बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

प्यार का एक दिन


                   
            ये नहीं हो सकता  वेलन्टाई डे हो और  मेरठ  में कुछ बदमजगी न हो | आज मंदिर जा रहे कुछ लडके और लड़कियों को पुलिस  पकड़कर थाने ले गयी | पुलिस बेचारी क्या करे? वो कैसे  मानती  कि आज के  दिन भी नौजवान लडके लड़कियां मंदिर जा सकते हैं | आज तो प्रणय दिवस है| मन के मंदिर में बसी  मूरत  को फूल भेंट करने का दिन |लेकिन  युवा  थे कि मन के अन्दर न जाकर मंदिर जा रहे थे | हो सकता है कि संस्कृति के रक्षकों  ने  समझाया  हो कि  प्रेम तो तुम जरूर करोगे, कोई करे बिना नहीं मानता फिर तुम क्यों मानने लगे, लेकिन ऐसा करो कि मंदिर में भगवान जी को  शीश झुका के इजाजत ले लेना फिर चाहे जो करना | या कुछ  ये बात  रही हो वे मातृ पितृ दिवस मना के आयें  हों और माँ- बाप  ने  मंदिर में भगवान  को प्रसाद चढाने का आदेश दिया हो और वे माता -पिता  की आज्ञ   का पालन करते हुए देवता को प्रसाद चढाने जा रहे  हों |  सही बात हमें नहीं पता |  लेकिन इतना जरूर पता  है कि उन्हें मुक्ति  तभी  मिली जब उनके  माँ बाप थाने पर  उन्हें   छुडाने पहुँच गए |  

                                    
                    कई साल पहले तो  पुलिस ने   बाकायदा   फरमान   जारी  कर   दिया   था कि पार्क,  रेस्तरां    में वही   जोड़ा   बैठ   सकता है जिसके    पास   अपने  अभिवावक  से   भाई    बहिन    होने    का लिखित    प्रमाणपत्र    हो|  पुलिस बाकायदा चैक करती और उससे भी ज्यादा संस्कृति के स्वयभू पहरेदार सक्रिय रहते| जहां कहीं कोई लड़का लड़की एक साथ दिखायी देते वो उन्हें बेइज्जत करते | भले ही वो सगे  भाई  बहिन ही क्यों न हों |हुआ करे किसी के माथे पर लिखा है की वे भाई  बहिन हैं | युवाओं के विरोध करने पर सांस्कृतिक  राक्षसों  का यही तर्क होता था | एक महिला पुलिस अफसर ने इतना आतंक फैलाया कि लेडीज  पार्क में बैठी शादीशुदा  और अकेली  महिलाओं को भी नहीं बख्सा |अब   बेचारे कितने   जोड़ों  को किराए के  माँ   बाप जुटाने पड़े होंगें | आय जाति के प्रमाणपत्र से भी ज्यादा कठिन रहा होगा भाई बहिन होने का प्रमाणपत्र बनवाना | अबकी  बार  सांस्कृतिक  पुलिस इतनी  सक्रीय  नहीं  दिखी|  चुनाव  की जिम्मेदारी  भी उनके  सर पर  है तथा  युवा वोटरों  की तादाद  भी काफी  है| ऐसे  में उन्हें  नाराज  करने का जोखिम  कोन  उठाता | हालत  वैसे  ही  बहुत  पतली  चल  रही है|  लेकिन  हिन्दु संस्कृति को बचाये रखने की भारी जिम्मेदारी भी तो इन्होंने अपने सिर पर ले रखी है उसे कैसे छोड सकते है। कहीं ऐसा न हो कि ये उधर चुनाव के रणक्षेत्र में विपक्षी से जूझ रहे हों और इधर कोई संस्कृति के कमजोर धागे तोड़ दे |इसलिये इन्होंने बहुत सोच समझकर एजेण्डा जारी कर दिया कि 14 फरवरी 'मातृ -पितृ पूजन दिवस' के रूप में मनाया जायेगा। 


