शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

वंशवाद और काबलियत के सवाल


बहस छिड़ी है कि कांग्रेस राहुल गांधी को नेता बनाकर वंशवाद को बढ़ावा दे रही है | क्या देश में और लोग योग्य नहीं हैं जो कांग्रेस के लोग बार-बार केवल नेहरू परिवार से ही अपना नेता चुनते है | आपत्ति अपनी जगह सही है देश में बहुत से युवा है जो नेता हो सकते हैं | दूसरे दलों में भी युवा नेता आगे आ रहे हैं ये अलग बात है कि उनके परिवार वाद पर सवाल नहीं उठाया जा रहा है | राहुल गांधी के साथ दिक्कत यह है कि वे अपने परिवार में चौथी, पांचवी पीढ़ी के नेता हैं | एक दो पीढ़ी तक वारिशों की  नेतागिरी चल सकती है | अगर ऐसा न होता तो सवाल उठाने वाले जयंत चौधरी जैसे पर भी सवाल उठाते |लेकिन नहीं केवल राहुल गांधी पर ऊँगली उठेगी |
प्राय यह देखा जाता है कि शिक्षक के परिवार में शिक्षक ,डाक्टर के डाक्टर,फौजी के फौजी सहजता से बनते जाते हैं| उसी तरह जैसे एक किसान या कारीगर का बेटा किसी अन्य पारिवारिक प्रष्ठभूमि वाले की तुलना में अधिक कुशल होता है | यहाँ तक देखा गया है कि एक परिवार विशेष के अधिकतर सदस्य पीढ़ी दर 
पीढ़ी  आई ए एस बनते रहे हैं | यद्यपि इस के कुछ निंदनीय कारण भी होंगे लेकिन विशेष पारिवारिक माहौल में पलना  बढ़ना किसी क्षेत्र विशेष में माहिर होने में भी मददगार होता है | जो बात किसी  पेशे में लागू होती है वही राजनीति में भी लागू होती है | दूसरी बात यह है कि सम्बंधितको विशेष पारिवारिक प्रष्ठभूमि से   जहां  सुविधा होती है वहीँ असुविधा भी कम नहीं होती | उन्हें  जहां कुछ अच्छइयां मिलाती हैं जिन्हें बरकरार रखने  की जिम्मेदारी  होती है वहीँ कुछ दाग धब्बे मिलते हैं जिनके कसूरवार वे  नहीं होते पर उन्हें धोने की जिम्मेदारी जरूर उनकी  होती है | राहुल गांधी के साथ ये सब बातें जुडी हैं | किसी भी नए व्यक्ति के मुकाबले उन पर स्वयं को योग्य उम्मीदवार साबित करने का भारी दबाव है | विरोधी उनकी सिर्फ इसलिए आलोचना करते हैं कि वो नेहरू परिवार से हैं | उन्हें उनमें और  कोई कमी नहीं दिखाई देती | क्या नेहरू परिवार में जन्म लेना उनके हाथ में था ? क्या उन्हें सिर्फ इसलिए राजनीति में नहीं आना चाहिए क्योंकि उनके नाना दादी प्रधान मंत्री थे ? क्या उनहोंने देश को जानने समझने के सतत प्रयास नहीं किये ? अगर वो ऐसा करने से पहले ही देश के प्रधानमन्त्री बन जाते तो कुछ बात नागवार लग सकती थी लेकिन लगातार जनता के बीच रहकर उसके लिए आवाज उठाने के बाद भी किसी पद पर दावेदारी न करते हुए  राजनीति करना क्या इसलिए गलत कहा जाएगा कि वे स्थापित राजनीतिक परिवार से हैं |[ वैसे पद पर दावेदारी करने में भी कुछ गलत न होगा | बाकी लोगों की तरह उन्हें भी इसका हक़ है | पद ग्रहण करने कामतलब अपने  कहे को करके दिखा देने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के योग्य साबित करना भी है | वरना दूसरों की आलोचना  या रास्ता  बताने   का काम   तो कोई भी कर सकता है |] लोग यह नहीं देख रहे कि अगर दुसरे दलों में युवा नेतृत्व  को महत्व दिया जा रहा है तो वह राहुल गांधी के तेवर देखकर ही दिया जा रहा है | हमारे युवा अगर राहुल गांधी जैसे नेता के नेतृत्व  में आगे बढ़ रहे हैं तो यह सचमुच में नया भारत गढ़ रहे हैं | वे मंदिर मस्जिद या जात पांत की बात नहीं करते वे कंप्यूटर , लैपटॉप और रोजगार की बात करते हैं | वे भाषा या ईलाकायी भावनाओं में नहीं बहते वे वैश्विक द्रष्टि रखते हैं | वे इतिहास के गढ़े मुर्दे नहीं उखाड़ते नव निर्माण के स्वप्न बुनते हैं वे नफरतों को मोहब्बतों में बदलते हैं| उनका खैरमकदम किया जाना चाहिए बेवजह हिकारत से नहीं देखा जाना चाहिए |



