
राम नहीं बस रोटी दो
रोटी और लंगोटी दो |
श्रीराम की ओट चाहिये
तुम्हें दलाली-नोट चाहिये
जैसे भी हो वोट चाहिये
नाक कटे या छोटी हो |
लुट खसोट हराम चाहिये
शानो शौकत नाम चाहिये
चोरी बस,नाकाम चाहिये
जग में चाहे खोटी हो |
नहीं चाहिये ऐसा राम
रहे अयोध्या जिसका धाम
जो है ख़ास नहीं है आम
चाहता केवल कोठी को |
कण-कण में न बसता जो
झगडा जग में करता जो
बिकता धन में सस्ता जो
छीन रहा है रोटी को |
तंग दिली भगवान नहीं
झगडा उसका काम नहीं
धन का लोभी राम नहीं
फिर क्यों राम बपौती हो |

लाठी घर की बनता है
कचरा बच्चा चुनता है
सपने ऊँचे बुनता है
तरसे है वो रोटी को |
रोटी अपना कर्म है भाई
और लंगोटी मर्म है भाई
मानवता ही धर्म है भाई
जात बड़ी या छोटी हो |
-ओमकार रघुवंशी
Tanu Pandey-
जवाब देंहटाएंBhaut achhi kavita ha. . .
Nirmal Gupta-
रोटी अपना कर्म है भाई
और लंगोटी मर्म है भाई
मानवता ही धर्म है भाई
जात बड़ी या छोटी हो |
शानदार कविता .शेयर करने के लिए आभार .
Suraj Arya shandar -
... Sachmuch...Badhai ho..
S.N SHUKLA ने आपकी पोस्ट " कविता -राम नहीं बस रोटी दो " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंसुन्दर स्रजन, ख़ूबसूरत भाव, शुभकामनाएं .
पुलेकेशन ढौंडियाल -
जवाब देंहटाएंराम नाम ना होके एक उर्जा हैं...सच हैं ये कि वो कण-कण में बसे हैं....वो भी आपसे ४००० साल पहले|
बहुत अच्छी जानकारी....ज्ञानवर्धन के लिए आभार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDER BHAV YUKT KAVITA BADHAI HO
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDER BHAV YUKT KAVITA BADHAI HO
जवाब देंहटाएं