मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

गीत-सर्द हवाओं का मौसम




ये मौसम पतझर का मौसम पीले पत्ते  झर जायेंगे |
सर्द हवाओं के झोंकों से  उड़कर दूर बिखर जायेंगे |


 इस  मौसम में धुन्ध भरी है
                  फैल रहा चहुँ ओर कुहासा
पाला मार रहा फसलों को,
                 ठिठुर रही अंकुरित दिलासा


ताक रहे हैं आसमान को, सूरज भैया कब आयेंगे |




कोटर में छुप गये कबूतर
                            मुर्गी दडबे में  है सोती
सर्दी में बन्दर की देखो
                          कैसी हालत खस्ता होती


दाँत मंजीरा बजा रहे हैं, भजन कीर्तन ही गायेंगें |


दृष्टिदोष का भ्रम होता है,
                            साफ़ नहीं  देता दिखलायी
 घर से कौन बाहर को निकले
                                सो जाओ मुँह ढॉंप रजाई


उत्सव हो या शोक सभायें, फिर देखेंगे, फिर जायेंगे ।







1 टिप्पणी:

  1. Sudhakar Ashawadi Sharma
    ठिठुरती रात अब कटती नहीं है
    भावना निष्ठुर कभी बंटती नहीं है
    करो कोई जतन ठिठुरन मिटाने का
    बिन अलावों कंपकंपी मिटती नहीं है.

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