गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

कविता -राम नहीं बस रोटी दो




राम नहीं बस रोटी दो 
रोटी और लंगोटी दो |


श्रीराम की ओट चाहिये 
तुम्हें दलाली-नोट चाहिये  
जैसे भी हो वोट चाहिये  
नाक कटे या छोटी हो |     


लुट खसोट हराम चाहिये 
शानो शौकत नाम चाहिये 
चोरी बस,नाकाम चाहिये
जग में चाहे खोटी हो |
                                                             
नहीं चाहिये ऐसा राम 
रहे अयोध्या जिसका धाम 
जो है ख़ास नहीं है आम 
चाहता केवल कोठी को |
 कण-कण  में न बसता जो 
झगडा जग में करता जो 
बिकता धन में सस्ता जो 
छीन रहा है रोटी  को  | 


तंग दिली भगवान नहीं 
झगडा उसका काम नहीं 
धन का लोभी राम नहीं 
फिर क्यों राम बपौती हो |




लाठी घर की बनता है 
कचरा बच्चा चुनता है 
सपने ऊँचे बुनता है  
तरसे है वो रोटी को | 


रोटी अपना कर्म है भाई 
और लंगोटी मर्म है भाई 
मानवता ही धर्म है भाई 
जात बड़ी या छोटी हो | 






                                                                 -ओमकार रघुवंशी 

6 टिप्‍पणियां:

  1. Tanu Pandey-
    Bhaut achhi kavita ha. . .


    Nirmal Gupta-
    रोटी अपना कर्म है भाई

    और लंगोटी मर्म है भाई

    मानवता ही धर्म है भाई

    जात बड़ी या छोटी हो |
    शानदार कविता .शेयर करने के लिए आभार .


    Suraj Arya shandar -
    ... Sachmuch...Badhai ho..

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  2. S.N SHUKLA ने आपकी पोस्ट " कविता -राम नहीं बस रोटी दो " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    सुन्दर स्रजन, ख़ूबसूरत भाव, शुभकामनाएं .

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  3. पुलेकेशन ढौंडियाल -
    राम नाम ना होके एक उर्जा हैं...सच हैं ये कि वो कण-कण में बसे हैं....वो भी आपसे ४००० साल पहले|

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  4. बहुत अच्छी जानकारी....ज्ञानवर्धन के लिए आभार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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