श्रद्धेय गुरूवर! आज मैं अपने जिगर के
टुकडे को थारे हवाले कर रहा हूँ
उसके ज्ञान के चछु खोलना,
ताकि वह दुनिया के सच को देख सके,
सामना कर सके और सच को जी सके,
उसे सिखाना कि वह खेले और
अपना पोत खत्म होने पर भागे नहीं,
दूसरों का खिलाये।
उसे बनाना एक अच्छा इन्सान, उसे सिखाना कि
वह खाये मॉं के हाथ का बना खाना,
उसकी वाणी को विष नहीं मधु की चाशनी
में पाग देना ,उसमें काक नहीं कोकिला बसे।
ओ गुरूदेव! उसे पढना, लिखना और सीख दे
तर्क वितर्क करना, उसके दिमाग में भगवान के
भ्रम का कूडा मत ठूसना, उसे बचा लेना
अंध विश्वास ,पाखण्ड और ढपोर शंख के गहण से,
उसमें ठूस देना साहस, बलिदान और संघर्ष के सूत्र ।
उसे भागना नहीं, उसे दुनिया को बदलना सिखा देना।
वह सिर्फ बखेडा ही न खडा करें
बल्कि विकल्प भी पेश करे ओ गंरूदेव उसमें
जल,जंगल,जमीन और र्प्यावरण को महफूज
रखने वाले प्राण फूंक देना, वह लोक परलोक की नहीं,
इसी लोक की बाते करे मत बनाना उसे
स्वार्थी, खुदगर्ज और आत्म केन्द्रित, वह आलोचना
ही नहीं समालोचना और आत्मालोचना भी करे,
उसे लैस कर देना ज्ञान विज्ञान और तर्क खोज
के हथियारों से, वह औरत को महज दासी,
वेश्या ,देवदासी और भोग्या ही न समझे,
वह दहेज, भ्रूण हत्या, वधुदहन,और दहेज हत्या
के रोगाणुओं से मुक्त उसे नारी को जननी,
बहन, पत्नि, मित्र, सखी और साथी, मानना भी
जरूर सिखाना। ओ गुरूवर! उसे मत बनाना
लकीर का फकीर, वह सच्चाई से न भागे,
पूरे सच को जाने और स्वीकारे, उसे मत बनाना
कंजूस , और अपने ज्ञान और विद्या को
सर्व कल्याण हित में इस्तेमाल करना सिखाना,
उसे धर्मो के बारे में जरूर बताना पर उसे धर्मान्ध
न बनने देना, उसे बुद्ध, कबीर, नानक और
गॉंधी की पाठशाला में जरूर ले जाना, वह सवालों से
ना भागे न बचे बल्कि पढे और ढूंढे उनका
जबाब। हे प्रिय गुरूवर! उसे टीपू, जफर,
नाना और लक्ष्मी का पाठ जरूर पढाना,
उसे कोपरनिकस, गैलिलियो,
डारविन और आईंसटीन की
प्रयोगशाला की सैर जरूर कराना।
उसका मार्क्स, विवेकानन्द,
अम्बेडकर और लेनिन से साक्षात्कार
जरूर करवाना, दर्शन करा देना उसे आजाद,
सुभाष और भगतसिंह के भी
उसे आजादी, इन्कलाब और
जयहिन्द की लैबोरेट्री में अवश्य ले जाना।
श्रद्धेय मान्यवर! उसे बचा लेना
मुनाफे की महामारी से
उसे शोषण, अन्याय मक्कारी से
नफरत करना जरूर सिखाना,
उसे किसान, मजदूर, गरीबों,
शोषितों,वंचितों, उत्पीडतों
दलितों और पिछडों का मददगार
और हमसफर जरूर बनाना,
उसे दया माया, ममता और
सम्यता के पाठ से महरूम मत रखना,
उसे सिखा देना कि वह सब कुछ
गवॉंकर पैसा बनाने की हवस का गुलाम न बने,
उसे जातिवाद ओर सम्प्रदायवाद के
रोगाणुओं से बचने की
कला में माहिर जरूर कर देना,
उसकी रक्त शिराओं को कर देना मुक्त,
भ्र्रष्टाचार के कैन्सर से
और हॉं उसे मानव द्वारा मानव का
खून चूसने की सच्ची कहानियॉ
सुनाना मत भूल जाना।
हे वन्दनीय गुरूवर!
उसे एक झण्डा देकर विश्व भ्रमण
पर भेज देना जिस पर लिखा हो - अमन,
प्रेम, मैत्री, भाईचारा और इन्कलाब,
जिसके चोले पर अकिंत हो आजादी,
जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और गणतंत्र के गीत,
जिसका नारा हो- जल, जंगल
और जमीन, सत्ता और धन में ही सबकी हिस्सेदारी,
सबकी प्रगति और
विकास पर हो सबका हक।
.......मुनेश त्यागी
[मुनेश त्यागी जनवादी लेखक संघ मेरठ के जिला सचिव हैं। आप विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में बराबर लिखते रहते हैं। ]
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