खबर है कि मेरठ के इंचौली थाना क्षेत्र के ग्राम नंगला शेखू में एहसान नामक व्यक्ति ने अपनी दो बेटियों को गर्दन रेत कर कत्ल कर दिया। उसका कहना था कि उसकी बेटियॉं बदचलन थी जिसके कारण समाज में परिवार की बदनामी हो रही थी। हत्या के बाद हत्यारे बाप ने ही ग्राम प्रधान को हत्या की सूचना दी। प्रधान द्वारा सम्बन्धित थाने में सूचना दी गई जिसके बाद हत्यारे को गिरप्तार कर लिया गया।
ग्रामीणों ने बताया कि गुलिस्तॉं और शाईस्ता नाम की दोनों बहनें आजाद ख्याल थीं। शाईस्ता मेरठ कॉलिज मेरठ में बी0ए0 में पढ रही थी। उसने पुलिस की नौकरी के लिये आवेदन किया हुआ था। वह पुलिस में भर्ती होने के लिये कडी मेहनत कर रही थी। वह सुबह शाम दौड भी लगाती थी। उसकी बडी बहिन गुलिस्तॉं जन्म से किन्नर थी। दोनों बहनों में बडी आत्मीयता थी। दोनों बहनें को समलैंगिक बताया जा रहा है। हत्या से पहले तीन दिन तक दोनों बहिने घर से बाहर रहीं। घर आने पर जब बाप ने बुरा भला कहा तो उन्होंने जबाब दिया कि उनकी जैसी मर्जी होगी वो वैसा करेंगी जिसको जो करना है कर ले। बाप तभी उन्हें जान से मारने पर आमादा हो गया लेकिन उनकी मॉं के बीच में आ जाने पर वो तब बच गयीं लेकिन रात को सोते हुये उनके सिर गर्दन से काट दिये गये।
ये वो बयान हैं जो हत्यारे और अन्य लौग दे रहे हैं। मृतक अपना बयान दें नहीं सकती और इससे असहमत लोग दबी जबान में अपनी बात कह रहें हैं।इस हृदय विदारक घटना से कई सवाल खडे हो गये हैं। सबसे पहला सवाल व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का है। यह प्रतिष्ठा स्त्री के चाल चलन से एकदम गिर जाती है। सदियों से गिरती रही है। आदमी बदचलन हो तो कुछ खास फर्क नहीं पडता लेकिन औरत के जरा भी इधर उधर होने पर यह फौरन गिर जाती है।इसे दिल्ली के लौह स्तम्भ पर मजबूती से वैल्ड किया जाना चाहिये। यह तब नहीं गिरती जब औरत खूॅंटे से बंधी मरियल गाय की तरह भूखी प्यासी रखकर डन्डों से पीटी जाती है। यह तब नहीं गिरती जब वह तन्दूर में जलाई जाती है। वह तब नहीं गिरती जब वह फूलन देवी की तरह सारे गॉंव के लोगों के सामने नंगा करके बेइज्जत की जाती है । वह तब भी नहीं गिरती जब वह बीहड जंगलों में तो बहादुरी से सिर उॅंचा करके रहती है लेकिन राजधानी में कुछ कायरों द्वारा घात लगाकर मार दी जाती है। दहेज और देह व्यापार के बाजार में औरत के अपमान पर भी नहीं गिरती।
ये है हमारी औरत विरोधी मानसिकता जो जब चाहे आधुनिकता के सामने आकर खडी हो जाती हैं बात हम करेंगें क्या इसी से हमारी बेटियॉं अलका तोमर,बछेन्द्री पाल,कल्पना चावला बनेंगी? क्या इशरत जहॉं, भॅंवरी बाई और सोनी सोरी की अन्तिम परिणति ही उसकी नियति है? पता नहीं एक औरत किसी पुरूष के बगैर कैसे बदचलन हो जाती है। समलैंगिकता के आरोप का पत्थर तो बिल्कुल चकनाचूर करने के लिये फेंका जाता है। जैसे बदचलन कहना ही काफी नहीं था। अब इससे ज्यादा कहने को और क्या बचता है। किसी को भी जान से मारने के लिये इतना काफी है। अब पता नहीं कौन से कानून में ये अपराध है और किस कानून ने उन्हें जान से मारने की इजाजत दी है। लेकिन ये हमारे समाज में हो रहा है और बिना किसी भय के हो रहा है।
