
न जाने क्यूँ
न मैं तुम्हें समझ सका न तुम मुझे समझ सके
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले।
दिलों में दूरियॉं लिये हुए जिए घडी-घडी
मुझे गुमान था तुम्हारे वास्ते जिया हूँ मैं।
तुम सुबह की चाह में जगे हो रात-रात भर
पर तुम्हारे वास्ते जला जो वो दिया हूँ मैं।
न मैं सुबह का रवि बना न रात बन सके तुम्ही
न मैं सुबह का रवि बना न रात बन सके तुम्ही
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले।।
था हमारे बीच में न एक सा कहीं भी कुछ
यूं जिन्दगी बनी विषम कि हर खुशी बिखर गयी।
इक तबाह सी घुटन सहेजते रहे हैं हम
कि नोक झोंक में तमाम जिन्दगी गुजर गयी।
न अहम ही पिघल सके न हम कहीं बदल सके
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले ।।
ओढे हुए रिश्ते भला निबाहते तो किस तरह
शूल बन के रह गयी थी जिन्दगी गुलाब-सी|
प्यार की महक रही न आस की कोई किरण
टूटकर बिखर गयी थी हर उम्मीद ख्वाब सी|
न जिन्दगी महक सकी न ख्वाब ही संवर सके
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले ।।
अजनबी सा मौन आ रुका अधर पे एक दिन,
अनकही व्यथा लिये चले अनाम काफिले |
साथ जब न चल सके तो दायरे सिमट गए
बीच में समा गये थे बेजुबान फासले |
न स्वयं से उबर सके न रास्ते बदल सके
न जाने क्यूँ मगर तमाम उम्र साथ हम चले।
यशपाल कौत्सायन
ओढे हुये रिश्ते भला निबाहते तो किस तरह
जवाब देंहटाएंशूल बन के रह गयी थी जिन्दगी गुलाब-सी
एकदम सही खा.
न मैं तुम्हें समझ सका न तुम मुझे समझ सके
जवाब देंहटाएंन जाने क्यूँ तमाम उम्र साथ-साथ हम चले।
adhikansh jindagiyon ka aina hai yah rachna,bahut sundar , badhai