               कितनी अच्छी बात कही है। माता पिता के सम्मान को कौन नकार सकता है।  ये लोग  यह भूल गये हिन्दु धर्म में पहले से ही इतने पर्व और पवित्र दिन है जितने साल के कुल दिन भी नहीं हैं |भला उनमें पूजा का एक दिन और जोड देने से क्या फर्क पडने वाला है। हिन्दू धर्म और संस्कृति के पतन का तो एक बडा कारण इन कर्मकाण्डों का मकडजाल ही है। अत: सांस्कृतिक झण्डाबरदारों के इस आहवान का कोई असर युवा पीढी पर होने वाला नहीं था| इस बात से  स्वयं ये भी भली भॉंति परिचित थे। इसे दृष्टिगत रखते हुये इन्होंने भारतीय जनमानस के एक सबसे सवेंदनशील और  महत्वपर्ण मुददे को उठाते हुये कहा कि 14 फरवरी 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरू को फॉंसी की सजा सुनायी गयी थी इसलिये इस दिन को शहीद स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिये। अब कहो क्या कहते हो ? है कोई जबाब? कितनी अच्छी-अच्छीबातें इन्हें  आज के दिन याद आ गयी हैं | इनसे कोई पूछे कि बाकि दिन भी तुम्हें याद रहता कि  कोन? कब? किसलिय? शहीद हुआ था? ये भी पूछा जाना चाहिये कि जब वे फॉंसी की तैयारी कर रहे थे तब तुम क्या कर रहे थे?
                  हकीकत ये है कि ये तब भी उन शहीदों की राह में कॉंटे बिछा रहे थे और आज भी उनके सपनों को तहस नहस करन में जुटे हुये हैं। इस लिये इनके मुँह से शहीदों का नाम सुनकर ही मितली आने लगती है। वैसे भी इन्हें शहीदों से कुछ लेना देना नहीं है| असल में इन्हें परेशानी युवा पीढी की  स्वतंत्र सोच से है, विदेशी सन्त वेलन्टाई से है। माईकेल जैक्सन इनका अतिथि हो सकता है, लेकिन वेलन्टाई की छाया भी इनके यहॉं नहीं पडनी  चाहिये। इन्हें खतरा है कि नेकरधारी अविवाहित प्रचारक वेलन्टाई को न जान लें। वो अगर ये जान गये कि हमारे संस्कृति के स्वयंभू महन्त जहॉं अप्राकृतिक जीवन शैली  को आदर्श बताते हैं वहॉं पश्चिम में एक ऐसा भी सन्त हुआ है जो प्रेम को मानव की स्वभाविक क्रिया मानता है बल्कि सर्वात्तम क्रिया कहता है और उसके लिये अपने प्राण तक न्यौछावर कर देता है। किसका जीवन दर्शन श्रेष्ठ है उन्मुक्त प्रेम का? या पग.पग पर बन्दिशों का?।        

                     स्कूल   कालिज    के लडके लड़कियों में वेलन्टाई  डे का उल्लास  ज्यादा  होता   है| हो भी क्यों न |सही  मायने  में यही तो उम्र होती   है जब   आँखों   में रगीन सपने झिलमिलाते   रहते   हैं|हर   लड़का   अपने   को सलमान  खान और हर लड़की अपने को करीना कपूर समझती है| प्रेम की ज्यादातर  कथाएं  यहीं लिखी जाती हैं | मैं  कई  वर्षों  से  सुबह  शाम  फुटबाल खेलने सी. सी. एस  युनिवर्सिटी   कैमप्स   में  जाता  हूँ| यद्यपि मेरी उम्र अब फुटबाल  खेलने  की नहीं रही लेकिन मुझे पसंद है इसलिये खेलता हूँ |किन्हीं   कारणों   से  कई  महीने  से   जाना  नहीं हुआ| परसों  गया  तो मैंने  एक  खास  बात  देखी| वहाँ साहित्यकार  कुटीर  के पीछे  एक  पेड़  है जिसका  एक  मजबूत  तना  जमीन   के समांतर  इस  प्रकार   झुका था कि  उस  पर  कोई भी लेट   सकता था| जब   भी मैं  उधर  से   गुजरता  उस  पर  कोई न  कोई लड़का  उस पर  इस   प्रकार  लेटा  मिलता  जैसे  कदम्ब  के पेड़   पर   कृष्णजी    लेटे  हुए  बांसुरी  बजाते   दिखाये जाते   हैं |जैसे राधा  उनके  पास  खड़ी  बांसुरी सुनती  रहती  है वैसे ही एक  न एक   लड़की  भी ऐसे  ही  खड़ी   दिखती  थी| सयाने लोग  देखते  थे और मुस्काराते  या नजर  बचाते  गुजर  जाते  थे| युवाओं   को कुछ मतलब  न था| अगर  वो जगह   पहले  से  घिरी  होती तो दूसरा   भूलकर  भी उधर  न देखता| वहीँ  आस  पास कहीं  मैदान  में बैठ  जाता| सुबह  शाम   जितना  मेरा  तन मन वहां  घूमने   से   स्वस्थ  होता   था  उतना   ही  उस द्रश्य को   देखने  से  भी होता  था |  मुझे   कभी  नहीं लगा  कि ये गैर  जिम्मेदार   युवा हैं या  बिगड़    गए  हैं|

