मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मित्रता दिवस पर विशेष -'मित्र के नाम पत्र'- - डॉ0 नरेश कात्यायन



                                                            ' तुम्हारा देश याद करता है'
                    
बाबा की ऑंखें अम्मा का ऑंचल तरस रहा है
कभी.कभी सूनी ऑंखों में बादल बरस रहा है।   
दीवाली में दीप, रंग होली के या बैशाखी
बहुत याद करती भैया को है बहना की राखी।

गरमी में बूढे बरगद की शाखें डोल रही हैं
इन्तजार का भार हरे पत्तों पर तोल रहीं हैं।
आया है ऋतुराज बही मादक मादक पुरवाई                                                     खेतों में फूली सरसों को याद तुम्हारी आयी।

सावन के झूले रिमझिम की वह मदमस्त फुहारें
हौले हौले मन्द स्वरो में केवल तुम्हें पुकारें ।
बागों में आमों के उपर  कोयल टेर रही है
अब तक आये नहीं तुम्हारा रस्ता हेर रही है।

जहॉं.जहॉं पर रास रचा वह ठॉंव याद करता है
नहीं एक दो तुमको सारा गॉंव याद करता है।।

बरसातों मे ताल तलैया उफनाते दिखते हैं
दादुर करते शौर विरह की कवितायें लिखते हैं।
गलियो से होकर बाहर को जो बहता है पानी
खोज रहा है कागज की नावों की बेमानी ।

ऑंगन मे जाकर बच्चो के संग में धूम मचाना
याद तुम्हें भी आता होगा वह बेलौस नहाना।
किसे कहें तुमको सारा परिवेश याद करता है
रहो कहीं भी तुम्हें तुम्हारा देश याद करता है।

चाचा, चाची, नाना, नानी, दादा, दादी, भाई
मौसा, मौसी, मामा, मामी, ताउ, बडकी ताई।
रिश्तो की रेशमी डोर तुम बिन उदास रहती है
बैठी हुई अलगनी पर गोरैया कुछ कहती है।


बिछुड गये पर बिछुड न पाये मिलने को अकुलाते
भूल नहीं पाते हैं तुमको गॉंव गली के नाते।
गॉंव के बाहर के मन्दिर की घन्टी ने तुम्हें पुकारा
बहुत याद करता है अब भी गॉंव का चौबारा ।

बन्द हो चुकी जो टिक टिक कर घडी याद करती है
तुम्हें गणित के मास्टर जी की छडी याद करती है।
उस विद्यालय की हालत अब बहुत हो गयी खस्ता
सालों तक था साथ तुम्हारे जहॉं तुम्हारा बस्ता।

नाले की टूटी पुलिया थी, अब तक नहीं बनी है
मास्टर तुकाराम की ऑंखों में रौशनी नहीं है ।                              
रोज तुम्हारी उन्नति की फरियाद किया करते हैं
तुमको शायद याद न हो, वह तुम्हें याद करते हैं।

पाठ याद करवाने का आदेश याद करता है
रहों कहीं भी तुम्हें तुम्हारा देश याद करता है।

जाने कितना प्यार मिला है भारत की माटी में
बिना तुम्हारे सभी जग रही वन उपवन घाटी में ।
सन्नाटा सा पसरा रहता हैए अब रेगिस्तानों में
अक्सर कुछ अभाव लगता है खेतों में खलिहानों में।

कावेरी का तट हो तुम्हें अधीर याद करता है
और नर्मदा का पथरीला तीर याद करता है।
गंगा की  धारा का पावन नीर याद करता है
कालिन्दी का श्यामल श्यामल नीर याद करताहै।

पार उतरते राम लखन सीता निषाद की बातें
यमुना तट पर रास रचाते ब्रजनन्दन की रातें।
दनुजों के विनाश की खातिर धनु टंकार रहा है
वहीं कहीं वंशी का स्वर भी तुम्हें पुकार रहा है।

