आने वाला समय करेगा तय मेरा स्थान यहॉं पर।
वर्तमान के उलझे हुये सवालों के हल खोज रहा हूँ
मेरा दावा है मै भी हूँ अपने युग का एक हस्ताक्षर।
झूठी मान प्रतिष्ठा मेरा ध्येय नहीं है, प्रेय नहीं है
राज पुरूष या धनकुबेर का वन्दन मुझसे गेय नहीं हैं |
मैं श्रमवीरों का आराधक उनके सुख-दुख का गायक हूँ,
मैं जनगीत लिखा करता हूँ , कविता है प्रमेय नहीं है।
मुझको बॉंध नहीं पायेगें स्वयं सिद्ध साहित्यिक घेरे,
मैं हूँ सिद्ध तभी जब मेरा स्वर है आम आदमी का स्वर।।
जब उन्मादी भीड कर रही मन्दिर, मस्जिद का बॅटवारा,
वहाँ तुम्हारा खुदा रहेगा, यहॉं रहेगा राम हमारा।
मैं चिल्ला-चिल्लाकर कहता ओ श्रद्धालु धर्मरक्षकों
लवकुश भूखें बिलख रहे हैं आओ उनका बनो सहारा।
पर अफसोस उन्होंने फिर से सीताअग्नि परीक्षा ली है,
ऐसी क्रूर परीक्षाओं का खोज रहा हूँ समुचित उत्तर।।
ओ मेरे नवयुवक साथियों! प्रश्न तुम्हारे भी सम्मुख है,
बेकारो को धर्म,जाति में कितना आदर कितना सुख है।
नेता रोज तुम्हे देते हैं देशभक्ति की मुगली घुट्टी
जबकि स्वयं देश से ज्यादा रखते सदा विदेशी रूख है।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे का सब मिलकर पाठ कर रहे,
आओइनकोसबकसिखायेंगेअब,हमतुमसबमिलजुलकर।।
धर्म,जाति,भाषा विवाद सब रख छोडें हम एक किनारे,
इनके ठेकेदार रहे हैं शोषक, पीडक सदा हमारे।
धनकुबेर भी साथ हमारे कोई नहीं कभी आयेगा,
राजनीतिक नेता दे सकते केवल हमको झूठे नारे।
इन्कलाब के लिये साथियों उमड पडें सैलाब सरीखे,
जो दायित्व स्वयं हम पर है नही दूसरे के है सर पर।।
शोषण के गढ ढह जायेगें खुश होगें मेहनतकश भाई।
भ्रष्ट दलालों, जमाखोरो से जनता मुक्ति पा जायेगी,
सीता को सम्मान मिलेगा भूखे सोंयेंगे न कन्हाई।
आज देखता हूँ जो सपने कल साकार उन्हें होना है,
मैं उस कल के लिये लिखूँगाऔर लडूँगा भी जीवन भर।।
- अमरनाथ मधुर
सुन्दर , सामयिक , सार्थक प्रस्तुति , आभार .
जवाब देंहटाएंएक अरसे बाद इतना सुन्दर गीत पढ़ने को मिला .बधाई .
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