बुधवार, 7 मार्च 2012

कालिज में कवि सम्मेलन - अमरनाथ 'मधुर کالج میں شاعر کانفرنس - امرناتھ 'مدھر


एक बार कॉलिज के छात्रों ने सोचा
अबकी बार होली कुछ अलग ढंग से मनायें |
कुछ कवियों को बुलाकर हास्य कवि सम्मलेन करायें |
तो  जनाब निमंत्रण पत्र छपवाए गये
कुछ कुख्यात कवि पकड़ कर लाये  गये
मंच सजाया गया
कवियों को माईक थमाया गया
कि वे अपनी कविता सुनायें
कुछ देर सबको हंसायें |

एक एक कवि आता
अपने हाथ,पॉंव,आँख, नाक  मटकाता
कविता के नाम पर भोंडे चुटकले सुनाता, चला जाता
श्रोता ठहाके लगाते
वन्स मोर वन्स मोर चिल्लाते
कवियों के नाज नखरे बडे थे
उनके भाव पहले से ही बढे थे
वे ऑखों ही आखों में संयोजक को धमकाते -
'तुम्हारा कवि सम्मेलन पिट जाता जो हम नहीं आते'

श्रोताओं की डिमाण्ड तोल लो
जल्दी से अपना पर्स खोल लो
अभी पिछला पेमेन्ट भी बाकी है
यार ये तो बहुत नाइन्साफी है
ऐसा बताओ कैसे चलेगा
कहो तो मंच से बोल दें
पिछला जो गोलमाल है
यहीं पे खोल दें |

होली  का  रंग  था
हर कवि का अपना ढंग था
कोई गाता, मुस्कराता, कोई गाल फुलाता
कोई हिजडों की तरह खुद ही ताली बजाता
एक कवि तो ऐसे गा रहा था
जैसे उसे अपना मरा बाप याद आ रहा था
छात्र हो रहे थे बोर
उन्हें सुनना था कोई ओर
वे जोर से चिल्लाये
संचालक जी इस कवि को हटायें
हमें प्रेम गीत नहीं सुनना है
लैला मिले या ना मिले
हमें मजनू नहीं बनना है
लेकिन संचालक जी लरज उठे
अपनी ही धुन में गरज उठे
आप इस कवि को अवश्य सुनेंगें
नही तो हम कवि सममेलन स्थगित कर देंगे।

यह सुनकर एक छात्र ताव में आ गया
चेहरे  पर उसके हृदय का भाव आ गया
चप्पल भी उसके हाथों में आ गयी
मंचस्थ कवि की शामत ही आ गयी
चप्पल खाकर कवि ने छात्र को घूरा
मन में आया अभी कर दूँ उसका चूरा
मंच से उतरकर पहुँचे  उसके पास
देखकर बहुत हुये खिन्न,मायूस और उदास
धीरे से बोले तू यहॉं कैसे आ गया
लगता है अब तेरा भी दिमाग भरमा गया
मैंने तो कहा था
मुझे कवि सम्मेलन में कविता पाठ करना है
इसलिये आज तुझे घर पर ही रहना है

और ये तुझे क्या हो गया
क्या तेरा दिमाग फेल हो गया
नालायक कल तुझे चप्पल खरीद कर दी
और तूने आज ही  मंच पर फेंक दी
तुझे कितनी बार समझाया है
पर तेरी कब समझ में आया है
मूर्ख यदि पक्का श्रोता बनना है
कवि सम्मेलन में अंत तक डटे रहना है
तो पुरानी चप्पले पहनकर आया कर
उन्हें कवियों पर आजमाया कर
बेटा ये कवि मंच पर यूँ  ही नहीं खडे हैं
तेरे जैसे तो हजारों इनकी जेब में पडे हैं
और तू क्या समझता है
चप्पले बेकार की चीज है
इसके उपयोग की भी
इन्हें अच्छी तमीज है

कवि जब घन्टे भर माईक पर चिल्लाता है
पेमेन्ट के नाम पर एक धेला नहीं पाता है
तब ये चप्पलें ही तो काम में आती हैं
बुलाने वाले को ये ही कविता सुनाती हैं
लेकिन तुझे क्या अभी  तेरी  क्या औकात  है
ये तो कवियों और संयोजको के बीच की  बात है
तू मस्त रह कविता सुन
टेंशन ना ले सिर मत धुन
अंत में कवि थोडा मुस्कराया
छात्र को प्यार से समझाया
तू नया है
जा तेरी गुस्ताखी माफ है
छात्र ने सिर उठाकर देखा
सामने खडा कवि उसका बाप है।