यशोधरा को त्याग बुद्ध को गये न तुमको भूले
महावीर की स्मृतियों में पडे हुये हैं झूले।
भटक रहे चैतन्य महाप्रभु सबको राह दिखाते
दादू नानक तुकाराम सब प्रेम तराने गाते।

बहुत दूर हो  भारत से ओर बेशक बडे हुये हो
लेकिन तुम इन सन्तो की नजरों में चढे हुये हो।
तुमको अब भी गॉंधी का सन्देश याद करता है
रहो कहीं भी तुम्हें तुम्हारा देश याद करता है।

तमिल तेलगू मलयालम उडिया कन्नड गुजराती
सिंधी पंजाबी पश्तों, बंगाली ओर मेवाती।
भोजपुरी मैंथिली कन्नोजी अवधी ओर बुन्देली
ब्रजभाषा के साथ कोरवी और डोगरी खेली।

इनकी मीठी स्मृतियों में तुम ही तुम छाये हो
कितने दिन हो गये न इनसे मिलने तुम आये हो।
दुनियॉं का सिंहांसन हो आश्वस्त निहार रही हैं
भाषाओं की रानी हिन्दी तुम्हें पकार रही है।

सारी दुनिया से नफरत का तंत्र तोड सकती है
तुम चाहो तो हिन्दी सारा विश्व जोड सकती है।
तुलसी सूर रहीम बिहारी पदमाकर और मीरा
रत्नाकर रसखान जायसी भूषण और कबीरा।

माखनलाल, मैथिली, दिनकर, पंत, प्रसाद, निराला
नीर भरी बदली के बदले बच्चन की मधुशाला।
गीतों छंदों की पुरवाई नभ में डोल रही है
कहीं सुभद्रा शब्दों में तलवारें तोल रही है।

प्रेमचन्द के होरी का आदेश याद करता है
रहो कहीं भी तुम्हें तुम्हारा देश याद करता है।

चन्द्रगुप्त का न्याय और पुरू की उंची ललकारें
राणा का भाला और लक्ष्मीबाई की तलवारें।
शेखर का माउजर भगतसिंह का बासन्ती चोला
जलियॉंवाला बाग आज फिर तडप तडप कर बोला।

खुदीराम सुखदेव राजगुरू बिस्मिल की अंगडाई
याद रहेगी दुनियॉं को दीवानों की तरूणाई।
बिस्मिल और अशफाक नहीं यशपाल आज भी भूले
फांसी के फन्दों पर भी जो हंसते हंसते झूले।

राध्ट्र देवता जिस स्वर को भी अब तक पूज रहा है
मुझे खून दो मैं आजादी दूंगा गूज रहा है।
वह सुभाष जो था स्वंतंत्र भारत का महा प्रणेता
वह सुभाष जो था भारत का एक अकेला नेता।

जिसके कन्धों चढकर आयी स्वंतत्रता कल्याणी
तुम्हें सराहा  करती अब भी उस सुभाष की वाणी।
उस सुभाष का वह बलिदानी देश याद करता है
रहो कहीं भी तुम्हें तुम्हारा देश यादकरता हैं।

सोने जैसा देश तुम्हारा कितना बदल रहा है
सीने में आक्रोश दृश्टि में तूफां मचल रहा है।
किया धरा वीरों का सब बंटाधार रहा है
ऐसे में यह देश तुम्हारा तुम्हें निहार रहा है।

असहज होकर मित्र तुम्हें 'नरेश'  याद करता है
रहों कहीं भी तुम्हे तुम्हारा देश याद करता है।

                          पता. 201 राजकीय कालोनी
                          सैक्टर.२१इन्दिर  नगर लखनउ 

[सूचना एवं जन संपर्क विभाग उ० प्र० की मासिक पत्रिका 'उत्तर  प्रदेश ' माह फरवरी २०११ से साभार ]

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