सोमवार, 5 मार्च 2012

व्यंग्य लेख ये "गे" क्या होता है?साभार :ब्लॉग 'अष्टावक्र' -ले0 अरूणेश सी दवे से



साहब, यूरिया वाली चाय का लुफ़्त उठाते नुक्कड़ में हम खड़े थे कि कालू गरीब फ़िर पहुंच गया। हम तक पहुंचते ही सीधे उसने सवाल ठोका- "दवे जी ये "गे" क्या होता है।" हमने क्रोध भरी निगाह उस पर डाल कहा - " अरे ओ होशियार, अब तेरा वोट पड़ गया है। अब तू शोषित वर्ग से हो या सर्वहारा वर्ग से। चाहे तू अल्पसंख्यको मे क्यो न गिना जाता हो हो हम तुझे न बतायेंगे। बड़ा आया सवाल पूछने वाला।"
कालू गरीब घिघियाते हुये बोला -"दादा, अब तो चुनाव खत्म हो गया है। अब ऐसे फ़ालतू बातो का मोल क्या है। कहा सुना माफ़ कर दो दादा, हमारा दिमाग फ़ड़क रहा है मतलब बता दो।" हमने पूछा- "क्यों आसमान टूट रहा है! आग लग रही है! "गे" का मतलब नही जानेगा तो भूखा मर जायेगा। अबे यह जीने-खाने और सुप्रीम कोर्ट के नये आदेश के अनुसार सोने के जैसे मौलिक अधिकारो के उपर की चीज है रे भाई कालू। अब तक सुप्रीम कोर्टवा फ़ैसला नही कर पाया है। सरकार बार बार जवाब बदल रही है।"
कालू बोला - " फ़िर भी बताईये, हमे जानना है कि कही हमारा वोट गलत तो नही तो नही पड़ गया।" हमारा दिमाग ठनका "गे" और वोट का क्या लेना देना रे भाई। सो हमने पूछा- "क्यो रे बुड़बक, क्या किसी ने तुझसे यह कह कर वोट मांगा था कि वह तुझे गे बनने की आजादी देगा और तू उसको वोट डाल आया ।"
कालू बोला नही माई बाप पर आज खाकी चड्डा लोग पहने नारा लगा रहे थे-
कांग्रेसी बबुआ ने देखा है एक सपना
सवैधानिक दर्जा लिए हो गे सेक्स अपना ....
हम सोचे या राहुलवा का और "गे" का क्या संबंध! और ये गे क्या है रे भाई। सो आपसे पूछने चले आये। हमने कहा- "भाग यहा से कांग्रेस को वोट देने वाले मूर्ख।" कालू भड़क गया बोला - "इतने सदियो, आपके बाप दादा हमारे बाप दादा का शोषण किये थे कि नही। आज "गे" का मतलब बता कर काला मुंह साफ़ करने का मौका आया तो भगा रहे हो। सीधा जवाब नही दे सकते।" हम अपने पुरखो के किये अपराधो तले गड़ गये। अब गया में तर्पण करो, कौन जानता है कि हिंदु कौंवा खाया, इसाई कौंवा खाया कि मुसलमान कौंवा ले भागा। यहां तो पुरखो की डाईरेक्ट मुक्ती जुगाड़ था। सो हमने कहा - "गे का मतलब होता है समलैंगिक समझा कि नही।" कालू बोला- "दादा, हम तो मध्यान भोजन खाये लिये सरकारी स्कूल जात रहे। इतना कठिन शब्द का अर्थ क्या जाने।" हमने मन ही मन सोचा इसको टरकाया जाये सो कालू से बोले - "देख मिया कालू , समलैंगिकता का मतलब होता है, दो लोगो का बिना शादी के साथ रहना। अब ये तो जिनका पेट भरा हुआ है, उनका टाईम पास झगड़ा है रे भाई। तू जा अपनी रोजी रोटी कमा, अब रैली में ले जाने चेपटी, पैसा देने कोई नही आयेगा ।"

