रविवार, 19 जून 2011

पियूष अवस्थी - गीत कोई इस नदी को चूम जाता है

एक मांझी रोज जब इस पार आता है, 
गीत कोई इस नदी को चूम जाता है | 


भींगती  पलकें निहारें डोलती नैया,    
रात भर करवट बदलती चाँद की शैया ,       
दर्द अपना पागलों सा मुस्कराता है                     
गीत कोई इस नदी को चूम जता है | 




मौन रहना मुस्कराना , बात भी  करना ,                                   
उस  छुएन  का पास आना  दूर  तक  तिरना,
चित्र  कोई घाटियों  का गुदगुदाता  है 
गीत कोई इस नदी को चूम जता है | 




हाथ  थामें  हाथ  भीगीं  छांव   के नीचे, 
रेत   के घर  की सुरंगें  प्राण  को सीचें, 
 इस तरह  का खेल  कोई याद  आता है | 
गीत कोई इस नदी को चूम जता है | 

                                           -  पियूष  अवस्थी 

1 टिप्पणी:

  1. आज जब नदी -प्रदूषण चिंता का विषय बन गया है आपका यह नदी प्रेम स्तुत्य है.

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