शनिवार, 19 मार्च 2011

''होली के पर्व से जुडी एक कथा यह भी ''

           असुरराज हिरन्यकश्यप  की बहिन होलिका और पडौसी राज्य के राजकुमार एलोजी एक दूसरे को दिलो जान से चाहते थे  | होलिका भी अत्यंत रूपवती  थी |  दोनों  का विवाह निश्चित  हो गया|  हिरन्हयकश्यप  अपने पुत्र के  प्रभु प्रेम भक्ति    से व्यथित था | उसने पुत्र  वध का   संकल्प किया किन्तु अपनी साजिश को दुर्घटना  का रूप दिया  |उसने अपनी बहिन होलिका को पुत्र को आग में जलाकर मारने की आज्ञा दी | होलिका सहमत नहीं हुई  | तब हिरन्यकश्यप ने धमकी दी कि यदि वह ऐसा  नहीं करेगी तो वह एलोजी से उसका विवाह नहीं कराएगा  | होलिका को अग्निकवच प्राप्त था | विवश होकर उसने प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्निप्रवेश किया | यही दिन होलिका और इलोजी के विवाह के लिए भी तय किया गया था | इलोजी बारात  लेकर नियत समय पर पहुंचे |लेकिन इससे पूर्व होलिका दहन हो चुका था|  वहां जाकर जब उन्हें होलिका दहन का पता चला तो वे बहुत व्यथित हुए| इलोजी पर पहाड़  टूट पडा  | उसके बाद उन्होंने  विवाह नहीं किया  और योगी का वेश धारण कर निकल पड़े | राजस्थान में आज भी एलोजी की बरात निकाली जाती है और उनके जोगी बनने के  गीत गाये जाते हैं | पता नहीं क्यों होलिका से जुडी यह  प्रेमकथा जनमानस ने भुला दी, सिर्फ राजस्थान में इलोजी को याद किया जाता है | यदि होली के पर्व से जुडी  अन्य बहुत सी दंतकथाओं को स्वीकार किया जाता  है तो यह कथा  स्वीकार  करने   से भी कुछ   बिगड़ने वाला  नहीं है |

3 टिप्‍पणियां:

  1. राजस्थान की दन्त कथा से परिचित करने हेतु धन्यवाद.
    वैसे सारी ही दन्त-कथाएं भ्रामक हैं और शोषण को परिपुष्ट करती हैं.'होला'संस्कृत का शब्द है जिस अर्थ है-अधपकी (ह व् न द्वारा )गेहूं,जो,चना की बालियाँ जिनके अभी सेवन से आगे लू से बचाव होता है.संस्कृत में हिरन का अर्थ स्वर्ण और कश्यप का बिछौना तथा अक्ष का आँख होता है.मतलब यह वे लोग जो धन के ढेर पर सो रहे हैं और जिनकी आँखें धन पर ही लगी हैं =ब्लैक के व्यापारी,स्मगलर,ब्योरोक्रेट,भ्रष्ट नेता आदि इनका आज भी संहार करने की जरूरत है तभी प्रहलाद =प्रजा (जनता)का आह्लाद होगा.

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  2. होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...

    शुभागमन...!
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