
1
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दोस्तान को नीलाम कर देंगे|
ये बन्दे-मातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे|
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे |
2
गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे|
जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?
तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे|
जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?
तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?
इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है
कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है
रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है|
4
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये | 5
मानवता का दर्द लिखेंगें माटी की बू बास लिखेंगें
हम अपने इस कालखंड का, एक नया इतिहास लिखेंगें।
सदियों से जो रहे उपेक्षित श्रीमंतों के हरम सजा कर,
उन दलितों की करुण कहानी मुद्रा से रैदास लिखेंगें।
प्रेमचंद की रचनाओं को एक सिरे से ख़ारिज करके
ये ओशो के अनुयायी हैं कामसूत्र पे भाष्य लिखेंगें ।
एक अलग ही छवि बनती है परम्परा भंजक होने से
तुलसी इनके लिए विधर्मी देरिदा को ख़ास लिखेंगें ।
इनके कुत्सित सम्बन्धों से पाठक का क्या लेना देना
ये तो अपनी जिद पे अड़े हैं अपना भोग विलास लिखेंगें।
...अदम गोंडवी
मानवता का दर्द लिखेंगें माटी की बू बास लिखेंगें
हम अपने इस कालखंड का, एक नया इतिहास लिखेंगें।
सदियों से जो रहे उपेक्षित श्रीमंतों के हरम सजा कर,
उन दलितों की करुण कहानी मुद्रा से रैदास लिखेंगें।
प्रेमचंद की रचनाओं को एक सिरे से ख़ारिज करके
ये ओशो के अनुयायी हैं कामसूत्र पे भाष्य लिखेंगें ।
एक अलग ही छवि बनती है परम्परा भंजक होने से
तुलसी इनके लिए विधर्मी देरिदा को ख़ास लिखेंगें ।
इनके कुत्सित सम्बन्धों से पाठक का क्या लेना देना
ये तो अपनी जिद पे अड़े हैं अपना भोग विलास लिखेंगें।
...अदम गोंडवी
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