بحث چھڑی ہے کہ کانگریس راہل گاندھی کو لیڈر بنا کر نسل پرستی کو فروغ دے رہی ہے | کیا ملک میں اور لوگ قابل نہیں ہیں جو کانگریس کے لوگ بار - بار صرف نہرو خاندان سے ہی اپنا لیڈر منتخب کرتے ہیں | اعتراض اپنی جگہ درست ہے ملک میں بہتسے نوجوان ہے جو لیڈر ہو سکتے ہیں | دوسری جماعتوں میں بھی نوجوان لیڈر آگے آ رہے ہیں یہ الگ بات ہے کہ ان کے خاندان واد پر سوال نہیں اٹھایا جا رہا ہے | راہل گاندھی کے ساتھ دقت یہ ہے کہ وہ اپنے خاندان میں چوتھی، پانچویں نسل کے لیڈر ہیں | ایک دو نسل تک وارشو کی نےتاگري چل سکتی ہے | اگر ایسا نہ ہوتا تو سوال اٹھانے والے جینت چودھری جیسے پر بھی سوال اٹھاتے | لیکن نہیں صرف راہل گاندھی پر اوںگلی اٹھے گی |عام طور پر یہ دیکھا جاتا ہے کہ اساتذہ کے خاندان میں اساتذہ، ڈاکٹر کے ڈاکٹر، فوجی کے فوجی آسانی سے بنتے جاتے ہیں | اسی طرح جیسے ایک کسان یا کاریگر کا بیٹا کسی دیگر خاندانی پرشٹھبھوم والے کے مقابلے میں زیادہ ہنر ہوتا ہے | یہاں تک دیکھاگیا ہے کہ ایک خاندان خاص کے زیادہ تر رکن نسل در نسل آئی اے ایس بنتے رہے ہیں | اگرچہ اس کے کچھ ندنيي وجہ بھی ہوں گے لیکن خاص خاندانی ماحول میں پلنا بڑھنا کسی علاقے خاص میں ماہر ہونے میں بھی مدد گار ہوتا ہے | جو بات کسی پیشے میں ہوتا ہے وہی سیاست میں بھی لاگو ہوتی ہے | دوسری بات یہ ہے کہ سمبدھتكو خاص خاندانی پرشٹھبھوم سے جہاں سہولت ہوتی ہے وہیں تکلیف بھی کم نہیں ہوتی | انہیں جہاں کچھ اچچھيا ملاتي ہیں جنہیں برقرار رکھنے کی ذمہ داری ہوتی ہے وہیں کچھ داغ دھبے ملتے ہیں جن کے كسوروار وہ نہیں ہوتے پر ان کو دھونے کی ذمہ داری ضرور ان کی ہوتی ہے | راہل گاندھی کے ساتھ یہ سب باتیں ربط ہیں | کسی بھی نئے شخص کے مقابلے ان پر خود کو اہل امیدوار ثابت کرنے کا بھاری دباؤ ہے | مخالف ان کی صرف اس لئے تنقید کرتے ہیں کہ وہ نہرو خاندان سے ہیں | انہیں ان میں اور کوئی کمی نہیں دکھائی دیتی | کیا نہرو خاندان میں پیدائش لینا ان کے ہاتھ میں تھا؟کیا انہیں صرف اس لئے سیاست میں نہیں آنا چاہئے کیونکہ ان کے نانا نانی وزیر اعظم تھے؟ کیا انهونے ملک کو جاننے سمجھنے کی مسلسل کوشش نہیں کی؟ اگر وہ ایسا کرنے سے پہلے ہی ملک کے پردھانمنتري بن جاتے تو کچھ بات ناگوار لگ سکتی تھی لیکن مسلسل عوام کے درمیان رہ کر اس کے لئے آواز اٹھانے کے بعد بھی کسی عہدے پر دعویداری نہ کرتے ہوئے سیاست کرنا کیا اس لئے غلط کہا جائے گا کہ وہ قائم سیاسی خاندان سے ہیں | [ویسے عہدے پر دعویداری کرنے میں بھی کچھ غلط نہ ہوگا | باقی لوگوں کی طرح انہیں بھی اس کا حق ہے | عہدہ قبول کرنے كامتلب اپنے کہے کو کر کے دکھا دینے کی ذمہ داری کا نروهن کرنے کے قابل ثابت کرنا بھی ہے | ورنہدوسروں کی تنقید یا راستہ بتانے کا کام تو کوئی بھی کر سکتا ہے |] لوگ یہ نہیں دیکھ رہے کہ اگر دوسری جماعتوں میں نوجوان قیادت کو اہمیت دی جا رہی ہے تو وہ راہل گاندھی کے تیور دیکھ کر ہی دیا جا رہا ہے | ہمارے نوجوان اگر راہل گاندھی جیسے رہنما کی قیادت میں آگے بڑھ رہے ہیں تو یہ واقعی میں نیا بھارت گڑھ رہے ہیں | وہ مندر مسجد یا ذات پات کی بات نہیں کرتے وہ کمپیوٹر، لیپ ٹاپ اور روزگار کی بات کرتے ہیں | وہ زبان یا يلاكايي جذبات میں نہیں بہتے وہ عالمی درشٹ رکھتے ہیں | وہ تاریخ کے باندھے بے حس نہیں اكھاڑتے نئے تعمیر کے خواب بنتے ہیں وہ نفرتوں کو محبتوں میں تبدیل کرتے ہیں | ان كھےرمكدم کیا جانا چاہئے بے وجہ حقارت سے نہیں دیکھا جانا چاہیے |

