बुधवार, 29 जून 2011

गीत- कायदा-ए-इश्क - अमरनाथ 'मधुर'


                                                               कायदा-ए-इश्क


तुमसे दिल की बातें करना दिल की बेअदबी है
दिल  की  बेअदबी  है  हुस्न  की  बेअदबी है।।




अभी तुम्हारे चाहने वाले मिलते डगर डगर हैं
अभी तुम्हारी ऑंखों में सपनों के कई नगर हैं
अभी  तुम्हारे  यौवन  में  चंचलता है मस्ती है
अभी तुम्हारे लिये मौहब्बत चीज बडी सस्ती है।


अभी इश्क का राज बताना इश्क की बेअदबी है।
ईश्क  की  बेअदबी  है,  हुस्न  की  बेअदबी  है।।




जिस दिन ये यौवन ढल जाये, ऑंखें भी पुरनम हों
जिस दिन अपनों की नजरों में चाहत भी कुछ कम हो
जिस दिन हो एहसास गमों का जीवन पर पहरा है
तुम  देना  आवाज  हमारा  प्यार  बहुत  गहरा  है




अभी वफा की बातें करना वफा की बेअदबी है।
वफा  की  बेअदबी  है,  इश्क  की बेअदबी है।।


तुमसे जब कुछ कहना चाहा तीखे नयन तने हैं
फिर  भी  तुमको  लेकर मैंने सपने कई बुने हैं
सपनों  पर  क्या पहरा होगा सपनों में जी लेंगें
तुमसे जो कुछ कहा नहीं खुद अपने से कह लेंगें


गैरों से कुछ मन की कहना मन की बेअदबी है।
मन  की  बेअदबी  है  इश्क  की  बेअदबी है।




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