अभी तो सफर की शुरूआत साथी
अभी तो बहुत दूर मंजिल पड़ी है।
अभी तो उगा एक नन्हा सा अंकुर
इसे वृक्ष बनने में वक्त लगेगा।
अभी तो तुम्हीं इसकी रक्षा करोगे,
तभी ऑंधी पानी से कल ये लडेगा। अभी तो तुम्हीं इसकी रक्षा करोगे,
तुम्हें भी मधुर फल इसके मिलेंगे
अभी तो स्वयं इसकी मिट्टी कडी है।।
अभी तो निगाहों में सपने सुहाने,
जमीनी हकीकत पे किसकी नजर है।
किसी चढते यौवन के उन्माद को ज्यों
पता ही न हो कितनी लम्बी उमर है।
संभल के संभल के चलो मेरे साथी,
तुम्हारे पे दुनियॉं की नजरे गडी हैं।|
अगर हम गिरे तो जमाना हॅसेगा,
न उठकर संभलने का मौका मिलेगा।
गुजर जायेगी दुनियॉं हम पर से होकर,
झुका सर हमेशा झुका ही रहेगा।
कदम जो उठा डगमगाने न देंगें,यही प्रण उठाने की आयी घडी है।|
अभी तो है ऑंधी औ पानी का मौसम,
अभी बिजलियॉं भी कडकती हैं हरदम।
सफर चाहे मीलो हो लम्बा हमारा,
बढेंगें हम आगे, रूकेंगें नहीं हम।
हमे अपनी मंजिल को पाना ही होगा
जो उस पार बॉंहें पसारे खडी है।।
डगर पर पडे है जो पत्थर नुकीले
उडा ठोकरो से दो कर बन्द ढीले।
बहाना ठहरने का ढॅंढों न कोई,
उन्हें छोड दो जो बने हों हठीले।
है मेहनत हमारी, है हिम्मत हमारी
करे जिद कोई भी हमें क्या पडी है।|
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