मंगलवार, 13 मार्च 2012

बेरोजगारी भत्ताبے روزگاری الاؤنس

                    उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनावों में समाजवादी पार्टी ने बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता पुन: देने का वायदा किया था, लेकिन  बेरोजगारी भत्ता देने का काम  शुरू होने से पहले ही सवालों के घेरे में  है| सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि सरकार इसके लिए धन कहाँ से जुटायेगी? सयाने लोगों की सोच देखिये और तमाम तरह के अपव्यय और घोटाले  करके धन बरबाद किया जा सकता है लेकिन बेरोजगारों को भत्ता देने के लिये धन का अकाल पड़  जायेगा| यद्यपि कई राज्य सरकारे पहले से ही बेरोजगारी भत्ता दे रहीं हैं और ऐसा भी नहीं  हैकि  इससे उनके  यहाँ कोई आर्थिक संकट पैदा हो गया हो, लेकिन यू. पी. का बड़ा राज्य होने का हवाला देकर हमेशा इसे देने से इनकार किया गया | समाजवादी पार्टी ने पहले भी बेरोजगारों को भत्ता दिया था और अब भी उससे अपना वायदा पूरा करने की आशा की जाती है | वैसे  भी ये कोई बेरोजगारों पर एहसान नहीं है | सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह हरेक नागरिक  को यथायोग्य ऐसा काम उपलब्ध कराये जिससे वह एक सम्मानजनक जिन्दगी बशर कर सके| बेरोजगारी एक ऐसा अभिशाप है जो व्यक्ति को ऐसा सम्मानजनक जीवन जीने नहीं देती | सच पूछो तो अनेक व्यक्तिगत, पारिवारिक ,सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं के लिये बेरोजगारी जिम्मेदार है| चोरी, लूट, तस्करी,ठगी, आतंकवाद और देहव्यापार जैसे  अपराधों और गैर कानूनी कार्यों के पीछे मूलत: बेरोजागारी ही एक बड़ा कारण है| वर्तमान  राजनीतिक परिवेश में जब सरकार का एक मात्र काम कानून व्यवस्था बनाए रखना ही माना जाता है जिसके लिये वह राष्ट्र के सारे संसाधन प्रयोग करती है और फिर भी जनता को संतुष्ट नहीं कर पाती, अगर उसका कुछ अंश बेरोजगारी भत्ते के रूप में व्यय करके  अपना सर दर्द कुछ कम कर लेती है तो यह पूरे समाज के हित में है कि सरकार जल्द से जल्द बेरोजगारों को भत्ता दे| जब तक सरकार ऐसा नहीं करती तब तक कम से कम इतनी ही राहत दे दे कि बेरोजागारों से नौकरी के आवेदन पत्र के साथ जो शुल्क लिया जाता है उसे समाप्त कर दे| साथ ही उन्हें प्रवेश पत्र  के साथ मुफ्त यात्रा सुविधा  उपलब्ध करा दे| अक्सर ये देखा  गया है कि  बहुत से गरीब बेरोजगार नौजवान इस खर्चे के कारण ही प्रतियोगिता परीक्षाओं   में भाग नहीं ले पाते | मुझे ये बड़ा अजीब लगता है कि बेरोजगारों से लाखों रुपये आवेदन पत्रों के साथ वसूले जाते हैं जबकि जिसको नौकर की जरूरत है,जो नौकर को वेतन देने की सामर्थ्य रखता है वह नौकर की भर्ती का खर्च नहीं उठाता। वह उसकी भरती की व्यवस्था  का व्यय भी वहन करे लेकिन ऐसा नहीं होता|  उसका खर्च भी बेरोजगार से वसूल किया जाता है| ये भी नहीं होता कि जिसको नौकरी नहीं मिली है उसका व्यय  वापिस कर दें | कई बार ऐसा होता है कि किसी कारण से भरती रद्द हो जाती है और आवेदक का सारा खर्च बेकार जाता है | यहाँ तक कि पोस्टल आर्डर या अन्य तरीके से ली गयी धनराशी भी वापिस नहीं की जाती| ये बेरोजगारों का शोषण और लूट नहीं है तो क्या है ? लेकिन ये अन्याय और जुल्म किसी को दिखाई नहीं देता ? कोई विचारक, कोई सुधारक, कोई नेता, कोई दल इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाता| रोजगार नहीं मिलेगा, बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा उलटे उससे वसूली करोगे ? मालूम है कितने बेकारों को ये पैसे अपने अभिवावक से कितनी  जिल्लत से मिलते हैं ?घर भर से हटटा कट्टा  नालायक, आवारा, बेशर्म जैसे ताने सुनने पड़ते हैं ? कितने नौजवान इस जिल्लत की जिन्दगी से तंग आकर आत्महत्या कर लेते हैं, कितने अपराधियों के हमसफर हो जाते हैं, कितने डिप्रेशन में जीते हैं, नशेड़ी हो जाते हैं | अगर  उन्हें रोजगार  या बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया जा सकता तो सरकार इतना तो कर ही सकती  है कि उनके डिग्री और डिप्लोमें के साथ ही  सल्फास की  गोली भी दे दे ताकि अगर बचपन और जवानी की  कुरबानी देकर हासिल किये गये काबिलियत के कागजी टुकड़े कुछ काम न आ सकें तो वो एक  गोली खा लें और सरकार और समाज पर बोझ बनकर न रहें | अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो फिर बंदूकों के फायर से फांसी के  फंदें तक का रास्ता तो उनके लिये खुला ही है|  लाल, नीली, हरी, पीली कोई सरकार हो जब तक बेरोजगारी की समस्या रहेगी देश  में अव्यवस्था रहेगी|

