जब जवानी अपनी मुट्ठी नहीं आँखें मीचे,
और भागती रहती है तितलियों के पीछे |
काले कारनामें नहीं, काले बालों की बात करें,
देख देख कर लड़कियों को वे आहें भरें |
इश्क मुश्क में भूल रहें हैं जो अपने अधिकार,
देशभक्तों को नौजवान जब पागल कहें,
और भागती रहती है तितलियों के पीछे |
काले कारनामें नहीं, काले बालों की बात करें,

इश्क मुश्क में भूल रहें हैं जो अपने अधिकार,
इश्क की बातें करने वालों को जो सम्मान देते |
जहन में रहते हैं जिनके बस लब ओ रुखसार |
लड़की की एक एक अदा पर जो जान देते |
कोई तो खो जाता किसी के दाँतों की दमक में ,
किसी की जिंदगी बह जाए आँखों की चमक में |
लहराते बालों को जो बादल कह उलझें ,
जनवादी कवि को तो बस पागल समझें |
देशभक्तों को नौजवान जब पागल कहें,
भगत सिंह नहीं, जहान में लैला मजनू रहें |
प्रेम में धोखा हुआ सोचकर बात जरा सी,
भरा पूरा नौजवान लगा लेता है फांसी |
ये सोचता हूँ इन
नौ
जवानों को समझाउं कैसे ?
मैं सोचता हूँ इन्कलाब अब लाऊं कैसे ?
मुल्ला मौलवी साधू संत सब फेंकते पाशे,
हम हैं की हाथ की रेखाओं में भविष्य बांचे |
आँख मूंद लेते हैं कि कहाँ जा रहा वतन,
हम जिन्हें सोंपतें हैं अपनी गाढ़ी कमाई,
हम कभी मूर्ति तोड़ते कभी बुत हैं बनाते,
बेचैन हूँ इनके सोते भगवान को जगाऊं कैसे ?
और सोचता हूँ इन्कलाब लाऊं,तो लाऊं कैसे ?
- वीरेन्द्र 'अबोध '
हम हैं की हाथ की रेखाओं में भविष्य बांचे |
मंदिर मस्जिद में आठों पहर करे भक्ति |
धर्म की भूल भुलैया में खोती युवा शक्ति |
आँख मूंद लेते हैं कि कहाँ जा रहा वतन,
बस साधू संतों का करें चरण वंदन |
धर्मस्थलों पर खोजते हैं जीवन घुट्टी,
एक हाथ में पहने दस -दस अगूंठी|
हम जिन्हें सोंपतें हैं अपनी गाढ़ी कमाई,
वे धर्म का चोला पहन लड़ाते भाई भाई |
उनके बारें में सोचते हैं वक्त का तकाजा,
जो दो चार सालों में ही बन जाता राजा |
हम कभी मूर्ति तोड़ते कभी बुत हैं बनाते,
कभी पत्थर के गणेश को भी दूध पिलाते |
कभी करने लगतें हैं अद्रष्य शक्ति की बातें,
और कभी जाग-जागकर काटें सारी रातें |
कभी करने लगतें हैं अद्रष्य शक्ति की बातें,
और कभी जाग-जागकर काटें सारी रातें |
बेचैन हूँ इनके सोते भगवान को जगाऊं कैसे ?
और सोचता हूँ इन्कलाब लाऊं,तो लाऊं कैसे ?
- वीरेन्द्र 'अबोध '
जिस धर्म और साधू -संत का जिक्र है वे तो ढोंग हैं। धर्म नहीं वह व्यापार है। शोषण और लूट को ढकने का औज़ार है। धर्म तो धरण करता है,तोड़ता या बिखराता नहीं।
जवाब देंहटाएंये सोचता हूँ इन नौजवानों को समझाउं कैसे ?
जवाब देंहटाएंमैं सोचता हूँ इन्कलाब अब लाऊं कैसे ?
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर रचना.
बहुत सुंदर.... सार्थक भाव लिए कविता
जवाब देंहटाएंमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
जवाब देंहटाएंएस .एन. शुक्ल