बाहर बस न चले कोई तो
चल औरत को मारे घर में
अपनी सारी खिसयाहट को
औरत पर ही उतारे घर में
चल औरत को मारे घर में |
इससे बढती शान
मूछ के बाल खड़े रहते है
बाहर कद कितना हो छोटा
घर में बड़े रहते हैं
आसमान सर पे रख दिन में
ही दिखला दें तारे
चल औरत को मारे घर में |
बाहर जितने धक्के खाए
घर में उतने अकड़े
बहार कुछ न हाथ लगे
बीवी की चोटी पकड़े
कंगाली का पीकर ठर्रा
अपनी शान बघारे घर में
चल औरत को मारे घर में |
आँख पे पट्टी बांधी हमने
जो चाहे सो लूटे
भाड़ में जाये दुनिया और घर
नशा न अपना टूटे
बच्चो की हर एक ख़ुशी के
बन जाये हत्यारे घर में
चल औरत को मारे घर में |
----------ब्रजमोहन
अशिक्षा अज्ञान से ग्रस्त प्राणी का सटीक चित्रण है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .
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