तभी पीछे से बजरंग दल के नेता दीपक बाबू की कड़कती हुयी आवाज आई- "क्यों दवे जी भोले भाले लोगो को बेवकूफ़ बनाते हो शर्म नही आती।" हमने कहा- "दीपक बाबू, गंदी फ़ुंदी बातो का मतलब समझाने का शौक चर्राया है। समाज में गंदगी फ़ैलाना चाहते हो। वैसे तो बड़ा हिंदु धर्म और संस्कृती के रक्षक बने फ़िरते हो।
दीपक बाबू ने सीना फ़ुलाकर बोले - " रक्षक हैं, तभी सनातन धर्म और संस्कृती पर छाये आसन्न संकट को पहचान रहे हैं। समलैंगिकता हमारी संस्कृती पर कुठाराघात है। यह कांग्रेस जो हिंदुत्व पर हमला करने का कोई मौका नही छोड़ती। सुप्रीम कोर्ट में गे का विरोध करने की बजाय, हमें कोई आपत्ती नही है का जवाब इसिलिये दाखिल किया है। राहुल गांधी खुद इस मामले मे रूची क्यो ले रहे है यह हम बता तो नही सकते, पर आप खुद समझ जाओ।" हमने कहा- "यार, इस कालू गरीब को काम धंधा करने दो काहे ये सब लफ़ड़े की बात इसके दिमाग में डालते हो।" दीपक बजरंगी फ़िर कड़क कर बोले -"बताना जरूरी है दवे जी, कालू गरीब तक बाते नही पहुंचती है इसिलिये न ये कांग्रेस हर बार चुनाव जीत जाती है।" इतना कहा, दीपक बाबू ने कालू गरीब से कहा - "सुन कालू, गे का मतलब होता है, लडके की लड़के से शादी और लड़की की लड़की से शादी। अगर कांग्रेस सरकार ने ऐसी शादियो के लिये कानूनी स्वीकृति दे दी तो तेरा लड़का बहू नही बाबू लेकर आयेगा।"
कालू सकपकाया- "हाय मै मर जाउंगा माई बाप, मेरा वंश कैसे आगे चलेगा। नाती पोते कैसे होंगे।" हमने कालू को समझाया -"अरे कालू नाहक चिंता में मत पड़। एक लाख में एक आदमी इस चक्कर मे पड़ता है भाई। आम आदमी थोड़े ये सब दंद फ़ंद मे पड़ता है।" दीपक बाबू भड़क गये -"अजीब हिंदु हो, सनातन परंपरा के खिलाफ़ कानून पास हो रहा है। धर्म खतरे में है और कुतर्क दे रहे हो।" अब भड़कने की बारी हमारी थी हमने कहा- " सनातन, सनातन की रट लगाये जा रहे हो खजुराहो के प्राचीन मंदिर मे नही है नक्काशी गे सेक्स के बारे मे। बड़े आये धर्म की आड़ लेने। कोई सटक ही रहा है कि हमको यह करना है तो करने दो। जब से दुनिया बनी है। सब कुछ होता ही आया है, आगे भी होगा।"
फ़िर हम कालू की ओर मुड़े -"क्या मर जायेगा बे, भूल गया तू क्या है "पिछड़ा", अबे जब विकास तुझ तक नही पहुंच सका। सरकार की योजनाये तुझ तक नही पहुंच सकी। तो गे कहा से पहुंच पायेगा पगला। खामखा डर रहा है, कमा खा ये सब शौक नवाबी है समझा। शरीर मे पूरा कपड़ा नही पेट दाना नही कोई गे तुम लोग दूर से भी देखेगा तो सरपट भाग लेगा। जा काम धंधा कर, ये अगड़े लोगो के पास सरकारी नोट आता है तो खुद खा लेते है और गे आ गया तो बचा कालू, तू भी ले चिल्ला रहे हैं।" अब बात कालू के भेजे में घुसने लगी बोला- "दादा ये दीपक बाबू पिछड़ा विरोधी है क्या।" हम कहा- "नही भाई, ऐसा बात नही है। इनका झंझट दूसरा है, वैलेंटाईन डे में ये लोग हर साल प्रेमी प्रेमिकाओ को पीट भगाने जाते है। अब गे कानून पास हो जायेगा तो पार्क में प्रेमी- प्रेमिकाओं के साथ साथ प्रेमी- प्रेमी भी बैठेंगे। फ़िर मुकाबला बराबरी का हो जायेगा, पिटने की भी नौबत आ सकती है।"
तसल्ली बख्श होकर कालू अपने काम धाम में निकल गया। दीपक बाबू बोले -"क्यों दवे जी, हम कांग्रेस का वोट काट रहे थे और आपका पेट दुख रहा था। दिग्गी बनने का तैयारी नजर आता है।" हमने दीपक बाबू को पुचाकारा- "क्या यार दीपक भाऊ, भावनाओ में बह जाते हो, फ़ायदा आप ही का करा रहे हैं। देखिये, राहुल शादी नही कर रहा और गे कानून भी पास हो रहा है। अब राहुल बाबा शादी कर लिये रहते, तो नही यूपी चुनाव में दो और राजकुमार घूमते वोट मांगने, बीबी वोट मागंती। आप तो जानते ही हो हिंदुस्तानियो को। जरा खूबसूरत बच्चो को खूबसूरत मम्मी के साथ पापा के लिये वोट मांगते देख नही लेते कि फ़िसल जाते है। और भारत का आबादी भी कितना बढ़ रहा है बन जाने तो जिसको गे बनना है जनसंख्या भी कम होगा कि नही।"
खैर साहब दीपक बाबू तो निकल लिये इस नई विचारधारा पर मनन के लिये। पर हम खुद चिंता में पड़ गये। ये "गे" वाला कानून पास हो गया तो पार्क, मेला, सिनेमा जाना ही दूभर हो जायेगा। जहां देखो वहां, लड़का- लड़का लड़की- लड़की पप्पी, झप्पी खेलते नजर आयेंगे।"
-ले0 अरूणेश सी दवे