1 टिप्पणी:

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    Ankur Tomar, Mohammed Anas and 2 others like this.

    1-चंदन कुमार मिश्र बढिया... लेकिन और सारे क्षेत्रों में एक उम्र तक या शुरू से ही अपने क्षेत्र का चुनाव होता है लेकिन राहुल लम्बे समय तक राजनीति में नहीं आये थे... और बड़ी बात कि वे सिर्फ बात करते हैं... बड़े पद पर होने के बावजूद उनके द्वारा कोई कदम उठाया नहीं गया जिससे उनसे उम्मीद लगाने का कोई भी कारण दिखता नहीं... ...
    12 hours ago · Like · 1

    2-चंदन कुमार मिश्र वंशवाद का शोर कुछ खास नहीं है... ... हाँ, मौका जल्दी तो मिल ही जाता है वरना क्या कोई दूसरा युवा इतने कम समय की राजनीति में इतना जाना जाता ?
    12 hours ago · Like
    3-अमरनाथ मधुर मेरा कहना है कि उनके राजनीति में कम समय या अन्य कारणों को लेकर आलोचना कि जानी चाहिए वंश को लेकर नहीं | उससे अच्छा तो कब्र में पैर लटकाये पुराने ख्यालात के नेताओं को निशाना बनाना है जो कोई नहीं कर रहा है
    12 hours ago · Unlike · 3

    4-चंदन कुमार मिश्र मानव स्वभाव फिर अपने देश का स्वभाव ... ... कुछ खास गलत भी नहीं कर रहे... ... संघर्ष के बिना सफलता मिलने पर लोगों में स्वाभाविक नाराजगी भी हो सकती है... ... इसलिए कुछ खास गलत नहीं आलोचना लेकिन बुढउ लोगों की और सब दलों के लिए भी यह बात तो होनी ही चाहिए... ... उम्र भी कोई खास बात नहीं... ... क्योंकि बहुत सारे उदाहरण हैं बूढे नेताओं के जैसे फिदेल कास्त्रो का ही... ...
    12 hours ago · Like

    5-श्रद्धान्शु शेखर - अच्छा विश्लेषण है . मैं कांग्रेस्स्य नहीं हूँ lekin राहुल का नेतृत्व ठीक लगता है . हो सकता है की वो बेकार नेता साबित हो लेकिन आधुनिक समय का अनुकूल है . नेहरु भी आधुनिक सोच के नास्तिक थे .
    12 hours ago · Unlike · 1
    6-अमरनाथ मधुर - फिदेल को भी हट जाना चाहिये और ये परखना चाहिये उनके मार्दर्शन में जो पीढ़ी तैयार हुयी है वो उनके सपनों के अनुरूप है या नहीं | नहीं तो उनके बाद सब ret के महल की तरह बिखर जाएगा और फिर कामरेड नयी नयी थ्योरी तलाशते नजर आयेगें लेकिन लाल झंडा नहीं लहरा पायेगा |
    12 hours ago · Like · 1

    7-चंदन कुमार मिश्र फिदेल अब हट गये हैं। उम्र नहीं विचार, राजनीति और तरीका कारगर है। उम्र का महत्व होता है लेकिन उतना नहीं! राहुल गलत क्षेत्र चुन रहे हैं, ऐसा लगा है हमे भी... क्योंकि पिछले कई सालों में उनका कोई योगदान युवा पीढी के लिए या भारत के लिए महत्वपूर्ण है ही नहीं, जबकि कांग्रेस के अंदर उनका कद बड़ा है।
    12 hours ago · Like · 1
    8-अमरनाथ मधुर महात्मा गांधी ने किसी पद पर न रहकर व्यवस्था को मर्यादा में रखने का जो कौशल दिखाया वरिष्ट नेताओं का वही दायित्व है|
    12 hours ago · Like

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