आभारी हूँ मुझे बुलाया,
और बुलाकर मान बढाया,
मानूँगा दस्तूर तुम्हारे,
मानूँगा दस्तूर तुम्हारे,
पास बिठाओ या फिर द्वारे,
जब तक चाहो साथ रहूँगा ,
जब तक चाहो साथ रहूँगा ,
लेकिन अपनी बात कहूँगा ।|
ये सारे मुस्काते चेहरे,
ज्यों गुलाब के फूल घनेरे।
मुझको भी अच्छे लगते हैं,
अपने सब दिल में बसते हैं।
अपने सब दिल में बसते हैं।
पर जो सबसे पीछे रहते,
जीवन के सारे दुख सहते,उनकी ऑंखें का गंगाजल,
दुनियां नई बना सकते हैं ।
पूज रहा मेरा मन हर पल।
मैं उस जल के साथ बहूँगा,
उनके मन की बात कहूँगा।|
श्रंगारी गीतों की धुन में,
घुंघरू पायल की रूनझुन में।
सबका तन नर्तन करता है,
हॉं मेरा भी मन रमता है।
लेकिन आहें और कराहें,
कुछ बेकस,लाचार निगाहें,
खुशियों का घर घेर रही है,
ऐसे मुझको टेर रही हैं,
जैसे उनके साथ दहूंगा,हरदम उनके साथ रहूँगा |
तुमको तो कितनी सुविधायें,
रहती कब ऐसी दुविधायें।
क्या चिन्ता क्यूँ लौग मर रहे, बन मनमौजी मौज कर रहे।
पर ये मौज मजे तब तक हैं,
जब उनको खुद पे शक है,
जोर औ जुल्म मिटा सकते हैं,
मैं उनमें विश्वास भरूँगा,
उनके हक की बात कहूँगा।|

खूबसूरत रचना , सुन्दर प्रस्तुति , आभार
जवाब देंहटाएंश्रंगारी गीतों की धुन में,
जवाब देंहटाएंघुंघरू पायल की रूनझुन में।
सबका तन नर्तन करता है,
हॉं मेरा भी मन रमता है।
लेकिन आहें और कराहें,
कुछ बेकस,लाचार निगाहें,
खुशियों का घर घेर रही है,
ऐसे मुझको टेर रही हैं,
जैसे उनके साथ दहूंगा
उनकी ही बात कहूँगा
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!