मंगलवार, 1 नवंबर 2011

आलेख - आरक्षण नहीं जातिवाद का विरोध ज़रूरी


आरक्षण नहीं जातिवाद का विरोध ज़रूरी 

आजकल आरक्षण मुद्दे पर बहस छिड़ी है| आरक्षण नीति के कानूनी प्रावधानों को जाने बिना मीडिया और समाज में आरक्षण की विरोधी भेड़ चाल में शामिल होने की होड़ सी लगी है हाँ तक कि जिन वर्गों के लोगों को इसका लाभ मिल रहा है वे भी आरक्षण की पृष्ठभूमि की जानकारी न होने के कारण सार्थक बहस नहीं कर पाते| ताज्जुब तो ये है कि क़ानून के डिग्री धारक तथाकथित बुद्धिजीवी भी देश के सदियों से वंचित और जातीय भेदभाव के शिकार लोगों को मिलने वाली इस सुविधा का तर्कहीन विरोध कर रहे हैं, बिना यह जाने कि देश को एक और विभाजन से बचाने तथा सदियों से सामाजिक भेदभाव से पीड़ित करोडो अछूतों को संवेधानिक अधिकार दिलाने के लिए इस आरक्षण का प्रावधान किया गया था एक दृष्टी इसके मूल पर डालने से पता चलता है कि जब भारत के करोड़ों अछूतों के लिए पृथक निर्वाचन / दोहरी मतदान प्रणाली के लिए डॉ0 भीमराव आम्बेडकर संघर्ष कर रहे थे तो सन 1932 में  यरवदा जेल में महात्मा गांधी ने इसके खिलाफ आमरण अनशन शुरू कर दिया था| उस समय गांधी जी के प्राण बचाने तथा देश को एक और विभाजन से बचाने के लिए राष्ट्र की एकता और अखंडता हेतु गांधी जी की उपस्थिति में डॉ0 आम्बेडकर और पं0 मदन मोहन मालवीय ने पूना पेक्ट पर हस्ताक्षर किये ण्जिसके तहत अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया जो दस वर्षों के लिए था कि उस समय के नेताओं का मानना था कि दस वर्षों में वंचित वर्ग अन्य वर्गों के समान आ जाएगा| दुर्भाग्य से हम इस उम्मीद पर खरे नहीं उतरे और सरकारों द्वारा यह आरक्षण हर दस वर्ष बाद पुन: बढाया जाता रहा| कुछ लोग इसे राजनैतिक उद्देश्य भी कह सकते हैं परन्तु आज़ादी के ६४ वर्षों के बाद भी देश में जातिगत आधार पर दलितों के साथ हो रहे भेदभाव पूर्ण बर्ताव की अनेक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है कि हमने संविधान की भावना के अनुरूप कार्य नहीं किया और इस संवेदनशील मुद्दे पर सभी राजनैतिक दल अपनी रोटियां सेकते रहे|ण्शोषण और अत्याचार इन वर्गों पर अभी भी जारी है इसे जानने के लिए अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है| आज़ादी के बाद वाराणसी में डॉ0पूर्णानंद जी की प्रतिमा का अनावरण जब दलित नेता बाबू जगजीवन राम से करवाया गया तो कुछ लोगों ने प्रतिमा को दूध व गंगाजल से नहलाकर पवित्र किया जो दलित विद्वान् के छूने से अपवित्र हो गयी थी| स्वतन्त्र भारत में ही एक दलित महिला मुख्यमंत्री को सार्वजनिक रूप से जातिसूचक शब्दों द्वारा अपमानित किया गया| हाल ही में कमिश्नर स्तर का एक दलित अधिकारी जब सेवानिवृत्त हुआ तो अगले दिन ऑफिस के सवर्ण मानसिकता वाले कुछ लोगों ने पूरे परिसर को गंगाजल से धुलवाकर पवित्र किया| जिस घटना पर अभी भी मुकदमा चल रहा है| स्पष्ट है कि शोषण और अत्याचार का आधार आर्थिक स्तिथि नहीं है| ये सभी लोग जिनके साथ जातीय दुर्व्यवहार किया गया गरीब नहीं थे,अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोग थे और अच्छे पदों पर आसीन थे फिर भी उन्हें जातिगत अपमान सहना पड़ा|  ये इस बात का सबूत नहीं है कि आरक्षण की सुविधा के फलस्वरूप इन वंचित वर्गों को अन्य वर्गों कि भाँति सामाजिक समानता दिलाना था न कि आर्थिक रूप से मजबूत करना |आज भी एक उच्च माने जाने वाले ज़मींदार का पालतू कुत्ता यदि भूख से परेशान होकर एक दलित के घर की रोटी खा लेता है तो वह अछूत हो जाता है और कुत्ते का मालिक अपने कुत्ते का बहिष्कार कर उसे दलित को सौंपकर मुआवजे की मांग करता है| यह खबर भारत के समाचार पत्रों में पिछले दिनों ही छपी है |दलितों की बारात को न चढ़ने देना | दलितों की कांवड़ व जल को शिवरात्री के अवसर पर मंदिरों में न चढ़ने देना और मेडिकल कालेजों तक में जातीय भेदभाव के कारण दलित डॉक्टर छात्रों को सामूहिक रूप से कॉलेज छोड़ने के लिए मजबूर करना हमारे देश की सामजिक,राष्ट्रीय व शैक्षिक प्रगति के मुहं पर एक तमाचा है| यह भी सच्चाई है कि अगर कोई दलित अपना छोटा मोटा व्यवसाय करना चाहता है तो भी जातिगत भेदभाव उसका पीछा नहीं छोड़ता| यदि किसी टी.