शहरयार
यूँ तो घर में (ननिहाल में) जब से आँख खुली तबसे उर्दू के ही शायरों मीर, ग़ालिब, दर्द, सौदा और न जाने कितने उर्दू शायरों/ अदीबों का हीज़िक्र सुन सुन कर बड़ा हुआ... लेकिन एक शायर का नाम और उसकी शख्सियत का ज़िक्र कुछ अलग ही था.. वो नाम था शहरयार साहबका... क्यूंकि वो एक आधुनिक उर्दू कविता के एक अज़ीम शायर होने के साथ साथ नाना के क्लासमेट भी थें.... और मामू के उस्ताद भी थें..नाना अक्सर कहा करते थे कि जब अलीगढ में फर्स्ट डिविजन लाना टेढ़ी खीर साबित हुआ करता था.. तब उन दिनों में एम. ए में सिर्फ दोलोगों, नाना और शहरयार साहब ने ही फर्स्ट डिविजन पाया था.... मामू उनकी एक ग़ज़ल " पहले नहाई ओस में, फिर आंसुओं में रात, यूँ बूँदबूँद उतरी हमारे घरों में रात" को ख़ास तौर पे उर्दू ग़ज़ल में मील का पत्थर कहा करते थे. घर में उन दिनों (नाना के वक्त) के अलीगढ के उनतमाम अदीब हस्तियों मसलन शहरयार, राही, खलीलुर रहमान आज़मी, मो. हसन वगैरह के नाम सुन सुन कर अलीगढ आने का खवाब मैं भीदेखने लगा था.. हालाँकि बचपन से घर पर भले ही मुझे उर्दू पढाई गयी लेकिन नाना ने मुझे हिंदी और संस्कृत कि पारंपरिक शिक्षा दिलवाई..उनका कहना था कि घर में सबने उर्दू इंग्लिश कि तालीम हासिल कि मैं चाहता हूँ कि तुम हिंदी संस्कृत कि तालीम हासिल करो.. इस तरह सेमुझे एक दूसरी लाइन पर डाला गया लेकिन विरासत में उर्दू का मिला मिज़ाज मेरा पीछा छोड़ने को राज़ी न हुआ.. अलीगढ आने के बाद भीमेरी दिलचस्पी खास तौर से उर्दू शायरी में बनी रही..
ज़ाहिर सी बात है यहाँ आकर मेरे इस मिज़ाज को एक भरा पूरा माहौल मिला.. जब मैं यहाँ आया तो तब जिन नामों को मैं सुनता आया थाउनमें शहरयार साहब ही अकेले थें जो बा हयात थें.. और जिनसे मिला मिलाया जा सकता था.. २००६ तक मैं कभी उनसे मिला नहीं, मुशायरोंऔर कुछ एक सेमिनारों में उनको सुना, देखा. लेकिन २००६ में जब मैं आदरणीय गुरुवर प्रो. के.पी.सिंह के सानिध्य में गया तब मैंने पाया किवो अमूमन वहाँ आते रहते थे....एक दिन उन्होनें सर से मेरे बारे में पूछा में तो सर ने कहा कि अपना तआर्रुफ़ करवाओ.. फिर जब में उन्हेंबताया कि मैं आपके क्लासमेट मो. इरशाद खान का नवासा हूँ तो सच कहता हूँ एकदम खिल उठे और तुरंत मुझसे नाना का फोन नंबर माँगाऔर अपने मोबाइल से तुरंत मिलाया.. लगभग ३०- ४० साल बाद उन दोनों सहपाठियों की बातचीत हुयी.. बात करने के बाद बेहद ख़ुशी केसाथ उन्होंने सर से कहा कि के. पी पूरे क्लास में हमीं दो मर्द थें.. हम दोनों की ही फर्स्ट डिविजन आई थी.. उन दिनों को याद करते हुए बेहदखुश हुए.. वो मेरे लिए एक बड़ा दिन था..लेकिन उससे बड़ा दिन अभी आना था..
