सोमवार, 20 जून 2011

कविता - गोली - कवि वीरेंद्र 'अबोध'


कवि वीरेंद्र 'अबोध ' ग्राम जुलेढ़ा जिला मेरठ के निवासी हैं और पेशे से किसान हैं| आपके साहित्य में किसानो और मजदूरों की व्यथा का मार्मिक चित्रण मिलता है |एक भारतीय किसान अपने पेशे, सोच, और व्यवहार में जो साफगोई और आत्मीयता रखता है कवि 'अबोध उसकी चलती फिरती मिसाल है | आपने नुक्कड़ नाटक देंखे पढ़े होंगे | कवि   वीरेंद्र 'अबोध' ने नुक्कड़ कवितायें लिखी हैं  और  उन्हें चौराहों   पर मजमा लगाकर मंजन  चूरन बेचने  के अंदाज में  चारों और घूम -घूमकर  सस्वर  पढ़ा है | जिन लोगों ने धरने प्रदर्शन में उन्हें कविता पाठ करते देखा है , वे उस द्रश्य का  अनुमान लगा सकते हैं | उनकी ऐसी ही   नुक्कड़ कविताओं में से एक कविता है 'गोली '| हिंसा के विरोध में लिखी गयी यह शानदार और धारदार कविता है | मेरा करीब तीस वर्ष पुराना  उनके साथ मित्रता का सम्बन्ध है और वे मेरे मार्गदर्शक भी रहें हैं| एक ख़ास बात मैंने यह अनुभव की कि वे लेखन और वैचारिक रूप से जितने आज प्रतिबद्ध हैं उससे भी अधिक तीस-पैंतीस वर्ष  पहले थे | उनकी लोकप्रिय  कवितायें  जैसे  कि  'देवली काण्ड' उन्होंने   तब लिखी जब वे हाई स्कुल के विद्यार्थी रहे होंगें | उनकी मशहूर कविताओं में से यह  एक कविता प्रस्तुत  है |


गोली  

सबके  अलग अलग विचार हैं अलग अलग बोली हैं, 


ये तीन  उंगलिया नहीं तीन गोली  हैं,
मैं क्या  कहना चाहता हूँ यह जानिये  
इन्हें तीन उंगलिया नहीं तीन गोली मानिए | 



देखिये  मेरा आइडिया बिलकुल ही नया  है , 
बताइये  जनाब  ये सब क्या है ?
 ये कोई  कविता नहीं शब्दों की रंगोली है, 
ये तीन उंगलिया नहीं तीन गोली हैं |                                           




आप मेरे दोस्त, मेरे अजीज,  मेरे  महबूब हैं, 
आप भी जनाब   अजीब हैं आप भी खूब हैं |
आप  कविता  पढ़  रहे  हैं   ये  जताते  हो  | 
अजीब आदमी हो उंगली को गोली बताते हो | 



चलिए दिमाग  को विचार की और मोड़िये, 

जो  हुआ   उसे   अब   यहीं   पर छोडिये | 


देखिये   इस   गोली   से   हिन्दू   मरेगा, 


इससे  सिख, इससे इसाई |एक बात बताइये मेरे भाई, 
अगर इसाई वाली गोली हिन्दू को मारी जाए, 
वही गोली सिख के सीने में उतारी जाए, 
तो क्या बदली गोली एक नया  मोड़   देगी 
यानी हिन्दू वाली गोली  सिख को छोड़ देगी  | 

आप सब चुपचाप  हैं आप सब मोन हैं 
आप में से जनाब ऐसा कोन है ? 
जो मेरी बात को गलत कहेगा | 
क्या सिख के सीने से सफ़ेद खून बहेगा ? 


क्या हिन्दू की गोली इसाई के सीने  में उतरने से नहीं डरती | 
सिख की गोली से क्या मुसलमान की माँ बहिन   नहीं मरती |


गोली जब चलती है तो चलाने   वाले का  क्या बिगाड़ती है | 
वह  किसी  की राखी  किसी का घर  उजाडती है | 
ध्यान रहे ये नफ़रत फैलाने वालो को भी लील जाती है, 
लेकिन जब यह बेगुनाहों  का सीना छिल जाती है 


जब शांत शहर में अंधाधुंध गोलियां बरसती हैं, 
बूढी हमीदा ईद  मनाने को तरसती है |

    
                                                                                
जब जिस्म छलनी करने  को चले कोई गोली ,      
आंसुओं के पानी से माताएं   मनाएं  होली |
तब बताओ  मैं अपने आप को कैसे  संभालूं | 
मन करता   है गोली बनाने  वाले को मार  डालूं | 



मगर उसके दिमाग में तो आत्मरक्षा की बात आई  थी  
उसने  तो ये गोली हिंसक  पशुओं  के लिए बनाई    थी |                                          
आज  हम  सब  तन  मन  से  इतने  बीमार हैं ,                
अहिंसा  के पुजारी  ही इस गोली के शिकार  हैं |
संस्कृति  के  रक्षकों   की  बाछें  तभी  खिलती  हैं  
जब सत्य  के बदले  गांधी  को तीन गोलियां मिलती  हैं |



जब तक लोगों के दिमाग में मजहबी  जुनून  रहेगा  |
सडकों  पर इसी  तरह से इंसानी  खून बहेगा|  


इसी  तरह लहू  से हैवानित  की फसलें  सिचेंगी, 
 इसी तरह भाई भाई के दरमियाँ  दिवार  खिचेंगी  |
हमारे  जिस्म पर ये अपनी  सियासत चलाते  रहेगें  |
 इसी तरह मासूमों  की बस्तियां  जलाते  रहेंगें  |

मेरे   दोस्तों   उठों    अपनी   मुट्ठियाँ   भीच  लो
मजहबी    सियासत   पर   तलवार  खींच  लो |
तुम बेशक अपने गिरोह में आतंकवादियों को पालो
मैं तुमसे पूछता हूँ गोली की हिमायत  करने वालो  
अगर  निकल  पड़े  दबे  कुचले  लोगों  की टोली 
और  तुम्हारे  जिस्म  में  उतारने  लगे  गोली  
तब तुममें से कोन कितनी दूर तक भगेगा 
चारों तरफ ये लोग हों तुम्हें  कैसा लगेगा|  
तो आओ इस तरह के जहनी बीमार लोगों पर आहें भरें 
और हम सब मिलकर गोली के विरोध में हस्ताक्षर करें |

        

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