Alpha
اتر پردیش اسمبلی کے انتخابات سماج وادی پارٹی نے بےروجگارو کو بے روزگاری بھتہ دوبارہ دینے کا وعدہ کیا تھا | لیکن سماج وادی پارٹی کا بیروزگاری بھتہ دینے کا کام شروع ہونے سے پہلے ہی سوالوں کے گھیرے میں ہے | سب سے بڑا سوال تو یہی ہے کی حکومت اس کے لئے پیسہ کہاں سے جٹايےگي؟ سيانے لوگوں کی سوچ دیکھئے اور تمام طرح کے اپويي اور گھوٹالے کرکے پیسہ برباد کیا جا سکتا ہے لیکن بےروجگارو کو بھتہ دینے کے لئے رقم کا اکال پڑ جائے گا | اگرچہ کئی ریاست سركارے پہلے سے ہی بے روزگاری الاؤنس دے رہی ہیں اور اس سے ان کے یہاں کوئی اقتصادی بحران پیدا ہو گیا ہو ایسا بھی نہیں ہے، لیکن یو. پی کا بڑا ریاست ہونے کا حوالہ دے کر ہمیشہ اسے دینے سے انکار کیا گیا | سماج وادی پارٹی نے پہلے بھی بےروجگارو کو بھتہ دیا تھا اور اب بھی اس سے اپنا وعدہ پورا کرنے کی امید کی جاتی ہے | ویسے بھی یہ کوئی بےروجگارو پر احسان نہیں ہے | حکومت کی یہ ذمہ داری ہے کہ وہ ہر شہری کو يتھايوگي ایسا کام دستیاب کرائے جس سے وہ ایک باعزت زندگی بشر کر سکے | بے روزگاری ایک ایسا لعنت ہے جو شخصیت کو ایسا باعزت زندگی جینے نہیں دیتی | سچ پوچھو تو بہت سے ذاتی، خاندانی، سماجی اور قومی مسائل کے لئے بے روزگاری ذمہ دار ہے چوری، لوٹ، اسمگلنگ، ٹھگي، دہشت گردی اور دےهوياپار جیسے جرائم اور غیر قانونی کاموں کے پیچھے مولت: بےروجاگاري ہی ایک بڑی وجہ ہے | موجودہ سیاسی ماحول میں جب حکومت کا واحد کام قانون نظامی برقرار رکھنا ہی خیال کیا جاتا ہے، جس کے لئے وہ قوم کے سارے وسائل استعمال کرتی ہے اور پھر بھی عوام کو مطمئن نہیں کر پاتی، اگر اس کا کچھ حصہ بے روزگاری بھتے کے طور پر خرچ کر کے اپنا سر درد کچھ کم کر لیتی ہے تو یہ پورے سماج کے مفاد میں ہے کہ حکومت جلد سے جلد بےروجگارو کو بھتہ دے | جب تک حکومت ایسا نہیں کرتی اس وقت تک کم سے کم اتنی ہی راحت دے دے کہ بےروجاگارو سے کام کی درخواست کے ساتھ جو چارج کیا جاتا ہے اسے ختم کر دے | ساتھ ہی انہیں داخلہ خط کے ساتھ مفت سفر کی سہولت فراہم