इस बातचीत और मुलाक़ात हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन गुरुवर ने कहा कि तुम शहरयार साहब के पास जाकर वर्तमान साहित्यके नए अंक के लिए दो नई ग़ज़ल ले आओ.. मैं गया. उन्होंने बिठाया, बात चीत करते रहे.. फैमिली के बारे में पूछते रहे.. और दो नयी ग़ज़लमेरी डायरी पर अपने हाथों से लिखी. फिर मेरे इसरार पर उन्होंने "पहली नहाई ओस में" वाली पूरी ग़ज़ल लिखी... और उसपर लिखा एक पुरानी ग़ज़ल शाहबाज़ के लिए..(फोटो डायरी के उसी पेज का है).. ये मेरे लिए बेशक एक और बेहद बड़ा दिन था... उस लम्बी चौड़ी बेहदसुंदर सी डायरी में कुल तीन पेज ही लिखे हैं आजतक.. वही तीन पेज जो उन्होनें अपने हाथ से लिखे.. बस वही तीन! लेकिन मेरे लिए येकिसी असंख्य पृष्ठों वाली महान ग्रथों से भी बढ़ कर है.. ये मेरी संपत्ति है.. हाँ मेरी संपत्ति है..
उस दिन उनकी और नाना कि वो आखिरी बात थी क्यूंकि इसके दिन के कुछ महीने बाद ही नाना का इंतकाल होगया..... जब ये बात उन्हेंपता चली तो बेहद उदास हुए.. और कुछ नहीं बोले.. नाना के नहीं रहने के बाद मैं भी ज़िन्दगी की कशमकश में फंस गया और गुरुवर कासानिध्य भी छूट सा गया..उनसे रूबरू होने वाली मुलाकातें छूट गयीं..हालाँकि सेमिनारों में मुलाकातें तो होती रहीं. कभी कभी मौक़ा निकलकर सामने पहुँच जाता तो हाल चाल पूछते....
मैं उनकी शायरी का दीवाना हूँ.. बहुत लोग दीवाने हैं.. लेकिन उनकी शायरी पर मैं कुछ कहूं मैं इस लायक नहीं हूँ.. दीवाना कब किसी लायकहुआ है... मैं बस ये कहना चाहता हूँ.. मुझे एक अज़ीम शायर के चले जाने का बेहद अफ़सोस है लेकिन उससे ज़यादा मुझे उस ज़माने के चलेजाने का अफ़सोस है जिस को सुन सुन कर मैं बड़ा हुआ था.. ..एक पूरी परम्परा के चले जाने का अफ़सोस है|
-शहबाज़ अली खान
शहरयार साहब की मशहूर गजल
1
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता |
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता |
२
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं
इक तुम ही नहीं तन्हा उलफ़त में मेरी रुसवा
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं
इक सिर्फ़ हम ही मय को आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में मैख़ाने हज़ारों हैं
कहने को तो दुनिया में मैख़ाने हज़ारों हैं
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ को आँधी से डराते हो
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं|
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं|
३
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमेंये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें |
४
दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये
इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
दीवार-ओ-दर को ग़ौर से पहचान लीजिये
दीवार-ओ-दर को ग़ौर से पहचान लीजिये
