ख़त यानि कि पत्र आजकल के बच्चों ने शायद देखे ही न हो | लिखना तो वे क्या जानें | मोबाइल और इमेल के जमानें में ख़त को कोंन पूछता है | एक ज़माना था जब परदेश गये पिया या पिता या पुत्र के पत्र की इंतजार में आखें डाकिये के दर्शन को दरवाजे पर लगी रहती थी | डाकिये का भी बड़ा मानसम्मान था | विवाहित पुत्री और प्तेमी जनों द्वारा चोरी छिपे अपने मन की बात अपनों तकपत्रं के माध्यम से ही पहुंचाई जाती थी | साहित्य में भी पत्र साहित्य अलग शैली और विधा हैं | आज पत्र कोई नहीं लिखता | पिछले दिनों मैं सम्पादक के नाम पत्र लिख रहा था तो मुझे पत्र लिखते देखकरएक सज्जन ने बड़ा ही आश्चर्य दर्शाया | मुझे पत्रों से बड़ा लगाव है | इधर कुछ पत्र कवितायें पढने को मिली हैं | उन्हें एक जगह सहेज रहा हूँ |
बात -बात में
मैंने लिख दिया है
श्रीमती जी को ख़त
कि आगे मैं ख़त नहीं पत्र लिखूंगा
आप भी पत्र ही लिखिएगा
नहीं तो यत्र तत्र सर्वत्र
फैले देशभक्त
आपको देशभक्ति का प्रमाण पत्र
नहीं देंगें
मैंने लिख दिया है
कि पत्र कि शुरुआत में
मेरे महबूब कि जगह लिखिएगा
मेरे प्राण प्यारे
आपकी जानेमन कि जगह लिखेयेगा
आपकी प्राण प्यारी
नहीं तो भाषा के नाम पर
अपने महबूब का
गला घोट दिया जायेगा
मैंने लिख दिया हैं
अपनी माँ को ख़त
कि अब लखते जिगर कि जगह
लिखना
कलेजे का मांस
या शब्द कोष से दूंड़कर
अन्य कोई नया शब्द
जिसका अर्थ
समझाने के लिए
पंडित नारायण चतुर्वेदी के पास जाना पड़े
मैंने लिख दिया है
अपने मित्र 'गोपाल तन्हा' को ख़त
कि शायरी भुला डालो
आलमारी मैं पड़ी
प्रेमचंद कि किताबें जला डालो
जिन्दा रहने के लिए
मैंने लिख दिया है
कि भाषा के नाम पर
खून का खेल खेलने वाले हुकुमरानों
हम रहें या न रहें
इतिहास तुम्हें माफ़ नहीं करेगा
मैंने लिख दिया है |
--------- धीरेन्द्र श्रीवास्तव
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