स्टाल का नाम दलित टी.स्टाल,जाटव रेस्टोरेंट या वाल्मीकि होटल रख दिया जाए तो शायद ही वह चल पाए परन्तु यदि कोई अन्य व्यक्ति  अपनी दुकान यादव डेयरी, गुप्ता शू स्टोरया शर्मा वस्त्र भंडार आदि के नाम से खोल कर व्यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश करता है तो कोई प्रश्न नहीं उठाता कोई ऊँगली नहीं उठती| आखिर हम कब तक इस जातिवाद के दंश को झेलते रहेगे कब राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुँचाने  वाली इस जातीय ग्रंथि से हमारा देश आज़ाद होगा| यदि आज भी हमने इस अमानवीय कुप्रथा का विरोध नहीं किया तो आने वाली पीढियां  हमें माफ़ नहीं कर पाएंगी| जातिवाद के दुष्परिणाम हमारे सामने है जातियों के आधार पर सरकारी सेवाओं में चल रहा भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है| साक्षात्कार के समय उम्मीदवार की जाति के सजातीय होने पर चयनकर्ता के मन में सहानुभूति होना स्वाभाविक है जो मनोवैज्ञानिक भी है| हाँ तक की ग्राम प्रधान से  लेकर संसद तक का चुनाव जाति के आधार पर ही लड़ा जाता है सच तो यह है की यदि जातिसूचक शब्दों का निषेध हो और अन्तरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन मिले तो दहेज़ और सामाजिक अत्याचार की घटनाओ को काफी हद तक कम किया जा सकता है क्योंकि नए पीढ़ी की युवक युवतियां स्वयं  को इस जातिबंधन से मुक्त देखना चाहती है परन्तु परम्पराओं के नाम पर हम अपनी सड़ी.गली परम्पराओं  और झूठी  शान के कारण इस जाल से बहार नहीं निकल पाते,  फलस्वरुप देश के नौनिहालों को या तो आत्महत्याएँ करनी पड़ती है या आनर किलिंग के नाम पर समाज के ठेकेदारों द्वारा उनकी हत्याएँ कर दी जाती है| इस प्रकार ही हम नए भारत का निर्माण करना चाहते हैं| यह प्रश्न सभी बुद्धिजीवियों के लिए विचारणीय है कि हम समतावादी समाज के द्वारा देश का निर्माण कर उसे अन्य विकसित राष्ट्रों के समक्ष लाना चाहते हैं या रूढ़ीवादी परम्पराओं के दास बनकर उसे पीछे धकेलना चाहते हैं विडंबना है कि आरक्षण नीति का विरोध करने वाले लोग जातिवाद समाप्त करने कि बात क्यों नहीं करते| जब जातिवाद के दुष्परिणाम इतने भयंकर हैं कि राष्ट्र कि एकता दांव पर लग जाती है तब कोई अन्नाएकोई बाबा इस देश से जातिवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए कोई आन्दोलन क्यों नहीं करताएआमरण अनशन क्यों नहीं करताघ् यदि ऐसा हो तो निश्चित मानिए कि देश एक अनहोनी से बच जायेगा और भ्रष्टाचार का खात्मा हो सकेगा क्योंकि आज देश में हर व्यक्ति स्वयं को शक्तिशाली साबित करने के लिए वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है चाहे इसके लिए उसे कितने ही अनुचित साधनों का प्रयोग क्यों न करना पड़े| 
पुन: विषय की गम्भीरता पर आते हुए यह कहना भी उचित नहीं है कि अनुसूचितजाति व जनजातियों को क्रीमी लेयर के आधार पर आरक्षण की परिधि से बाहर कर दिया जाये| इस के पक्ष में दो तर्क दिए जा सकते हैं एक तो यह आरक्षण सामाजिक न्याय व बराबरी प्राप्त करने के लिए संविधान द्वारा लागू किया गया था न की किसी को अमीर बनाने के लिएण् दूसरे यदि अच्छी आर्थिक स्थिति वाले अनुसूचितजाति व जनजाति के लोगों को इस दायरे से बाहर कर दिया तो देश की उच्च व प्रतिष्ठित मानी जाने वाली सेवाओं जैसे चिकित्साएइन्जीन्यरिंगएप्रबन्धन व सिविल सेवाओं आदि में इस वर्ग के बच्चों का चयन असंभव होगा क्योंकि इनमे प्रवेश के लिए जिन महंगी कोचिंग व्यवस्था से बच्चों को गुजरना पढता है उससे सब लोग परिचित हैं कैसे कोई साधनहीन गरीब व्यक्ति अपने बच्चे को इस लायक बना पायेगा कि वह बिना महंगी कोचिंग के इन सेवाओं में प्रवेश पा सके| इसलिए हर स्तर पर आरक्षण के प्रावधानों द्वारा ही समाज के इस वंचित वर्गों के बच्चों को दूसरों के समक्ष लाया जा सकता है अन्यथा ये लोग केवल चतुर्थ श्रेणी और लिपिकीय सेवाओं तक ही सिमट कर रह जायेंगे और देश के सभी वर्गों को न्याय दिलाने का हमारा सपना अधूरा ही रह जायेगाण् 
निष्कर्षत: जब तक देश से जातिवाद का समूल नाश नहीं होगा तब तक सदियों से जातिगत भेदभाव के शिकार इन वर्गों को विशेष सुविधाएँ प्रदान करना न केवल हमारा संवैधानिक दायित्व होगा बल्कि नैतिक कर्तव्य भी|