माना के दोस्तों को नहीं दोस्ती का पास
लेकिन ये क्या के ग़ैर का एहसान लीजिये |
लेकिन ये क्या के ग़ैर का एहसान लीजिये |
कहिये तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये
یوں تو گھر میں (ننهال میں) جب سے آنکھ کھلی تب سے اردو کے شعرائے کرام ہی میر، غالب، درد، سودا اور نہ جانے کتنے اردو شعرائے کرام / اديبو کا هيذكر سن سن کر بڑا ہوا ... لیکن ایک شاعر کا نام اور اس کی شخصیت کا ذکر کچھ الگ ہی تھا .. وہ نام تھا شہرےار ساهبكا ... کیونکہ وہ ایک جدید اردو شاعری کے ایک عظیم شاعر ہونے کے ساتھ ساتھ نانا کے كلاسمےٹ بھی تھے .... اور ماموں کے استاد بھی تھے .. نانا اکثر کہا کرتے تھے کہ جب اليگڈھ میں فرسٹ ڈویژن رزلٹ لانا ٹیڑھی کھیر ثابت ہوا کرتا تھا .. تب ان دنوں میں ایم اے میں صرف دولوگو، نانا اور شہرےار صاحب نے ہی فرسٹ ڈویژن رزلٹ پایا تھا .... ماموں ان کی ایک غزل "پہلے نہائ اوس میں، پھر آنسوؤں میں رات، یوں بودبود اتری ہمارے گھروں میں رات" کو خاص طور پر اردو غزل میں سنگ میل کہا کرتے تھے. گھر میں ان دنوں (نانا کے وقت) کے اليگڈھ کے انتمام ادیب شخصیات مثلا شہرےار، راہی، كھليلر الرحمن اعظمی، محمد حسن وغیرہ کے نام سن سن کر اليگڈھ آنے کا كھواب میں بھيدےكھنے لگا تھا .. حالانکہ بچپن سے گھر پر بھلے ہی مجھے اردو پڑھائی گئی لیکن نانا نے مجھے ہندی اور سنسکرت کہ روایتی تعلیم دلوائی .. ان کا کہنا تھا کہ گھر میں سب نے اردو انگلش کہ تعلیم حاصل کہ میں چاہتا ہوں کہ تم ہندی سنسکرت کہ تعلیم حاصل کرو .. اس طرح سےمجھے ایک دوسری لائن پر ڈالا گیا لیکن وراثت میں اردو کا ملا مزاج میرا پیچھا چھوڑنے کو راضی نہ ہوا .. اليگڈھ آنے کے بعد بھيمےري دلچسپی خاص طور سے اردو شاعری میں بنی رہی ..
ظاہر سی بات ہے یہاں آ کر میرے اس مزاج کو ایک بھرا مکمل ماحول ملا .. جب میں یہاں آیا تو اس وقت جن ناموں کو میں سنتا آیا تھانمے شہرےار صاحب ہی اکیلے تھے جو با حیات تھے .. اور جن سے ملا ملایا جا سکتا تھا .. 2006 تک میں کبھی ان سے ملا نہیں، مشايروور کچھ ایک سےمنارو میں ان کو سنا، دیکھا. لیکن 2006 میں جب میں محترم گرور پروفیسر. كےپي سنگھ کے ساندھي میں گیا تب میں نے پایا كوو عموما وہاں آتے رہتے تھے .... ایک دن انہوں نے سر سے میرے بارے میں پوچھا میں تو سر نے کہا کہ اپنا تاررف كرواو .. پھر جب میں انهےبتايا کہ میں آپ کے كلاسمےٹ محمد. ارشاد خان کا نواسا ہوں تو سچ کہتا ہوں ایک دم کھل اٹھے اور فورا مجھ سے نانا کا فون نمبر ماگاور اپنے موبائل سے فوری طور پر ملایا .. تقریبا 30 - 40 سال بعد ان دونوں سهپاٹھيو کی بات چیت ہوئی .. بات کرنے کے بعد بے حد خوشی کےساتھ انہوں نے سر سے کہا کہ کے. پی پورے کلاس میں ہمیں دو مرد تھے .. ہم دونوں کی ہی فرسٹ ڈویژن رزلٹ آیا تھا .. ان دنوں کو یاد کرتے ہوئے بےهدكھش ہوئے .. وہ میرے لئے ایک بڑا دن تھا .. لیکن اس سے بڑا دن ابھی آنا تھا ..
