सोमवार, 1 अगस्त 2011

ग़ज़ल- 'हिना रब्बानी खार' -अमरनाथ 'मधुर '

                                                                     हिना रब्बानी खार 
हिना रब्बानी खार का अखबार में फोटो देखते ही दिल बोल उठा यह तो जादूगरनी है,कोई आदमी इसकी आँखों मेंआँख डालकर  देख ले  तो फिर  कुछ और देखना भूल जाये|  मेरे जैसा जरुर कुछ और लोगो को भी लगा होगा | फिर अखबार में पढ़ा की मैडम को हिन्दुस्तानियों का यह पागलपन बड़ा नागवार गुजरा | बात भी सही है हम उसकी सीरत की बजाय सूरत पर क्यूँ जा रहे हैं | पर ये दिल है कि मानता नहीं | इसी तरह के ख्यालों में रात गुजारी | कहने की बात नहीं कि ख्वाब भी कैसे कैसे हसीं आते जाते रहे | कुछ पंक्तियाँ भी कविता की बन गयी   जो सुबह उठाते ही लिखने बैठ गया हूँ | गौर करें -



भेजा  है  तीर  उसने  कमान  हाथ  में  है,
सब जीतने के उसके अरमान साथ में है |             

आका ने जितना बोला उतना ही बोलना है,
माइने  हाथ  में  हैं , जबान  हाथ  में  है |

परदेश से परिंदा आ के यूँ चहचहाया
सरहद के पार मेरी उड़ान  हाथ में है|                                 




आँखों में उसकी जादू,है लब पे मुस्कराहट,
शीरीं  जबान  उसकी , ईमान  हाथ में है|       

दीवानावार उसको हम ऐसे देखते हैं, 
गिरहबान हाथ में है,बलियान हाथ में है|



ओ कलम के सिपाही तुम भी सभंल के रहना, 
क्या जेब में कलम है, दीवान हाथ में है |

जादूगरी में उसकी यूँ हम भी आ गए हैं, 
देने को 'मधुर' उसको गुलदान हाथ में है |     

3 टिप्‍पणियां:

  1. आँखों में उसकी जादू,है लब पे मुस्कराहट,
    शीरीं जबान उसकी , ईमान हाथ में है|

    क्या मधुर जी आप पर भी चल गया नज़र का जादू ? बेहतर प्रतिक्रियात्मक रचना.

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना, क्या बात है..

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  3. क्या कहें शुक्ल जी -
    दीवानावार उसको हम ऐसे देखते हैं,
    गिरहबान हाथ में है,बलियान हाथ में है|

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