शनिवार, 2 जुलाई 2011

गीत -चाँद बनूँगा -डॉ रामगोपाल 'भारतीय'



[डॉ0  रामगोपाल 'भारतीय '  सुकोमल कवि हैं | आपकी साहित्यिक  सक्रियता और सबको साथ लेकर चलने का गुण आपको लोकप्रिय  बनाता है | आप अखिल भारतीय साहित्य कला मंच के अध्यक्ष हैं और  अनेक संस्थाओं में सक्रिय सहयोगी हैं | ] 



             चाँद बनूँगा 
मत रो मॉं मैं चाँद बनूँगा मुझको रोज निहारा करना
तेरे ऑंगन में उतरूगा ऑंगन रोज बुहारा करना ।।

नन्हें.नन्हें पॉंवों से मॉं  नील  गगन  में  मैं आऊँगा 
जब.जब मुझको याद करोगी सपनों में मॉं मैं आउंगा।
मैं तो तेरा दर्पण हूँ मॉं हर पल तुझको ही देखूगा
तू रोयी तो रोउगा    मैं मुस्कायी तो मुस्काउगा|


 मत रो मॉं मैं नहीं रोऊंगा  चाहे जितना मारा करना
तेरे ऑंगन में उतरूंगा ऑंगन रोज बुहारा करना।।

निस दिन मेरी राह तकेगी मॉं तेरी ममता है भोली
तुझसे मिलने को आयेगी मेरे संग तारो की टोली|
फिर तेरे ऑंचल की ठंडी छाया में मॉं हम सोएगें
एक बार फिर हम खेलेंगें इस ऑंगन में ऑंख मिचौली|

मत रो मॉं फिर जीतूंगा मैं, मॉं फिर से तुम हारा करना।
मत रो मॉं मैं चाँद बनूँगा  मुझको रोज निहारा करना||

                                                          डॉ0 रामगोपाल भारती

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