کر دے | اکثر یہ دیکھا گیا ہے کہ بہت سے غریب بے روزگار نوجوان اس اخراجات کی وجہ سے ہی مقابلہ امتحانات میں حصہ نہیں لے پاتے | مجھے یہ بڑا عجیب لگتا ہے کہ بےروجگارو سے لاکھوں روپے درخواست خطوط کے ساتھ وصول کئے جاتے ہیں جبکہ جس کو نوکر کی ضرورت ہے، جو ملازم کو تنخواہ دینے کی قدرت رکھتا ہے وہ نوکر کی بھرتی کا خرچ نہیں اٹھا سکتا. وہ اس کی بھرتی کی نظام کے اخراجات بھی برداشت کرے لیکن ایسا نہیں ہوتا | اس کا خرچ بھی بے روزگار سے وصول کیا جاتا ہے | یہ بھی نہیں ہوتا کہ جس کو نوکری نہیں ملی ہے اس کا خرچ واپس کر دیں | کئی بار ایسا ہوتا ہے کہ کسی وجہ سےبھرتی منسوخ ہو جاتی ہے اور درخواست گزار کا سارا خرچ بیکار جاتا ہے | یہاں تک کہ پوسٹل آرڈر یا دوسرے طریقے سے لی گئی دھنراشي بھی واپس نہیں کی جاتی | یہ بےروجگارو کا استحصال اور لوٹ نہیں ہے تو کیا ہے؟ لیکن یہ نا انصافی اور ظلم کسی کو نظر نہیں آرہا؟ کوئی وچارك، کوئی مصلح، کوئی لیڈر، کوئی پارٹی اس کے خلاف آواز نہیں اٹھاتا | روزگار نہیں ملے گا، بیروزگاری الاؤنس نہیں ملے گا الٹے اس سے وصولی کرو گے؟ معلوم ہے کتنے بےكارو کو یہ پیسے اپنے ابھواوك سے کتنی جللت سے ملتے ہیں؟ گھر بھر سے هٹٹا کٹا نالائق، آوارہ، بےشرم جیسے طعنے سننے پڑتے ہیں؟ کتنے نوجوان اس جللت کی زندگی سے تنگ آ کر خودکشی کر لیتے ہیں، کتنے مجرموں کے همسپھر ہو جاتے ہیں، کتنے ڈپرےشن میں جیتے ہیں، نشےڑي ہو جاتے ہیں | اگر انہیں روزگار یا بیروزگاری الاؤنس نہیں دیا جا سکتا تو حکومت اتنا تو کر ہی سکتی ہے کہ ان کے ڈگری اور ڈپلومے کے ساتھ ہی سلپھاس کی گولی بھی دے دے تاکہ اگر بچپن اور جوانی کی كرباني دے کر حاصل کئے گئے كابليت کے کاغذی ٹکڑے کچھ کام نہ آ سکیں تو وہ ایک گولی کھا لیں اور حکومت اور سماج پر بوجھ بن کر نہ رہیں | اگر حکومت ایسا نہیں کرتی تو پھر بندوقوں کے فائر سے پھانسی کے پھدے تک کا راستہ تو ان کے لئے کھلا ہی ہے | لال، نیلی، ہری، پیلی کوئی حکومت ہو جب تک بے روزگاری کا مسئلہ رہے گی ملک میں افراتفری رہے گی |

