कड़वे जिसके बोल हैं उसका अपना बस थोड़े ही है
गन्ना हो तो रस भी निकले बात में रस थोड़े ही है |
वो है चुर्रेबाज तो होगा हम भी हैं खुद्दार
हम जैसे लोगों की उसके हाथ में नस थोड़े ही है |
सब जाने हैं हम हैं उसके सच्चे पक्के दोस्त
लेकिन उसकी गैर मुनासिब बात में रस थोड़े है |
आये तो जल्दी आ जा वरना फिर मिटटी का ढेर
बिस्तर पर बीमार तेरा दो चार बरस थोड़े है |
और थे जब हालात तो 'मजहर' बात थी जब कुछ और
अब तेरे हालात हैं ओर अब बात में जस थोड़े है |
- मजहर सयानावी
बहुत सुन्दर रचना , बधाई स्वीकार करें .
जवाब देंहटाएं