ये मौसम पतझर का मौसम पीले पत्ते झर जायेंगे |
सर्द हवाओं के झोंकों से उड़कर दूर बिखर जायेंगे |
इस मौसम में धुन्ध भरी है
फैल रहा चहुँ ओर कुहासा
पाला मार रहा फसलों को,
ठिठुर रही अंकुरित दिलासा
ताक रहे हैं आसमान को, सूरज भैया कब आयेंगे |
कोटर में छुप गये कबूतर
मुर्गी दडबे में है सोती
सर्दी में बन्दर की देखो
कैसी हालत खस्ता होती
दाँत मंजीरा बजा रहे हैं, भजन कीर्तन ही गायेंगें |
दृष्टिदोष का भ्रम होता है,
साफ़ नहीं देता दिखलायी
घर से कौन बाहर को निकले
सो जाओ मुँह ढॉंप रजाई
उत्सव हो या शोक सभायें, फिर देखेंगे, फिर जायेंगे ।
Sudhakar Ashawadi Sharma
जवाब देंहटाएंठिठुरती रात अब कटती नहीं है
भावना निष्ठुर कभी बंटती नहीं है
करो कोई जतन ठिठुरन मिटाने का
बिन अलावों कंपकंपी मिटती नहीं है.