कवि कलम न हो जाये तेरी बदनाम,
गीत लिखे जा हल और बन्दूकों के नाम।
रोटी की खातिर होना मजबूर नहीं,
मेहनत वालो की दुनियॉं से दूर कही,
गीत न गाना तू रेशम या खादी के,
देख उसी में कारण इस बरबादी के|
अन्न उगाने वालों के घर में फाका,
खलिहान मे सूदखोर डाले डाका,
महलों के निर्माता को ये नहीं मलाल,
उसके नीचे रात नहीं बिछ सका पुआल|
बन्धु ये है किसके पापों का परिणाम
जो उसके ही सर पर बुला हुआ ईनाम।
गीत लिखे जा हल और बन्दूकों के नाम।
गीत न जा के बेक रूप की बस्ती में,
यौवन की पागल अलसायी मस्ती में,
देख उधर बदनाम हो रही है सीता
देख उधर नीलाम हो रही है गीता |
गंगा के दामन में लगे हुये हैं दाग,
यमुना के ऑंचल में सुलग रही है आग,
उनका नही है कोई दीन, धर्म, ईमान,
पैसे वाले बने हुये उनके भगवान |
उनकी बगावत के झण्डे को ले तू थाम,
इस गुनाह का चाहे जो भी हो अन्जाम।
गीत लिखे जा हल और बन्दूकों के नाम।
कलमकार ये बहुत पुरानी बात हुई,
जब बिरहन की आंखों मे कट रात गई,
तुमने आसमान के तारे गिन डाले,
बिन स्याही ऑंसू से पोथे लिख डाले,
पर अब देखो नया जमाना आया है,
आजादी का परचम फिर लहराया है।
कोई जयचन्द धूमिल करे न इसका मान,
जय जवान का मंत्र गुंजाये तेरे गान,
तेरा शहीदों को है सच्चा तभी प्रणाम,
कलम करे तेरी तलवारों का भी काम।
गीत लिखे जा हल और बन्दूकों के नाम।
-अमरनाथ 'मधुर'
Amit Anant 'amaan'
जवाब देंहटाएंbhai wah.. madhur ji... waah kya bata hai
Uttkarsh Prakashan
जवाब देंहटाएंbadiya baat kahi hai|
बहुत ही सुंदर कविता ,,ज़मीन से जोड़ने वाली ,,देश को पहचानने वाली
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