मंगलवार, 28 जून 2011

गीत- बदनाम दुपट्टा-कुमार पंकज



 कुमार पंकज


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kumaar-pankaj115 फरवरी 1980 को ग़ज़ियाबाद ज़िले की हापुड़ तहसील के बनखण्‍डा गाँव में जन्‍मे कुमार पंकज पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्‍नातकोत्तर स्तर तक शिक्षा प्राप्‍त कर चुके हैं।
एक दशक तक सशस्त्र बल की सरकारी नौकरी में सेवारत रहने के बाद आपने इस सेवा से इसलिए त्यागपत्र दे दिया कि इसमें रहकर आप लेखन से दूर हो गए थे। वर्तमान में आप मेरठ कॉलेज के पत्रकारिता विभाग में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं।
आप अपनी पीढ़ी के रचनाकारों में अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। आपके गीतों में प्रेम और दर्शन का जो सामंजस्य दिखाई देता है, उसके चलते आपके गीत सयोग या वियोग पक्ष की सीमा को लांघ कर दार्शनिक होते दीख पड़ते हैं। आपका प्रथम काव्य संग्रह “विष को कौन पचाएगा” शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है। पत्रकारिता की भी एक पुस्तक “इलैक्ट्रॉनिक मीडिया” के नाम से शीघ्र ही पाठकों को पढ़ने को मिलेगी।
आपका विरह गीत ‘उर्मिला’ आपकी लोकप्रियता का आधार बना। देश भर के कवि सम्मेलनों के साथ-साथ आपने तमाम टेलिविज़न चैनल्स से भी काव्य पाठ किया है।
देश भर की दर्जन भर संस्थाओं ने आपकी साहित्य-सेवा के लिए आपको सम्मानित किया है।।
बदनाम दुपट्टा 
वही  कुंआरी पाजेबों की नासमझी का चश्मदीद था
वापस तुमको भेज दिया लो मैंने वो  बदनाम दुपटटा।

जिसके कारण कितने मौसम मुझसे तुम विपरीत रही हो
जिस कपडे के टुकडे से तुम बरसों तक भयभीत रही हो।
बदनामी के हर जमघट में जग ने जिसका दिया उदाहरण
रहा तुम्हारी सखियों  में जो अक्सर चर्चाओं का कारण।

जिसकी हर सलवट में है इक कठिन सफर की नरम गवाही
जिसके तन के उपर छलकी दो अमृत से भरी सुराही।
जिसकी झीनी बुनियादों पर मिला धरातल जिज्ञासा को
जिसने कोमल शिल्प दिया था होठों की अनगढ भाषा को।

जिसने स्वयं बिखरते देखा था मन की प्यासी सरहद को
जिसने अम्बर तक पहुचाया स्पर्शों की पावन  हद को ।
जिसने उकसाया रह रहकर  शरमायी सी खामोशी को 
जिसने चुनकर शब्द दिये उस धीमी धीमी सरगोशी को।

जिसमे बसा पसीना है कुछ अहसासों की तरल कहानी
जिसके तन में रमी हुई है, सॉंसों की पहली नादानी।
जिसने बादल को धरती के तन पर कहीं बरसते देखा
जिसने  थकी-थकी पलकों को सन्तंष्टि   पर हॅंसते देखा।

        तुम्हीं सुरक्षित रखना अब वो रेशम का गुमनाम दुपटटा
                                                            वापस तुमको भेज दिया है लो मैंने बदनाम दुपटटा ।।
                                                                                                                                  --कुमार पंकज
  

3 टिप्‍पणियां:

  1. कहते है कि संवेदनाओं की अनुभूति हो सकती है अभिव्यक्ति नहीं,किन्तु हमे कभी कभी कुछ ऐसे अनमोल क्षण प्राप्त हो जाते है जिनमें हम न सिर्फ अपनी संवेदनाओं को महसूस कर पाते है बल्कि उसकी सहज अभियक्ति कर दूसरों को भी उस आनंद के सागर में गोते लगाने के लिए विवश कर देते है,अपने अदभुत स्वर के धागे में शब्दों के अनमोल मोती पिरो कर ऐसे ही अनेक क्षणों को एक साथ जीवंत कर अपने गीतों से मंत्रमुग्ध कर देने वाले, अपनी एक एक पंक्ति पर 'आह'-'वाह' का महाकुम्भ खड़ा कर सबको संवेदनाओं के सागर में सराबोर कर देने वाले, चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लिए फिरते उस फ़कीर का नाम होता है कुमार पंकज ....... |

    vinit pandey

    kavivinitpandey.blogspot.com

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  2. vastav men behatar prastuti aur sundar bhav, badhai. S.N.Shukla

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  3. दुपट्टा उसने ये कह कर उठा फेंका हवाओं में
    हम हर मौसम में परदे की तरफदारी नहीं करते.... दिनेश ठाकुर..

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