                                    
                         अब  उधर  एक  अरसे के  बाद   जाना  हुआ  तो मैंने  देखा  कि  उस  पेड़   की उस  झुकी   डाल   को कटवा   दिया  गया   है | अब  वहाँ  कोई प्रेमी  युगल  नहीं बैठ  सकता | पेड़  कटते   हैं तो कितने परिन्दों  का ठिकाना   उजड़ा  जाता  है| उनकी  चहचहट   उनके  नाच रंग  जिंदगी  में गीत  संगीत  बनकर    गूंजते    हैं| हमारी  जिन्दगी  में नया उल्लास भरते  हैं, ताजगी  देते हैं | हम   उनके  न जाने  क्यों दुश्मन  बने  हुयें   हैं| मुझे  प्रेमी  युगल  उन  परिन्दों  की   तरह  लगते  जिनका  सारा   जमाना   दुश्मन   बना   हुआ  है| वो विश्विद्यालय  है जहां पता नहीं कहाँ-कहाँ  से बच्चे पढ़ने आते हैं| ऐसे जैसे पंछी  दूर दूर के देशों से आते हैं और अपना सीजन पूरा कर हमें नये गान,नये नाच, नये रंग दिखाकर उड़  जाते हैं| हमें उन परिन्दों को अच्छे से रखना चाहिए या उनका धोखे से  शिकार करें?लेकिन  हम शिकार  कर रहे हैं, पंछियों का स्वाद के लिए युवा प्रेमियों का झूठी शान के लिये| इसलिये संत  वेलन्टाई  की किसी भी दूसरे देश के मुकाबले   हिन्दुस्तान को  ज्यादा जरूरत है|  एक यही तो देश है जहां प्रेमी जनों की ओनर किलिंग हो रही है | एक ऐसा देश जिसकी प्राचीन संस्कृति में बसंतोत्सव है कान्हा है, राधा है पता  नहीं क्यों कबीलाई मानसिकता में जी रहा  है | ओनर किलिंग कबीलों में भी शायद नहीं होता  वहाँ भी उन्मुक्त  प्रेम के किस्से हैं | यहाँ  तो स्वय भगवान कृष्ण ने अर्जुन के प्रेम को देखते हुए अपनी बहिन सुभद्रा  पलायन करने  में सहायता के उदाहरण मोजूद  हैं फिर प्रणय दिवस को संस्कृति विरोधी कैसे कहा जा सकता है | निश्चय ही कुछ लोगों की दूषित मानसिकता  के कुछ गंभीर और एतिहासिक कारन होंगे लेकिन  ये प्रगतिशीलता और तार्किकता से  कोसों दूर हैं | जात पांत और दहेज़ प्रथा ने हमारे समाज  को जिस बुरी तरह से जकड रखा है और उसके  दुषपरिणामों   से कितने लोगों की जिंदगी  नरक   बन  रही है उससे  मुक्ति  की राह प्रेम  की राह  पर चलकर ही मिलेगी | इसलिए   मैं   कहता  हूँ  कि संत  वेलन्टाई  की किसी भी दूसरे देश के मुकाबले हिन्दुस्तान को  ज्यादा जरूरत है| बसंत पंचमी से 14 फरवरी तक युवा महोत्सव मनाया  जाना  चाहिए जिसमें  विभिन्न  जाति, धर्मों.प्रदेशों  और देशों के युवाओं को  एक दूसरे  के बीच जाकर अपनी सांस्कृतिक कलाओं का आदान प्रदान करना चाहिये| शान्ति, मैत्री  और प्रगति कि दिशा में यह एक बड़ा कदम सिद्ध होगा |     

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