اس بات چیت اور ملاقات ہوئے ابھی کچھ ہی دن ہوئے تھے کہ ایک دن گرور نے کہا کہ تم شہرےار صاحب کے پاس جا کر موجودہ ساهتيكے نئے پوائنٹس کے لیے دو نئی غزل لے آاو .. میں گیا. انہوں نے بٹھایا، بات چیت کرتے رہے .. فیملی کے بارے میں پوچھتے رہے .. اور دو نئی غذلمےري ڈائری پر اپنے ہاتھوں سے لکھی. پھر میرے اسرار پر انہوں نے "پہلی نہائ اوس میں" والی پوری غزل لکھی ... اور اس پر لکھا ایک پرانی غزل شہباز کے لئے .. (تصویر ڈائری کے اسی پیج کا ہے) .. یہ میرے لئے یقینا ایک اور بے حد بڑا دن تھا ... اس لمبی چوڑی بےهدسدر سی ڈائری میں کل تین پیج ہی لکھے ہیں اجتك .. وہی تین پیج جو انہوں نے اپنے ہاتھ سے لکھے .. بس وہی تین! لیکن میرے لئے يےكسي اسكھي صفحات والی عظیم گرتھو سے بھی بڑھ کر ہے ..یہ میری ملکیت ہے .. ہاں میری ملکیت ہے ..
اس دن ان کی اور نانا کہ وہ آخری بات تھی کیونکہ اس کے دن کے کچھ ماہ بعد ہی نانا کا انتقال ہوگیا ..... جب یہ بات انهےپتا چلی تو بے حد اداس ہوئے .. اور کچھ نہیں بولے .. نانا کے نہیں رہنے کے بعد میں بھی زندگی کی کشمکش میں پھنس گیا اور گرور كاساندھي بھی چھوٹ سا گیا .. ان سے روبرو ہونے والی ملاكاتے چھوٹ گئی .. حالانکہ سےمنارو میں ملاكاتے تو ہوتی رہیں. کبھی کبھی موقع نکل کر سامنے پہنچ جاتا تو حال چال پوچھتے ....
میں ان کی شاعری کا دیوانہ ہوں .. بہت لوگ دیوانے ہیں .. لیکن ان کی شاعری پر میں کچھ کہوں میں اس لائق نہیں ہوں .. دیوانہ کب کسی لايكها ہے ... میں بس یہ کہنا چاہتا ہوں .. مجھے ایک عظیم شاعر کے چلے جانے کا بے حد افسوس ہے لیکن اس سے زیادہ مجھے اس زمانے کے چلےجانے کا افسوس ہے جس کو سن سن کر میں بڑا ہوا تھا .. .. ایک پوری روایت کے چلے جانے کا افسوس ہے |
- شہباز علی خان
شہرےار صاحب مشہور گجل
1
کبھی کسی کو مکمل جہاں نہیں ملتاکہیں زمیں تو کہیں آسماں نہیں ملتا
جسے بھی دیکھیے وہ اپنے آپ میں گم ہےذبا ملی ہے مگر همذبا نہیں ملتا
بجھا سکا ہے بھلا کون وقت کے شعلےیہ ایسی آگ ہے جس میں دھواں نہیں ملتا
تیرے جہان میں ایسا نہیں کہ محبت نہ ہوجہاں امید ہو اس کی وہاں نہیں ملتا |
2
ان آنکھوں کی مستی کے مستانے ہزاروں ہیںان آنکھوں سے وابستہ افسانے ہزاروں ہیں
اک تم ہی نہیں تنہا الفت میں میری رسوااس شہر میں تم جیسے دیوانے ہزاروں ہیں
اک صرف ہم ہی مے کو آنکھوں سے پلاتے ہیںکہنے کو تو دنیا میں مےخانے ہزاروں ہیں
اس شمم - اے - فروذا کو ادھي سے ڈراتے ہواس شمم - اے - فروذا کے پروانے ہزاروں ہیں |
3
زندگی جب بھی تیری بذم میں لاتی ہے ہمیںیہ زمیں چاند سے بہتر نظر آتی ہے ہمیں