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुलझे हुये तरीके से समस्या रखते हैं आप ..श्रद्धान्शु शेखर

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  2. 2- जी सर , काफी सादगी से आपने वो थोड़े से पहलू रख दिए हैं जो बारिश की बूंदों का सा वजूद रखते हैं . रोज़गार और इज्ज़त हर नागरिक का हक है , और इसे देना हर सरकार की ज़िम्मेदारी है . जितना भी यहाँ जनता की ज़रुरत होती है उस से ज्यादा तो घोटालो और ग़बन की भेंट चढ़ जाता है . ये वाकई सच है कि कोई भी फॉर्म भरने के लिए जो पैसे लिए जाते हैं , वो चाहे जितने भी कम हों मिल कर समुन्दर भरने का वजूद रखते हैं , सरकारी संस्थाएं इन्ही से करोडो सीधे कर कराती हैं और अक्सर चर्चा भी नहीं होता .
    आपने अच्छे बिंदु उजागर कर दिए हैं . सितवत अहमद
    3-मितरां इस विषय के अन्य पहलूओं पर लिखें |बेजुबान बेरोजगारों कि आवाज बनें |
    2 hours ago · Like

    4-बेरोजगार होना और बेरोजगार दिखाना दोनों में अंतर है, बदायूँ में मेडिकल छात्राएं, एन्जीन्यरिग के छात्र छात्राएं महंगे मोबाईल और चकाचौंध व्यक्तित्व के साथ स्वयं को बेरोजगारों की पंक्ति में खड़ा किये हुए थे, लगता है असली बेबस बेरोजगारों के नंबर से पहले सिफारिशी लोगो का नंबर आएगा , आरक्षण में भी मलाई भरे पेट ही खाते हैं|-सुधाकर आशावादी शर्मा
    5-कुछ हद तक आप भी सही कहते हैं कि महंगें मोबाईल रखते हैं और बेरोजगारों की लाईन में खड़े होते हैं | लेकिन मुद्दा बेरोजगारी है,गरीबी नहीं | हर वो आदमी बेरोजगार है जिसे उसकी योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता| मैं ये नहीं कहता कि आप डाक्टर या इंजीनियर हैं तो आपको मोटा वेतन मिलना चाहिये लेकिन आप उसे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दें दें और ये कहें कि हम तो काम दे रहें हैं लेकिन ये काम नहीं करना चाहते या जैसा हमारे कर्णधार कहते हैं नौजवान स्वरोजगार करें -वे कपड़ा या परचून का सामान बेचें बीमा पालिसी बेचें, शेयर बेंचें तो मेरी नजर में ये सरासर नाइंसाफी है | रही आरक्षण की बात तो इस पर में पहले ही विस्तृत लेख लिखा चुका हूँ| रोजगार मौलिक अधिकार है सबको रोजगार मिलना चाहिये |कुछ जातियों के लिए आरक्षण राजनीतिक झुनझुने से ज्यादा कुछ नहीं है |--अमरनाथ 'मधुर'

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  3. 5-आप इतना बेहतरीन सोच लेते हैं मई मान गयी पर आप अपने शब्दों को कागज़ पर उतार लेते हैं इतने खूबसूरती से महान हो मुरीद हूँ आपके शब्दों के चुनाव की. काश मैं भी इतना फ्लो में खुद को जाहिर कर पाती.-अंशु सोम

    6-मैं तो मूलत : कवि गद्य लिखना अभी ही शुरू किया है आपको पसंद इसके लिये आपका बहुत्बहुत शुक्रिया ।असल में हाशिये पर पड़े लोगों की पीड़ा मुझे विचलित करती रहती है इसलिए मुझे लिखना जरूरी लगता है ।ये वो लोग है जिनकी समाज में जबरदस्त शोषण और उपहास किया जाता है ।आप भी 'हमारी आवाज 'में आवाज मिलाईये ।सीधे सादे शब्दों में लिखना शुरू कर दीजिये भाव अपने लिये शब्द स्वयं तलाश लेते हैं ।-अमरनाथ 'मधुर'

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