मैं दूसरो के नुक्स सदा देखता रहा,
आईना मुझे मेरे लिये बोझ सा रहा।
उनके लिये रमजान का है एक महीना,
अपने लिये रमजान हरेक रोज सा रहा।
मैं जब भी उसे ढूँढने को घर से चला हूँ ,
वो भी मुझे न जाने कहॉं खोजता रहा।
मैंने भी सुना देर तक उसने भी कहा खूब,
मैं भी कहूँगा उससे कुछ ये सोचता रहा।
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