गुरुवार, 8 सितंबर 2011

गजल - - बिजेंद्र 'परवाज़ '











                                       कुछ न बोलो चुप रहो


हो गया  फरमान  जारी कुछ न बोलो चुप रहो
ये भी कैसी जिद तुम्हारी कुछ न बोलो चुप रहो |

जिसके  दस  बच्चे  हैं  उसने सिर्फ  दो लिखवाये हैं,
हो गयी मर्दुम सुमारी  कुछ  ना  बोलो  चुप  रहो |

एक  नेताजी  ने  भूखे  पेट  लोगों  से  कहा, 
जो भी है हालत तुम्हारी कुछ न बोलो चुप रहो |

जितने वाले की हर ख्वाहिश पे परदा  डाल कर,
कैसे    तुमने  जंग  हारी  कुछ न बोलो चुप रहो |
  
तुम  तो जनता  हो तुम्हें  बर्दाश्त  करना चाहिए.
जो मिनिस्टर  है जुआरी  कुछ न बोलो चुप रहो| 
  
ये समझ  लो  सब्र  काफी  है गरीबी  के लिए ,
वक्त   है 'परवाज' भारी कुछ ना बोलो चुप रहो |

                                 - बिजेंद्र 'परवाज़ ' 



2 टिप्‍पणियां:

  1. हो गया फरमान जारी कुछ न बोलो चुप रहो,
    ये भी कैसी जिद तुम्हारी कुछ न बोलो चुप रहो |
    वाह बहुत खूबसूरत मतला है...
    जीतने वाले की हर ख्वाहिश पे परदा डाल कर,
    कैसे तुमने जंग हारी कुछ न बोलो चुप रहो|
    परवाज़ साहब को बधाई.

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  2. हो गया फरमान जारी कुछ न बोलो चुप रहो,
    ये भी कैसी जिद तुम्हारी कुछ न बोलो चुप रहो |

    बहुत उम्दा और सच्ची ग़ज़ल
    आज के हालात पर तीखा तंज़
    बहुत ख़ूब !

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