हिन्दू समाज की वैवाहिक प्रथा इतनी दूषित, इतनी चिंताजनक ,इतनी भयंकर हो गयी है की कुछ समझ में नहीं आता , इसका सुधार क्यों कर हो | बिरले ही ऐसे माता पिता होंगे , जिनके सात पुत्रों के बाद भी एक कन्या हो जाए , तो वह सहर्ष उसका स्वागत करें | कन्या का जन्म होते उसके विवाह की चिंता सिर पर सवार हो जाती है और आदमी उसी में डुबकिया खाने लगता है | अवस्था इतनी निराशामय और भयानक हो गयी है कि ऐसे माता पिताओं की कमी नहीं है जो कन्या की म्रत्यु पर प्रसन्न होते हैं , मानों सिर से बाला टली | इसका कारण केवल यही है की दहेज़ की दर दिन दुनी रात चौगुनी ,पावस काल के जलवेग के समान बढती ही जाती है |
लुत्फ़ तो यह है कि जो लोग बेटियों के विवाह की कठिनाइयों को भोग चुके होते हैं ,वही अपने बेटों के विवाह के अवसर पर बिलकुल भूल जाते हैं कि हमें कितनी ठोकरे खानी पड़ी थी , जरा सी सहानुभूति प्रकट नहीं करते , बल्कि कन्या के विवाह में जो तावान उठाया था , उसे चक्रवर्ध्दी ब्याज के साथ वसूल करने पर कटिबध्द हो जाते हैं | कितने ही माता पिता इसी चिंता में घुलकर घुलकर अकाल म्रत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, कोई संन्यास ग्रहण कर लेता है कोई बूढ़े के गले कन्या को मढ़कर अपना गला छुडाता है , पात्र कुपात्र केविचारकरने का मौका कहाँ ,ठेलमठेल है |
[उध्दार]
महाराज दहेज़ की बातचीत ऐसे पुरुषों से नहीं की जाती | उनसे तो सम्बन्ध हो जाना ही लाख रुपयों के बराबर है| मैं इसको अपना अहोभाग्य समझता हूँ | हाँ कितनी उदार आत्मा थी ! रुपयों को उन्होंने कुछ समझा ही नहीं , तिनके बराबर परवाह नहीं की |बुरा रिवाज है , बेहद बुरा | बस चले तो दहेज लेने और देने वाले दोनों को गोली मार दूँ ; चाहे फांसी क्यों न हो जाए | पूछों आप लडके का विवाह करते हैं या उसे बेचते हैं ? अगर आपको लडके की शादी में दिल खोलकर खर्च करने का अरमान है , तो शोक से खर्च कीजिये अपने बल पर | यह क्या की कन्या के पिता का गला रेतिए | नीचता है , घोर नीचता |मेरा बस चले तो इन पाजिओं को गोली मार दूँ|
[निरमला ]
एक सज्जन ने , जिनका नाम बताना हम मुनासिब नहीं समझते , हमारे पास एक पत्र लिखा है , जिससे विदित होता है की आजकल अपनी कन्याओं का विवाह करने में कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है | उक्त सज्जन ने हमसे उस मुसीबत का इलाज पूछा है | हम इस विषय में इतने ही निस्सहाय हैं जितने स्वयं वह हैं | हमें तो इसका एक ही इलाज नजर आता और वह यह है की लड़कियों को अच्छी शिक्षा दी जाये और उन्हें संसार में अपना रास्ता आप बनाने के लिए छोड़ दिया जाए , उसी तरह जैसे हम अपने लड़कों को छोड़ देते हैं | उनको विवाहित देखने का मोह हमें छोड़ देना चाहिए और जैसे युवकों के विषय में हम उनके पथभ्रष्ट हो जाने की परवाह नहीं करते , उसी प्रकार हमें लड़कियों पर भी विश्वास करना चाहिए | [ प्रेमचंद के विचार , भाग-१ प्रष्ट -२६० ]
एक सज्जन ने , जिनका नाम बताना हम मुनासिब नहीं समझते , हमारे पास एक पत्र लिखा है , जिससे विदित होता है की आजकल अपनी कन्याओं का विवाह करने में कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है | उक्त सज्जन ने हमसे उस मुसीबत का इलाज पूछा है | हम इस विषय में इतने ही निस्सहाय हैं जितने स्वयं वह हैं | हमें तो इसका एक ही इलाज नजर आता और वह यह है की लड़कियों को अच्छी शिक्षा दी जाये और उन्हें संसार में अपना रास्ता आप बनाने के लिए छोड़ दिया जाए , उसी तरह जैसे हम अपने लड़कों को छोड़ देते हैं | उनको विवाहित देखने का मोह हमें छोड़ देना चाहिए और जैसे युवकों के विषय में हम उनके पथभ्रष्ट हो जाने की परवाह नहीं करते , उसी प्रकार हमें लड़कियों पर भी विश्वास करना चाहिए | [ प्रेमचंद के विचार , भाग-१ प्रष्ट -२६० ]
बढ़िया प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंप्रेम चंद जी के तीनों विचार अनुकरणीय हैं.परन्तु पढ़े-लिखे विद्वानों के लिए भी व्यर्थ और निरर्थक हैं.जब तक पोंगा पंथियों का सामजिक बहिष्कार नहीं होगा ,इन्हें लागू करना मुश्किल रहेगा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएं