
अब तक सारा जग कहता उसको खूनी हत्यारा।
पर गॉंधी अपने भक्तों के हाथ रोज मरता है
सबके सब चुप रहते हैं कुछ कहॉं कोई कहता है ।
किसको है मालूम है नही यह कथा रोज मरने की,
मुझको ही कहनी है क्या जो व्यथा नहीं कहने की।
गॉंधी के हत्यारे मुझको मिलते कदम- कदम हैं,
उनको रोके टोके कोई किसमें इतना दम है ।
कैसे कैसे घाव आदमी रोज यहॉं खाता है,
पर जाने क्यू यहॉं किसी को नजर नहीं आता है।
जब गरीब का घर जलता है, तब गॉंधी मरता है
जब अबला की इज्जत लुटती तब गॉंधी मरता है।
जब बेबस, लाचार,वृद्ध, विकलॉंग भीख मॉंगेंगा
या कोई मासूम कहीं झूठे बरतन माजेंगा |
सत्ता के बेशर्म भेडिये हैं हैं दॉंत दिखाते
अपनी काली करतूतों पर तनिक न हों शर्माते|
मंहगाई का जिन्न देखकर पेट दर्द करता है
जब रोटी छोटी होती है तब गॉधी मरता है।।
सारी धरती जहॉं किसानों की सत्ता ने छीनी,
गॉंधीजी की तंग लंगोटी ओर हुई है झीनी ।
रोज नये ऐलानों का हो शौर मचाया जाता
बेकारों को काम नहीं झुनझुना थमाया जाता।
बन्द हुई मुटठी विरोध कीऊँची तन जाती हैं
सत्ता अंधी बहरी होकर लाठी बरसाती है।
नीरो बैठा हुआ तख्त पर झूम रहा दिखता है।
मतदाता अपना सिर धुनता तब गॉंधी मरता है।।
ऐसे में सब चाहे चुप्पी साधें देख रहे हों,
या मिलकर सब अपनी अपनी रोटी सेंक रहें हों ।
मैं ऐसा बदहाल देश को देख नहीं सकता हूँ
मैं बागीहूँ जो कहताहूँ खुलेआम कहताहूँ |
सुन लो सच्चाई से अपनी ऑंख मूँदने वालो,
सत्ता की डपली पर गाने और उघने वालो।
अमर शहीद भगतसिंह का ही पथ उजला दिखता है
बम दर्शन प्यारा लगता है, जब गॉंधी मरता है ।।
जो चाहो यह देश बागियों के हाथों न जाये,
लाल किले पर ध्वज तिरंगा ऊँचा ही लहराये।
तो धरती के बेटों को धरती लौटानी होगी,
पूंजी की चेरी सत्ता उससे बेगानी होगी ।
बेकारों को काम काम का दाम दिलाना होगा,
जो ऐसा न कर पाये तो फिर हर्जाना होगा।
दीन, दलित,बंधुआ कोई बेगार अगर करता है
आजादी का अर्थ व्यर्थ है, तब गॉंधी मरता है।।

आदरणीय अमरनाथ 'मधुर' जी
जवाब देंहटाएंसादर वंदे मातरम् !
संयोगवश नेट भ्रमण करते हुए आप तक पहुंचा हूं । बढ़िया कविता पढ़ने को मिली -
जब गरीब का घर जलता है, तब गांधी मरता है
जब अबला की इज्जत लुटती तब गांधी मरता है।
बहुत सच्ची बात कही …
सत्ता के बेशर्म भेडिये हैं हैं दांत दिखाते
अपनी काली करतूतों पर तनिक नहीं शर्माते|
बेशर्म भेड़ियों को खदेड़ने का अवसर आने तक भूलना नहीं है …
नीरो बैठा हुआ तख्त पर झूम रहा दिखता है
मतदाता अपना सिर धुनता तब गांधी मरता है
वाह भाईजी , कमाल की रचना है , बहुत बहुत बधाई !
ऐसे ही भाव मेरी ताज़ा रचना में भी हैं -
मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; जो चौकीदार है
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
समय निकाल कर पूरी रचना पढ़ने आइएगा …
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बेकारों को काम काम का दाम दिलाना होगा,
जवाब देंहटाएंजो ऐसा न कर पाये तो फिर हर्जाना होगा।
दीन, दलित,बंधुआ कोई बेगार अगर करता है
आजादी का अर्थ व्यर्थ है, तब गॉंधी मरता है।।
निष्कर्ष मे ही सब कह दिया है,परंतु एक-एक पंक्ति और एक-एक शब्द यथार्थपरक है और हम इसका समर्थन करते हैं।
बिलकुल सही कहा है -''गाँधी रोज मरता है '' .जब भी आदर्शों का गला घुटता है .सार्थक व् सशक्त अभिव्यक्ति .आभार
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