बुधवार, 4 जनवरी 2012

जाडों के दिन


                 
सर्द हवाओं के झोंके खिडकी से टकराये
धुन्ध भरी रातें लेकर जाडों के दिन आये|

खडा ओस में भीज रहा है  बाहर सन्नाटा,
कोहरे की चादर में लिपटा बॉंसों का जंगल|
जाने किस गुमनाम नदी में जाकर डूब गया
सडकों पर पाला पोसा दिन भर का कोलाहल|

ठंडक की मटकियॉं उठाये निर्बल कंधों पर
जल्दी जल्दी दौड रहे पर्वत पर बादल |
ठिठुर रही निर्वसन देह फूलों की पातों की
और रात  भर रहे कॉंपते झीलों में शतदल|

कौन इन्हें गुनगुनी धूप का दर्पण दिखलाये|
धुन्ध भरी रातें लेकर जाडों के दिन आये|

सारी की सारी हरियाली अन्तरधान हुई
दूर पहाडों पर अम्बर से इतनी बर्फ गिरी|
खुशबु वाले लाल गुलाबों के उस उपवन में
अनगिनती जैसे मोती की लडियॉं हैं बिखरी|

सर्द रात की रसवन्ती मादक तन्हाई में
आओ बॉंह थामकर अग्नि शिखा के पास चलें|
एक आग सी मैं अपने भीतर महसूस करूँ
एक तुम्हारी सॉंसों के रस्ते बाहर निकले |

एक दूजे के लिये चलो हम सूरज बन जायें
धुन्ध भरी रातें लेकर जाडों के दिन आये|
                                                - धर्मजीत सरल


دھرمجيت آسانسرد ہواؤں کے جھوكے كھڈكي سے ٹكرايےدھندھ بھری راتیں لے کر جاڈو کے دن آئے |
کھڑا اوس میں بھيج رہا باہر سناٹا ،کہرے کی چادر میں لپٹا بسو کا جنگل |جانے کس گمنام ندی میں جا کر ڈوب گیاسڑکوں پر پالا پوسا دن بھر کا كولاهل |
ٹھنڈک کی مٹكي اٹھائے نربل کندھوں پرجلدی جلدی دوڑ رہے پہاڑ پر بادل |ٹھٹھر رہی نروسن جسم پھولوں کی پاتو کیاور رام بھر رہے كپتے جھیلوں میں شتدل |
کون انہیں گنگني دھوپ کا آئینہ دكھلايے |دھندھ بھری راتیں لے کر جاڈو کے دن آئے |
ساری کی ساری ہریالی انتردھان ہوئیدور پهاڈو پر امبر سے اتنی برف گری |كھشب والے لال گلابو کے اس اپون میںانگنتي جیسے موتی کی لڈي ہیں بکھری |
سرد رات کی رسونتي منشیات تنہائی میںآؤ به تھام کر آگ شكھا کے پاس چلیں |ایک آگ سی میں اپنے اندر محسوس کروںایک تمہاری سسو کے رستے باہر نکلے |
ایک دوجے کے لیے چلو ہم سورج بن جائیںدھندھ بھری راتیں لے کر جاڈو کے دن آئے |


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