मंगलवार, 2 अगस्त 2011

कविता-इन्कलाब लाऊं कैसे?

जब जवानी अपनी मुट्ठी नहीं आँखें मीचे,
और भागती रहती है तितलियों के पीछे |
काले  कारनामें  नहीं, काले बालों की बात करें, 
देख देख कर लड़कियों  को वे आहें  भरें | 



इश्क मुश्क में भूल रहें हैं जो अपने अधिकार,

इश्क की बातें करने वालों  को जो सम्मान  देते |    

जहन में रहते हैं जिनके बस लब ओ रुखसार  |                    
लड़की  की एक एक अदा पर जो जान देते | 


कोई तो खो जाता किसी के दाँतों की दमक में , 
किसी की जिंदगी बह जाए आँखों की चमक में | 
लहराते  बालों को जो  बादल  कह  उलझें , 
जनवादी   कवि  को तो बस   पागल समझें  |


देशभक्तों  को नौजवान जब पागल कहें, 
भगत सिंह नहीं, जहान में  लैला  मजनू रहें |
प्रेम में धोखा  हुआ सोचकर बात जरा सी,
भरा पूरा नौजवान लगा लेता है  फांसी |

 
ये सोचता हूँ इन 
नौ
जवानों को समझाउं कैसे ?

मैं सोचता हूँ इन्कलाब अब लाऊं कैसे ?
  


मुल्ला मौलवी साधू संत सब फेंकते पाशे, 
हम हैं की हाथ की रेखाओं में भविष्य बांचे |
मंदिर मस्जिद में आठों पहर  करे  भक्ति |
धर्म की भूल भुलैया में खोती युवा शक्ति | 



आँख मूंद लेते हैं कि कहाँ जा रहा वतन, 
बस साधू संतों का करें चरण वंदन |                             
धर्मस्थलों पर खोजते हैं जीवन घुट्टी, 
एक  हाथ  में  पहने  दस -दस अगूंठी|



हम जिन्हें सोंपतें हैं अपनी गाढ़ी कमाई,
वे धर्म का चोला पहन लड़ाते भाई भाई |
उनके बारें में सोचते हैं वक्त का तकाजा, 
जो दो चार सालों में ही बन जाता राजा | 



हम कभी मूर्ति तोड़ते कभी बुत हैं बनाते, 
कभी पत्थर के गणेश को भी दूध पिलाते  |
कभी करने लगतें हैं अद्रष्य शक्ति की बातें,
और कभी जाग-जागकर काटें सारी रातें |


बेचैन हूँ इनके सोते भगवान को जगाऊं  कैसे ?
और  सोचता हूँ  इन्कलाब लाऊं,तो लाऊं  कैसे ? 


                                                                                  






- वीरेन्द्र 'अबोध '

                                                                          

4 टिप्‍पणियां:

  1. जिस धर्म और साधू -संत का जिक्र है वे तो ढोंग हैं। धर्म नहीं वह व्यापार है। शोषण और लूट को ढकने का औज़ार है। धर्म तो धरण करता है,तोड़ता या बिखराता नहीं।

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  2. ये सोचता हूँ इन नौजवानों को समझाउं कैसे ?
    मैं सोचता हूँ इन्कलाब अब लाऊं कैसे ?

    बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर रचना.

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  3. बहुत सुंदर.... सार्थक भाव लिए कविता

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  4. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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