
( कवि वीरेन्द्र 'अबोध' की प्रसिद्ध ' बापू का खत' है ' बापू का खत' । कविता में बात बस इतनी सी है कि बाप को पैसे की आवश्यकता है किन्तु किसान की जिन्दगी जीने वाले बाप का आत्म सम्मान उसे किसी ओर से तो क्या स्वंय अपने बेटे से मदद मॉंगने में भी आडे आ रहा है। इसी कश्मकश में वह अपनी बात कहने के लिये जो भूमिका बनाता है उसमें ग्राम जीवन की वैसी ही झलक देखने को मिलती है जैसी हम प्रेमचन्द के साहित्य में पाते हैं। वीरेन्द्र अबोध की अधिकॉंश कविताओं में ग्राम्य जीवन की दुश्वारियों के ऐसे ही चित्र मिलते हैं इसीलिये उन्हें 'कविता का प्रेमचन्द' कहा जाता है। )
बापू का खत
बेटे! कन्धे के फावडे ने कमर को झुका दिया
सोचा था शहर जाकर कुछ तू पैसे कमायेगा
गिरवी धरा अपना पुश्तैनी मकान छुडायेगा,
तेरी पढायी के लिये ही तो कर्जा करा था,
तेरी बाबा की तेरहवीं में मकान गिरवी धरा था,
मेरी जिन्दगी क्या वो तो आधी अधूरी है,
मकान के लिये महाजन की गले पर छुरी है।
मकान के लिये जालिम ने ऐसा दॉंव पेंच किया
कि मैंने अपना वो पीपल वाला खेत बेच दिया,
खेत बेचकर मैं कई दिनों तक बहुत रोया,
मैंने घर की इज्जत बचायी खेत खोया,
दुःख है उसने खेत को टुकडों में बॉंट दिया
अब तो बेटे जिन्दगी का बडा ही बुरा हाल है,
मेरी उसकी बात क्या सारा गॉंव कंगाल है।
तुझे पता है भाईओं ने बटवारे में कैसी दगा दी,
तेरे ताउ ने खलिहान में आग लगा दी
अब कि बार बुआई का भी समय गुजर गया,
क्योंकि ऐन वक्त पर काला बैल मर गया
ऐसी खेती बाडी से तो मन उब गया,
पका पकाया धान पानी में डूब गया।
अब जाडे में आकर कच्चे कोठे की छत पाटी है,
बरसात तो रो रोकर कच्चे छप्पर में काटी है
हमारे लिये कंगाली में गीला आटा हो गया,
और मझला बीमारी में सूखकर कॉंटा हो गया
उसकी बीमारी में तो तेरी मॉं भी टिक गयी,
उसकी बीमारी में वो गाय भी बिक गयी,
इन सब बातों ने परिवार की कमर तोड दी
मजबूरी में छोटू ने भी पढाई छोड दी
भोले शंकर ने भी न बेडा पार लगाया
अब तो घर की बडी बुरी कहानी हो गयी,
तेरी सबसे छोटी बहन भी सयानी हो गयी,
अब तो हर दम घर में उसी का ही जिकर रहता है,
हमें तो उच नीच होने का फिकर रहता है।
तेरी मॉं रात दिन मुझसे ही लड रही है,
कि देखो जमाने की हालत बिगड रही है,
अब तू अगर इसमें कुछ हाथ बटा दे
तो जल्दी से तेरी बहन उठा दें।
अब किसकी किसकी विपदा तुझको ओर सुनाउ
किस किस के तुझको दुःख गिनवाउ
अब तो गॉंव में रोज रोज पुलिस आती है
किसी न किसी की कुडकी कर ले जाती है,
किसी के घर में एक किसी के आधी रोटी है,
धन्नू की बेटी पर परधान की नजरें खोटी हैं
गंगू के घर में परधान ने मंगू बसा दिया
और गंगू को रहजनी के केस मे फंसा दिया
सारे गॉंव में बेटा गरीबी घर कर गयी,
दीनू की मॉं भूख से तडफ कर मर गयी
गंगू की भैंस को जंगल में सॉंप डस गया
और तेरा काका कत्ल केस में फॅंस गया,
बेईमान छंगा ने भाई को कच्चा चबा लिया
ओर मंगू ने कविजी का घेर दबा लिया।
ओर मंगू ने कविजी का घेर दबा लिया।
छज्जू का दॉंया हाथ गडॉंसे में कट गया।
कलवा ने धनिया की लडकी भगा दी,
धनिया ने कलवा के छप्पर मे आग लगा दी।
वैसे तो चोरों से बचने के लिये गॉंव में पहरा होता था,
मलवा मक्का की रखवाली को मचान पर सोता था,
पहरा रहते गॉंव लुट गया हम सब हार गये
वे जाते जाते बेचारे कलवा को मार गये ।
एक दिन जमींदार के लडकों ने बडा चाला किया,
घास लेने गयी हीरा की बेटी से मुह काला किया,
बेचारी घर रात को आयी हर कपडा उतार दिया,
विरोध करने पर उसके भाई को भाले से मार दिया।
अब तो बेटे सब भूखे हैं रखवाला भगवान है
मेरी उसकी बात क्या सारा गॉंव परेशान है।
गले लगते भी किसी का चेहरा नहीं खिलता
आटा किसी घर से भी उधार नहीं मिलता।
तुझको लिखता हूँ मेरी चिटठी पर ध्यान धरना,
जैसे भी हो कुछ रूपयो का इन्तजाम करना।
- वीरेन्द्र 'अबोध'
आद. मधुर जी, चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंइसके माध्यम से आपकी लेखनी से रूबरू होने का मौका मिलता रहेगा.
सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं, आपकी और अबोध जी की ये खत वाली रचनाएं तो एक दूसरे की पूरक ही नज़र आती हैं.
बधाई स्वीकार करें.
बहुत सुन्दर लेखन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
www.satyasamvad.blogspot.com
www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com