
( डॉ0 महमूद मेरठी फैज़ -ए- आम इंटर कालिज मेरठ में अग्रेजी के व्याख्याता रहे हैं | आप अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त उर्दू तथा हिंदी भाषा एवं साहित्य के भी विद्वान् हैं | जलेस की मेरठ इकाई के वरिष्ठ सम्मानित सदस्य हैं | )
राहबर बनायेंगे न रहनुमा बनायेंगे,
रास्ते के पेच-ओ-ख़म ही रास्ता दिखायेंगे |
अब निगार-ए-खाना-ए-दिल में नहीं कोई सनम,
अब किसी की जुल्फ के अफई ना सर उठायेंगे |
क्या सुजुदे शोक की मंजिल नजर से उठ गयी,
क्या कदम- कदम पर अब वो मरहले न आयेंगे |
वाय मयकशी की तेरा एतबार उठ गया,
हम समझ रहे थे अब ना कदम डगमगायेंगे |
तोड़कर 'महमूद'हम एक दिन कफस की तीलियाँ '
फिर कफस की तीलियों से आशिंया बनायेंगे |
- डॉ० महमूद 'मेरठी'
1 -अफई- सांप
2- निगार-ए-खाना-ए-दिल - दिल का मंदिर
3- सुजुदे शौक - सजदे की चाह
4- वाय - अफसोस
5- मयकशी - शराबबाजी
BAHUT KHOOB ABHIVYAKTI .AABHAR MAHMOOD JI KI ITNI SHANDAR GAZAL KO PRASTUT KARNE HETU .
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