मैंने गीत लिखे हैं कब कब?
इक मुस्कान किरन पाने को,गिन गिन कर प्रति पल रह जाते ।
पलक झुकाये लट बिखराये मेरे सनम चले जाते जब
हृदय से उच्छवासे उठती ऑंखों में ऑंसू आ जाते ।
आँखों के वे अश्रु बिंदु ही गिर गिर कर मेरी पुस्तक पर
गढ़ते हैं तस्वीरें उनकी मुझे रुलाया करते जब जब |
मैंने गीत लिखे है तब तब।
मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
सूनी सूनी रातों में जब चींखा करता था मन मेरा
कितनी रात अभी बाकी है कितनी देर अभी है अन्धेंरा ।
हॉं मैं विस्मृत न कर पाया शबनम जैसे ऑंसू ढलकर
पूछा करते थे जुगनू से कितनी दूर अभी है सवेरा ।
मैं ऑंखों से परखा करता काजल हेमन्ती रातों का
सरवर तीरे चीखा करता आधी रात विहंगम जब जब।
मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
पता नहीं मौसम ऐसा था या मैं ही कुछ बहक गया था
जब बुलबुल ने आकर गाया मेरे पास प्यार का नग्मा
जाने कैसा जादू था वो मेरा तन मन चहक गया था ।
जाने कैसा जादू था वो मेरा तन मन चहक गया था ।
फूल मिला या शूल मिले हैं मधुवन वाले इसे जानकर
भोरें हॅंसी उडाये मेरी तितली मुझे चिढाये जब जब ।
मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
मैंने गीत लिखे हैं तब तब।
-अमरनाथ 'मधुर ' 



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