एक मांझी रोज जब इस पार आता है,

भींगती पलकें निहारें डोलती नैया,
रात भर करवट बदलती चाँद की शैया ,
दर्द अपना पागलों सा मुस्कराता है
गीत कोई इस नदी को चूम जता है |

मौन रहना मुस्कराना , बात भी करना ,
उस छुएन का पास आना दूर तक तिरना,
चित्र कोई घाटियों का गुदगुदाता है
गीत कोई इस नदी को चूम जता है |
गीत कोई इस नदी को चूम जाता है |

भींगती पलकें निहारें डोलती नैया,
रात भर करवट बदलती चाँद की शैया ,
दर्द अपना पागलों सा मुस्कराता है
गीत कोई इस नदी को चूम जता है |

मौन रहना मुस्कराना , बात भी करना ,
उस छुएन का पास आना दूर तक तिरना,
चित्र कोई घाटियों का गुदगुदाता है
गीत कोई इस नदी को चूम जता है |
हाथ थामें हाथ भीगीं छांव के नीचे,
रेत के घर की सुरंगें प्राण को सीचें,
इस तरह का खेल कोई याद आता है |
गीत कोई इस नदी को चूम जता है |
- पियूष अवस्थी
आज जब नदी -प्रदूषण चिंता का विषय बन गया है आपका यह नदी प्रेम स्तुत्य है.
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