                             - अमरनाथ 'मधुर

کالج میں شاعر کانفرنس - امرناتھ 'مدھرےك بار كلج کے طلبا نے سوچا
اب کی بار ہولی کچھ الگ طریقے سے منايے |
کچھ شاعروں کو بلاے اور شاعر سمملےن كرايے |
تو جناب دعوت خط چھپواے گئے
کچھ شاعر پکڑ کر لائے گئے
فورم سجایا گیا
شاعروں کو مائیک دیا گیا
کہ وہ اپنی شاعری سنايے
کچھ دیر سب کو هسايے
ہولی کا رنگ تھا
ایک شاعر کا بھی عجب انداز تھا
شاعر تھا کہ ایسے گا رہا تھا
جیسے اسے اپنا مرا باپ یاد آ رہا تھا
طالب علم ہو رہے تھے بور
انہیں سننا تھا کوئی اور
وہ زور سے چللايے
اختیاری جی اس شاعر کو هٹايے
ہمیں محبت گیت نہیں سننا ہے
لیلی ملے یا نہ ملے
ہمیں مجنو نہیں بننا ہے
لیکن اختیاری جی لرج اٹھے
اپنی ہی دھن میں گرج اٹھے
آپ اس شاعر کو ضرور سنےگے
نہیں تو ہم شاعر سممےلن ملتوی کر دیں گے.
یہ سن کر ایک طالب علم تاؤ میں آ گیا
چہرے پر اس کے دل کا احساس آ گیا
چپل بھی اس کے ہاتھوں میں آ گئی
مچستھ شاعر کی شامت ہی آ گئی
چپل کھا کر شاعر نے طالب علم کو گھورا
دل میں آیا ابھی کر دوں اس کا چورا
فورم سے اتر کر پہنچے اس کے پاس
دیکھ کر بہت ہوئے مایوس، ناامید اور اداس
دھیرے سے بولے تو یہاں کیسے آ گیا
لگتا ہے اب تیرا بھی دماغ بھرما گیا
میں نے تو کہا تھا
مجھے شاعر کانفرنس میں شاعری متن کرنا ہے
اس لئے آج تجھے گھر پر ہی رہنا ہے
اور یہ تجھے کیا ہو گیا
کیا میرا دماغ فیل ہو گیا
نالائق کل ہی تو چپل خرید کر دی
اور تو نے آج ہی پلیٹ فارم پر پھینک دی
تجھے کتنی بار سمجھایا ہے
پر تیری کب سمجھ میں آیا ہے
بے وقوف اگر پکا سامعین بننا ہے
شاعر کانفرنس میں آخر تک ڈٹے رہنا ہے
تو پرانی چپلیں پہن کر آیا کر
انہیں شاعروں پر آزماےا کر
 بیٹا یہ شاعر اسٹیج پر یوں ہی نہیں کھڑے ہیں
تیرے جیسے تو ہزاروں ان کی جیب میں پڑے ہیں
اور تو کیا سمجھتا ہے
چپلیں بیکار کی چیز ہے
اس کے استعمال کی بھی
ان کے پاس ترکیب ہے
شاعر جب گھنٹے بھر مائیک پر چللاتا ہے
پےمےنٹ کے نام پر ایک دھیلا نہیں پاتا ہے
تب یہ چپل ہی کام میں آتی ہیں
بلانے والے کو یہ ہی آیت اطلاع دیتے ہیں
لیکن تجھے کیا کس کی کیا اوقات ہے
یہ تو شاعروں اور سيوجكو کے درمیان کی بات ہے
تو مست رہ شاعری سن
اس طرح اپنا سر مت دھن
آخر میں شاعر تھوڑا مسکرایا
طالب علم کو پیار سے سمجھایا
موڈ خراب مت کر
تو نیا ہے
جا تیری گستاكھي معاف ہے
طالب علم نے سر اٹھا کر دیکھا
سامنے کھڑا شاعر تو اس کا باپ ہے.
                             - امرناتھ 'مدھر



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