سرخ پھولوں سے مہک اٹھتی ہیں دل کی راہیںدن ڈھلے یوں تیری آواز بلاتی ہے ہمیں
یاد تیری کبھی دستک کبھی سرگوشي سےرات کے پچھلے پہر روز جگاتی ہے ہمیں
ہر ملاقات کا انجام جدائی کیوں ہےاب تو ہر وقت یہی بات ستاتی ہے ہمیں |
4
دل چیز کیا ہے آپ میری جان لیجیےبس ایک بار میرا کہا مان لیجیے
اس انجمن میں آپ کو آنا ہے بار - باردیوار - و - شرح کو غور سے پہچان لیجئے
مانا کے دوستوں کو نہیں دوستی کا پاسلیکن یہ کیا کے غیر کا احسان لیجیے
کہئے تو آسماں کو زمیں پر اتار رکھیںمشکل نہیں ہے کچھ بھی اگر ٹھان لیجئے
ظاہر سی بات ہے یہاں آ کر میرے اس مزاج کو ایک بھرا مکمل ماحول ملا .. جب میں یہاں آیا تو اس وقت جن ناموں کو میں سنتا آیا تھانمے شہرےار صاحب ہی اکیلے تھے جو با حیات تھے .. اور جن سے ملا ملایا جا سکتا تھا .. 2006 تک میں کبھی ان سے ملا نہیں، مشايروور کچھ ایک سےمنارو میں ان کو سنا، دیکھا. لیکن 2006 میں جب میں محترم گرور پروفیسر. كےپي سنگھ کے ساندھي میں گیا تب میں نے پایا كوو عموما وہاں آتے رہتے تھے .... ایک دن انہوں نے سر سے میرے بارے میں پوچھا میں تو سر نے کہا کہ اپنا تاررف كرواو .. پھر جب میں انهےبتايا کہ میں آپ کے كلاسمےٹ محمد. ارشاد خان کا نواسا ہوں تو سچ کہتا ہوں ایک دم کھل اٹھے اور فورا مجھ سے نانا کا فون نمبر ماگاور اپنے موبائل سے فوری طور پر ملایا .. تقریبا 30 - 40 سال بعد ان دونوں سهپاٹھيو کی بات چیت ہوئی .. بات کرنے کے بعد بے حد خوشی کےساتھ انہوں نے سر سے کہا کہ کے. پی پورے کلاس میں ہمیں دو مرد تھے .. ہم دونوں کی ہی فرسٹ ڈویژن رزلٹ آیا تھا .. ان دنوں کو یاد کرتے ہوئے بےهدكھش ہوئے .. وہ میرے لئے ایک بڑا دن تھا .. لیکن اس سے بڑا دن ابھی آنا تھا ..
اس بات چیت اور ملاقات ہوئے ابھی کچھ ہی دن ہوئے تھے کہ ایک دن گرور نے کہا کہ تم شہرےار صاحب کے پاس جا کر موجودہ ساهتيكے نئے پوائنٹس کے لیے دو نئی غزل لے آاو .. میں گیا. انہوں نے بٹھایا، بات چیت کرتے رہے .. فیملی کے بارے میں پوچھتے رہے .. اور دو نئی غذلمےري ڈائری پر اپنے ہاتھوں سے لکھی. پھر میرے اسرار پر انہوں نے "پہلی نہائ اوس میں" والی پوری غزل لکھی ... اور اس پر لکھا ایک پرانی غزل شہباز کے لئے .. (تصویر ڈائری کے اسی پیج کا ہے) .. یہ میرے لئے یقینا ایک اور بے حد بڑا دن تھا ... اس لمبی چوڑی بےهدسدر سی ڈائری میں کل تین پیج ہی لکھے ہیں اجتك .. وہی تین پیج جو انہوں نے اپنے ہاتھ سے لکھے .. بس وہی تین! لیکن میرے لئے يےكسي اسكھي صفحات والی عظیم گرتھو سے بھی بڑھ کر ہے ..یہ میری ملکیت ہے .. ہاں میری ملکیت ہے ..
