते वे 
इस ओर बगावत का झंडा ऊंचा दिखता है तना हुआ I 

 बगावत के उन्हें तुम गीत गाकर क्यूं डराते हो?
मौहब्बत के तरानों से भी जिनका दिल दहलता हैं।
करें वो लाख कौशिश पर हकीकत जानते हैं वो
बड़ा भी बांध ढह जाता कि जब दरिया मचलता है।

नया बरस नया दिवस नया नया विहान हो
नये बरस में आपके नये स्वप्न महान हों ।
ना बंदिशे कहीं पे हों, ना हों कहीं रूकावटें
उड़ान हौसलों की हो, खुला सा आसमान हो।


बदल जाये अगर मौसम नया ये साल हो जाये
किसी की आंख न हो नम, मुबारक साल हो जाये ।
बहुत खुशियों की न चाहत गमों से बस मिले राहत
हमारी जिन्दगी इतने से ही खुशहाल हो जाये।



उलझते हैं सुलझते हैं,सुलझकर फिर उलझते हैं
ये पेचो ख़म तुम्हारी जुल्फ के कितना मचलते हैं.
हमारा दिल भी दिल है कोई पत्थर तो नहीं है ये 
इन्हें थोड़ा संभालो तुम,तो थोड़ा हम संभलते हैं .

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