शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

गीत-न जाने क्यूँ-यशपाल कौत्सायन


न जाने क्यूँ 


न मैं तुम्हें समझ सका न तुम मुझे समझ सके
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले।
दिलों में दूरियॉं लिये हु जिए घडी-घडी
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले।




तुम्हे ख्याल था कि मेरे वास्ते मिटे हो तुम
मुझे गुमान था तुम्हारे वास्ते जिया  हूँ मैं।                                            
तुम सुबह की चाह में जगे हो रात-रात भर 
पर तुम्हारे वास्ते जला जो वो दिया हूँ  मैं।
न मैं सुबह का रवि बना न रात बन सके तुम्ही  
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले।।


था  हमारे  बीच  में  न एक सा कहीं भी कुछ
यूं जिन्दगी बनी विषम कि हर खुशी बिखर गयी।
इक  तबाह सी  घुटन  सहेजते  रहे  हैं हम                                       
कि नोक झोंक में तमाम जिन्दगी गुजर गयी।
न अहम ही पिघल सके न हम कहीं बदल सके
न  जाने क्यूँ मगर तमाम  उम्र  साथ हम चले ।।


ओढे हु रिश्ते भला निबाहते तो किस तरह
शूल बन के रह गयी थी जिन्दगी गुलाब-सी|
प्यार की महक रही न आस की कोई किर
टूटकर बिखर गयी थी हर उम्मीद ख्वाब सी|
न  जिन्दगी महक सकी न ख्वाब ही संवर सके 
न  जाने क्यूँ मगर तमाम  उम्र  साथ हम चले ।।

अजनबी सा मौन आ रुका अधर पे एक दिन,
अनकही व्यथा लिये चले अनाम काफिले |
साथ जब न चल सके तो दायरे सिमट 
बीच में समा गये थे बेजुबान  फासले  |
न स्वयं से उबर सके न रास्ते बदल सके
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले। 
                            यशपाल कौत्सायन         

2 टिप्‍पणियां:

  1. ओढे हुये रिश्ते भला निबाहते तो किस तरह
    शूल बन के रह गयी थी जिन्दगी गुलाब-सी

    एकदम सही खा.

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  2. न मैं तुम्हें समझ सका न तुम मुझे समझ सके
    न जाने क्यूँ तमाम उम्र साथ-साथ हम चले।
    adhikansh jindagiyon ka aina hai yah rachna,bahut sundar , badhai

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