बातें नहीं रहीं
बेरी के पके बेर की, बाते नहीं रहीं
बैठक की और घेर की, बाते नहीं रहीं |
भूले हैं सभी फूल सी, खिलती कपास को
अब बाजरे के ढेर की, बातें नहीं रहीं |
बिस्मिल,सुभाष और भगत सिंह भुला दिए
आजाद जैसे शेर की, बाते नहीं रहीं |
बहुमंजली इमारतें अब हो गयी खड़ी
आँगन की छत,मुडेर की बातें नहीं रहीं |
तकली गयी, चरखा गया गाँधी चले गये
अब सूत और अटेर की बातें नहीं रहीं |
व्यवसाय पॉप्लर का, सफेदे का हो रहा
गुड़हल की और कनेर की बातें नहीं रहीं |
'गंभीर' अब तो लूटते हैं छीनतें हैं लोग
अंधों की और बटेर की बातें नहीं रहीं |
डा० ईश्वर चन्द 'गंभीर'
१४७/१पांडव नगर (मेरठ)
मो. 94555570
[ डा० ईश्वर चन्द 'गंभीर' वरिष्ठ कवि हैं ग्राम्य जीवन पर आपकी यह लोकप्रिय कविता है |]
बेरी के पके बेर की, बाते नहीं रहीं
बैठक की और घेर की, बाते नहीं रहीं |
भूले हैं सभी फूल सी, खिलती कपास को
अब बाजरे के ढेर की, बातें नहीं रहीं |
बिस्मिल,सुभाष और भगत सिंह भुला दिए
आजाद जैसे शेर की, बाते नहीं रहीं |
बहुमंजली इमारतें अब हो गयी खड़ी
आँगन की छत,मुडेर की बातें नहीं रहीं |
तकली गयी, चरखा गया गाँधी चले गये
अब सूत और अटेर की बातें नहीं रहीं |
व्यवसाय पॉप्लर का, सफेदे का हो रहा
गुड़हल की और कनेर की बातें नहीं रहीं |
अंधों की और बटेर की बातें नहीं रहीं |
डा० ईश्वर चन्द 'गंभीर'
१४७/१पांडव नगर (मेरठ)
मो. 94555570
[ डा० ईश्वर चन्द 'गंभीर' वरिष्ठ कवि हैं ग्राम्य जीवन पर आपकी यह लोकप्रिय कविता है |]
एकदम सटीक कविता है.डा.ईश्वर चन्द्र जी को धन्यवाद.
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