بلاگ 'اشٹاوكر' - لے 0 اروےش سی دوے سے مخلص طنز مضمون 'یہ "گے" کیا ہوتا ہے؟'
كالو غریب - دوے جی، یہ "گے" کیا ہوتا ہ
ے.
صاحب، یوریا والی چائے کا لفت اٹھاتے نككڑ میں ہم کھڑے تھے کہ كالو غریب فر پہنچ گیا. ہم تک پہنچتے ہی براہ راست اس نے سوال عائد - "دوے جی یہ" گے "کیا ہوتا ہے." ہم نے غصہ بھری نگاہ اس پر ڈال کہا - "ارے او ہوشیار، اب تیرا ووٹ پڑ گیا ہے. اب تو شوشت طبقے سے ہو یا سروهارا طبقے سے. چاہے تو الپسكھيكو میں کیوں نہ شمار کیا جاتا ہو ہو ہم تجھے نہ بتائیں. بڑا آیا سوال پوچھنے والا. "
كالو غریب گھگھياتے ہوئے بولا - "دادا، اب انتخابات ختم ہو گیا ہے. اب ایسے فالتو باتو کا مول کیا ہے. کہا سنا معاف کر دو دادا، ہمارا دماغ فڑك رہا ہے مطلب بتا دو" ہم نے پوچھا - "کیوں آسمان ٹوٹ رہا ہے! آگ لگ رہی ہے!" گے "کا مطلب نہیں جانےگا تو بھوکا مر جائے گا. ابے یہ جینے - کھانے اور سپریم کورٹ کے نئے حکم کے مطابق سونے کے جیسے بنیادی ادھكارو کے اوپر کی چیز ہے رے بھائی كالو. اب تک سپریم كورٹوا فیصلہ نہیں کر پایا ہے. حکومت بار بار جواب بدل رہی ہے. "
كالو بولا - "فر بھی بتاييے، ہمیں جاننا ہے کہ کہی ہمارا ووٹ غلط تو نہیں تو نہیں پڑ گیا." ہمارا دماغ ٹھنكا "گے" اور ووٹ کا کیا لینا دینا رے بھائی. سو ہم نے پوچھا - "کیوں رے بڑبك، کیا کسی نے تجھ سے یہ کہہ کر ووٹ مانگا تھا کہ وہ تجھے گے بننے کی آزادی دے گا اور تو اس کو ووٹ ڈال آیا."

كالو بولا نہیں مائی باپ پر آج خاکی چڈڈا لوگ پہنے نعرہ لگا رہے تھے -

کانگریسی ببا نے دیکھا ہے ایک خواب
سوےدھانك درجہ لئے ہو گے سیکس اپنا ....