اس دن ان کی اور نانا کہ وہ آخری بات تھی کیونکہ اس کے دن کے کچھ ماہ بعد ہی نانا کا انتقال ہوگیا ..... جب یہ بات انهےپتا چلی تو بے حد اداس ہوئے .. اور کچھ نہیں بولے .. نانا کے نہیں رہنے کے بعد میں بھی زندگی کی کشمکش میں پھنس گیا اور گرور كاساندھي بھی چھوٹ سا گیا .. ان سے روبرو ہونے والی ملاكاتے چھوٹ گئی .. حالانکہ سےمنارو میں ملاكاتے تو ہوتی رہیں. کبھی کبھی موقع نکل کر سامنے پہنچ جاتا تو حال چال پوچھتے ....
میں ان کی شاعری کا دیوانہ ہوں .. بہت لوگ دیوانے ہیں .. لیکن ان کی شاعری پر میں کچھ کہوں میں اس لائق نہیں ہوں .. دیوانہ کب کسی لايكها ہے ... میں بس یہ کہنا چاہتا ہوں .. مجھے ایک عظیم شاعر کے چلے جانے کا بے حد افسوس ہے لیکن اس سے زیادہ مجھے اس زمانے کے چلےجانے کا افسوس ہے جس کو سن سن کر میں بڑا ہوا تھا .. .. ایک پوری روایت کے چلے جانے کا افسوس ہے |
- شہباز علی خان
شہرےار صاحب مشہور گجل
1
کبھی کسی کو مکمل جہاں نہیں ملتاکہیں زمیں تو کہیں آسماں نہیں ملتا
جسے بھی دیکھیے وہ اپنے آپ میں گم ہےذبا ملی ہے مگر همذبا نہیں ملتا
بجھا سکا ہے بھلا کون وقت کے شعلےیہ ایسی آگ ہے جس میں دھواں نہیں ملتا
تیرے جہان میں ایسا نہیں کہ محبت نہ ہوجہاں امید ہو اس کی وہاں نہیں ملتا |
2
ان آنکھوں کی مستی کے مستانے ہزاروں ہیںان آنکھوں سے وابستہ افسانے ہزاروں ہیں
اک تم ہی نہیں تنہا الفت میں میری رسوااس شہر میں تم جیسے دیوانے ہزاروں ہیں
اک صرف ہم ہی مے کو آنکھوں سے پلاتے ہیںکہنے کو تو دنیا میں مےخانے ہزاروں ہیں
اس شمم - اے - فروذا کو ادھي سے ڈراتے ہواس شمم - اے - فروذا کے پروانے ہزاروں ہیں |
3
زندگی جب بھی تیری بذم میں لاتی ہے ہمیںیہ زمیں چاند سے بہتر نظر آتی ہے ہمیں
سرخ پھولوں سے مہک اٹھتی ہیں دل کی راہیںدن ڈھلے یوں تیری آواز بلاتی ہے ہمیں
یاد تیری کبھی دستک کبھی سرگوشي سےرات کے پچھلے پہر روز جگاتی ہے ہمیں
ہر ملاقات کا انجام جدائی کیوں ہےاب تو ہر وقت یہی بات ستاتی ہے ہمیں |
4
دل چیز کیا ہے آپ میری جان لیجیےبس ایک بار میرا کہا مان لیجیے
اس انجمن میں آپ کو آنا ہے بار - باردیوار - و - شرح کو غور سے پہچان لیجئے
مانا کے دوستوں کو نہیں دوستی کا پاسلیکن یہ کیا کے غیر کا احسان لیجیے
کہئے تو آسماں کو زمیں پر اتار رکھیںمشکل نہیں ہے کچھ بھی اگر ٹھان لیجئے


0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें