सोमवार, 22 अगस्त 2011

गजल - डॉ० महमूद 'मेरठी'




( डॉ0  महमूद मेरठी फैज़ -ए- आम  इंटर कालिज  मेरठ  में अग्रेजी के व्याख्याता रहे हैं | आप अंग्रेजी भाषा   के अतिरिक्त उर्दू तथा हिंदी भाषा एवं साहित्य  के भी विद्वान् हैं | जलेस की मेरठ इकाई के वरिष्ठ सम्मानित  सदस्य हैं | )
  


राहबर   बनायेंगे   न   रहनुमा    बनायेंगे, 
रास्ते के पेच-ओ-ख़म ही रास्ता दिखायेंगे | 


अब निगार-ए-खाना-ए-दिल में नहीं कोई सनम, 
अब किसी की जुल्फ के अफई ना सर उठायेंगे |


क्या सुजुदे शोक की मंजिल नजर से उठ गयी, 
क्या  कदम- कदम पर अब वो मरहले न आयेंगे | 


वाय  मयकशी  की  तेरा  एतबार  उठ  गया, 
हम समझ रहे थे अब ना कदम डगमगायेंगे |


तोड़कर 'महमूद'हम एक दिन कफस की तीलियाँ ' 
फिर कफस की तीलियों से आशिंया बनायेंगे | 
                                                                                       - डॉ० महमूद 'मेरठी'         
 1 -अफई- सांप
2- निगार-ए-खाना-ए-दिल - दिल का मंदिर
3- सुजुदे शौक - सजदे की चाह
4- वाय - अफसोस
5- मयकशी - शराबबाजी

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