ہم سوچے یا راهلوا کا اور "گے" کا کیا تعلق! اور یہ گے کیا ہے رے بھائی. سو آپ سے پوچھنے چلے آئے. ہم نے کہا - "حصہ یہاں سے کانگریس کو ووٹ دینے والے بے وقوف." كالو بھڑک گیا بولا - "اتنے سديو، آپ کے باپ دادا ہمارے باپ دادا کا استحصال کئے تھے کہ نہیں. آج" گے "کا مطلب بتا کر سیاہ منہ صاف کرنے کا موقع آیا تو بھگا رہے ہو. سیدھا جواب نہیں دے سکتے." ہم اپنے پركھو کے کئے اپرادھو تلے گڑ گئے. اب گیا میں ترپ کرو، کون جانتا ہے کہ ہندو كووا کھایا، عیسائی كووا کھایا کہ مسلمان كووا لے بھاگا. یہاں تو پركھو کی ڈايرےكٹ مكتي جگاڑ تھا. سو ہم نے کہا - "گے کا مطلب ہوتا ہے ہم جنس پرست سمجھا کہ نہیں." كالو بولا - "دادا، ہم تو مدھيان کھانا کھائے لیے سرکاری اسکول جات رہے. اتنا مشکل لفظ کا مطلب کیا جانے." ہم نے دل ہی دل سوچا اس کو ٹركايا جائے سو كالو سے بولے - "دیکھ میاں كالو، ہم جنس کا مطلب ہوتا ہے، دو علامت کا بغیر شادی کے ساتھ رہنا. اب یہ تو جن کا پیٹ بھرا ہوا ہے، ان کا ٹايم پاس جھگڑا ہے رے بھائی. تو جا اپنی روزی روٹی کما، اب ریلی میں لے جانے چےپٹي، پیسہ دینے کوئی نہیں آئے گا. "
تبھی پیچھے سے بجرنگ دل کے لیڈر بابو دیپک کی كڑكتي ہوئی آواز آئی - "کیوں دوے جی بھولے بھالے علامت کو بیوقوف بناتے ہو شرم نہیں آتی." ہم نے کہا - "دیپک بابو، گندی فدي باتو کا مطلب سمجھانے کا شوق چررايا ہے. سماج میں گندگی فےلانا چاہتے ہو. ویسے تو بڑا ہندو مذہب اور سسكرتي کے محافظ بنے فرتے ہو.
دیپک بابو نے سینہ فلاكر بولے - "محافظ ہیں، تبھی سناتن دھرم اور سسكرتي پر چھايے اسنن بحران کو پہچان رہے ہیں. کمزور ہماری سسكرتي پر كٹھاراگھات ہے. یہ کانگریس جو ہندوتو پر حملہ کرنے کا کوئی موقع نہیں چھوڑتی. سپریم کورٹ میں گئے کا مخالفت کرنے کی بجائے، ہمیں کوئی اپتتي نہیں ہے کا جواب اسليے داخل کی ہے. راہل گاندھی خود اس معاملے میں روچي کیوں لے رہے ہیں یہ ہم بتا تو نہیں سکتے، پر آپ خود سمجھ جاؤ. " ہم نے کہا - "یار، اس كالو غریب کو کام دھندہ کرنے دو کاہے یہ سب لفڑے کی بات اس کے دماغ میں ڈالتے ہو." دیپک بجرگي فر کڑک کر بولے - "بتانا ضروری ہے دوے جی، كالو غریب تک باتیں نہیں پہنچتی ہے اسليے نہ یہ کانگریس ہر بار انتخابات جیت جاتی ہے." اتنا کہا، دیپک بابو نے كالو غریب سے کہا - "سن كالو، گے کا مطلب ہوتا ہے، لڑکے کی لڑکے سے شادی اور لڑکی کی لڑکی سے شادی. اگر کانگریس حکومت نے ایسی شاديو کے لئے قانونی منظوری دے دی تو تیرا لڑکا بہو نہیں بابو لے کر آئے گا. "
كالو سكپكايا - "ہائے میں مر جاںگا مائی باپ، میرا خاندان کیسے آگے چلے گا. نواسی پوتے کیسے ہوں گے." ہم نے كالو کو سمجھایا - "ارے كالو ناحق فکر میں مت پڑ. ایک لاکھ میں ایک آدمی اس چکر میں پڑتا ہے بھائی. عام آدمی تھوڑے یہ سب دد فد میں پڑتا ہے." دیپک بابو بھڑک گئے - "عجیب ہندو ہو، سناتن روایت کے خلاف قانون پاس ہو رہا ہے. مذہب خطرے میں ہے اور كترك دے رہے ہو." اب بھڑکنے کی باری ہماری تھی ہم نے کہا - "سناتن، سناتن کی رٹ لگائے جا رہے ہو كھجراهو کے قدیم مندر میں نہیں ہے نككاشي گے سیکس کے بارے میں. بڑے آئے مذہب کی آڑ لینے. کوئی سٹك ہی رہا ہے کہ ہم کو یہ کرنا ہے تو کرنے دو. جب سے دنیا بنی ہے. سب کچھ ہوتا ہی آیا ہے، آگے بھی ہوگا. "

پھر ہم كالو کی طرف مڑے - "کیا مر جائے گا بے، بھول گیا تو کیا ہے" پسماندہ "، ابے جب ترقی تجھ تک نہیں پہنچ سکا. حکومت کی يوجنايے تجھ تک نہیں پہنچ سکی. تو گے کہا سے پہنچ پائے گا پگلا. كھامكھا ڈر رہا ہے، کما کھا یہ سب شوق نوابی ہے سمجھا. جسم میں مکمل کپڑا نہیں پیٹ دانا نہیں کوئی گے تم لوگ دور سے بھی دیکھے گا تو سرپٹ بھاگ لے گا. جا کام دھندہ کر، یہ اگڑے علامت کے پاس سرکاری نوٹ آتا ہے تو خود کھا لیتے ہے اور گے آ گیا تو بچا كالو، تو بھی لے چلا رہے ہیں. " اب بات كالو کے بھیجے میں گھسنے لگی بولا - "دادا یہ دیپک بابو پسماندہ مخالف ہے کیا." ہم نے کہا - "نہیں بھائی، ایسا بات نہیں ہے. ان کا جھنجھٹ دوسرا ہے، وےلےٹاين ڈے میں یہ لوگ ہر سال عاشق پرےمكاو کو پیٹ بھگانے جاتے ہے. اب گے قانون پاس ہو جائے گا تو پارک میں عاشق - محبوباؤں کے ساتھ ساتھ عاشق - عاشق بھی بیٹھیں گے. فر مقابلہ برابری کا ہو جائے گا، پٹنے کی بھی نوبت آ سکتی ہے. "
تسلی بخش ہو کر كالو اپنے کام دھام میں نکل گیا. دیپک بابو بولے - "کیوں دوے جی، ہم کانگریس کا ووٹ کاٹ رہے تھے اور آپ کا پیٹ دکھ رہا تھا. دگگي بننے کا تیاری نظر آتا ہے." ہم نے دیپک بابو کو پچاكارا - "کیا یار دیپک بھاو، بھاوناو میں بہہ جاتے ہو، فائدہ آپ ہی کا کرا رہے ہیں. دیکھیے، راہل شادی نہیں کر رہا اور گے قانون بھی پاس ہو رہا ہے. اب راہل بابا شادی کر لئے رہتے، تو نہیں یوپی انتخابات میں دو اور راج کمار گھومتے ووٹ مانگنے، بی بی ووٹ ماگتي. آپ تو جانتے ہی ہو هدستانيو کو. ذرا خوبصورت بچوں کو خوبصورت ممی کے ساتھ پاپا کے لیے ووٹ مانگتے دیکھ نہیں لیتے کہ فسل جاتے ہے. اور بھارت کا آبادی بھی کتنا بڑھ رہا ہے بن جانے تو جس کو گے بننا ہے آبادی بھی کم ہوگا کہ نہیں. "
خیر صاحب دیپک بابو تو نکل لئے اس نئی نظریے پر منن کے لیے. پر ہم خود فکر میں پڑ گئے. یہ "گے" والا قانون پاس ہو گیا تو پارک، میلہ، سنیما جانا ہی دوبھر ہو جائے گا. جہاں دیکھو وہاں، لڑکا - لڑکا لڑکی - لڑکی پپپي، جھپپي کھیلتے نظر آئیں گے. "
- لے 0 اروےش سی دوے



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