                                                                  डॉ0 राम गोपाल भारतीय 

2 टिप्‍पणियां:

  1. Prabhat Kumar Roy, Shahbaz Ali Khan and 2 others like this.

    Suresh Bundel bahut sateek baat,100% satya
    21 hours ago · Like

    Shahbaz Ali Khan correct
    20 hours ago · Like

    Vijai Mathur जातिवाद 'पुरोहितवाद' की दें है। पुरोहितवाद को उखाड़ने हेतु 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या जनता के समक्ष पेश करनी होगी जैसे 'क्रांतिस्वर'द्वारा कर रहा हूँ। परंतु सम्पूर्ण बाम-पंथ पुरोहितवाद की व्याख्या को ही 'धर्म'मान कर 'धर्म' का विरोध कर रहा है,पुरोहितवाद का नहीं जो जातिवाद के मूल मे है।
    8 hours ago · Like · 1

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  2. Muhammad Noorain Khan · Friends with Shahbaz Ali Khan
    Apne mool se bhatka hua lekh. Jativad ko aap kabhi bhi araksan ya arthik samridhi se samapt nahi kar sakte. Kunki iska jad Hindu Dharm ke varnavad me samahit hai jisko sadhantik adhar Rig Veda ke 10th Mandal Purushashukta se milta hai. Jati...See More
    November 3 at 1:43pm · Like

    Er Mahesh Barmate samay ki alpta ke karan poora lekh nahin padh paya hoon... par baat sahi kahi aapne ki "Jatiwaad ka virodh jaroori hai"
    November 3 at 2:36pm · Like

    Danda Lakhnavi आरक्षण वर्ण-व्यवस्था की देन है.....वर्ण-व्यवस्था के मिटने से जातिगत आरक्षण की समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी|किसी रोग को समूल नष्ट करने के लिए उसकी जड़ पर प्रहार करना होता है | शिक्षा के अधिकार के छिनने से वर्ण- व्यवस्था और जातिगत आरक्षण की समस्या पैदा हुई है.....उसे दूर करने के लिए हर मनुष्य को शिक्षा-संपन्न बनाना होगा|
    9 hours ago · Like

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