हमारी युवा पीढी अपने परिजनों से ही अपने प्राण बचाने को लेकर चितिंत है और कहीं से मदद का कोई हाथ बढता उन्हें दिखायी नहीं देता। प्रेमीजनों के सिर कलम करके ही परिजनों का सिर अपने समाज मे उॅंचा उठता है। प्रेमियों के दिलों के अरमान परम्परा की चौखट पर कुचल दिये जाते है। लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि युवा प्रेम करना छोड देंगें या सडी गली परम्पराओं के आगे अपना सिर झुका देंगे। प्रेमियों ने हर दौर में समाज के अत्याचार सहे हैं। आगे भी वे अत्याचार सहते रहेंगे और इसी प्रकार अपनी कुर्बानी देते रहेंगें। ये उनकी समाज की सडी हुई मानसिकता के विरूद्ध एक लडाई हैे, सामाजिक परिवर्तन की लडाई है जिसे हमारे युवा अकेले दम प्राण प्रण से लड रहे हैं। इस लडाई में जो मारे जा रहे हैं वे सही मायने में समाजिक परिवर्तन के शहीद कहलायेंगें। अभी तक राजाओ,महाराजाओं, लुटेरे विजेताओं का इतिहास लिखा जाता रहा है जब कभी भी सामाजिक परिवर्तन का इतिहास विधिवत लिखा जायेगा तो उसमें इनके बलिदान की गाथा अवश्य लिखी जायेगी। इस इतिहास के नायक सिकन्दर या तैमूर न होंगें इसके नायक होंगें हीर रॉंझा,सोहनी महीवाल, लैला मजनूॅं और वो सब जो सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर मारे गये या सताये गये।
احسان کی ماری بےٹي
خبر ہے کہ میرٹھ کے اچولي تھانہ علاقہ کے گاو نگلا شےكھو میں احسان نامی ایک شخص نے اپنی دو بیٹیوں کو گردن ریت کر قتل کر دیا. اس کا کہنا تھا کہ اس کی بےٹي بدچلن تھی جس کی وجہ سے سماج میں خاندان کی بدنامی ہو رہی تھی. قتل کے بعد قاتل باپ نے ہی پردھان کو قتل کی اطلاع دی. وزیر کی طرف سے متعلقہ تھانے میں اطلاع دی گئی جس کے بعد قاتل کو گرپتار کر لیا گیا.
دیہاتیوں نے بتایا کہ گلست اور شايستا نام کی دونوں بہنیں آزاد خیال تھیں. شايستا میرٹھ كلج میرٹھ میں بی 0 اے 0 میں پڑھ رہی تھی. اس نے پولیس کی ملازمت کے لئے درخواست دی ہوئی تھی. وہ پولیس میں بھرتی ہونے کے لئے سخت محنت کر رہی تھی. وہ صبح شام دوڑ بھی لگاتی تھی. اس کی بڑی بہن گلست پیدائش سے كننر تھی. دونوں بہنوں میں بڑی اتار تھی. دونوں بہنیں کو ہم جنس بتایا جا رہا ہے. قتل سے پہلے تین دن تک دونوں بهنے گھر سے باہر رہیں. گھر آنے پر جب باپ نے برا بھلا کہا تو انہوں نے جواب دیا کہ ان کی جیسی مرضی ہوگی وہ ویسا کریں گی جس کو جو کرنا ہے کر لے. باپ تبھی انہیں جان سے مارنے پر آمادہ ہو گیا لیکن ان کی م کے بیچ میں آ جانے پر وہ اس وقت بچ گئی لیکن رات کو سوتے ہوئے ان کے سر گردن سے کاٹ دیے گئے.
یہ وہ بیان ہے جو قاتل اور دیگر لوگ دے رہے ہیں. مرتك اپنا بیان دیں نہیں سکتی اور اس سے اختلاف لوگ دبی زبان میں اپنی بات کہہ رہے ہیں. اس دل ودارك واقعہ سے کئی سوال کھڑے ہو گئے ہیں. سب سے پہلا سوال شخصیت کی سماجی وقار کا ہے. یہ وقار عورت کے چال چلن سے ایک دم گر جاتی ہے. صدیوں سے گرتی رہی ہے. آدمی بدچلن ہو تو کچھ خاص فرق نہیں پڑتا لیکن عورت کے ذرا بھی ادھر ادھر ہونے پر یہ فورا گر جاتی ہے. اسے دہلی کے لوہے کے کالم پر مضبوطی سے وےلڈ کیا جانا چاہیے. یہ اس وقت نہیں گرتی جب عورت كھوٹے سے بندھی مريل گائے کی طرح گرسنہ پیاسی رکھ کر ڈنڈو سے پی ٹی جاتی ہے. یہ اس وقت نہیں گرتی جب وہ تندور میں جلائی جاتی ہے. وہ اس وقت نہیں گرتی جب وہ پھولن دیوی کی طرح سارے گاؤں کے لوگوں کے سامنے ننگا کر کے بےججت کی جاتی ہے. وہ تب بھی نہیں گرتی جب وہ بيهڈ جنگلوں میں تو بہادری سے سر اچا کر کے رہتی ہے لیکن دارالحکومت میں کچھ كايرو کی طرف سے گھات لگا کر مار دی جاتی ہے. جہیز اور جسم بزنس کے بازار میں عورت کے توہین پر بھی نہیں گرتی.
یہ ہے ہماری عورت مخالف ذہنیت جو جب چاہے جدیدیت کے سامنے آ کر کھڑی ہو جاتی ہیں بات ہم کریں گے کیا اسی سے ہماری بےٹي الكا تومر، بچھےندري پال، تصور چاولہ ہوں گی؟ کیا عشرت جہاں، بھوري بائی اور سونی سوری کی آخری نتیجہ ہم ہی اس کی نيت ہے؟ پتہ نہیں ایک عورت کسی مرد کے بغیر کس طرح بدچلن ہو جاتی ہے. ہم جنس کے الزام کا پتھر تو بالکل چکنا چور کرنے کے لئے پھینکا جاتا ہے. جیسے بدچلن کہنا ہی کافی نہیں تھا. اب اس سے مزید کہنے کو اور کیا بچتا ہے. کسی کو بھی جان سے مارنے کے لیے اتنا کافی ہے. اب پتہ نہیں کون سے قانون میں یہ جرم ہے اور کس قانون نے انہیں جان سے مارنے کی اجازت دی ہے. لیکن یہ ہمارے معاشرے میں ہو رہا ہے اور بغیر کسی خوف کے ہو رہا ہے. ہماری نوجوان نسل اپنے اہل خانہ سے ہی اپنی جان بچانے کو لے کر چتت ہے اور کہیں سے مدد کا کوئی ہاتھ بڑھتا انہیں دکھائی نہیں دیتا. پرےميجنو کے سر قلم کرکے ہی اہل خانہ کا سر اپنے سماج میں اچا اٹھتا ہے. شائقین کے دلوں کے ارمان روایت کی چوكھٹ پر کچل دیئے جاتے ہیں. لیکن اس کا یہ مطلب بالکل نہیں ہے کہ نوجوان محبت کرنا چھوڑ دےگے یا سڈي گلی روایات کے آگے اپنا سر جھکا دیں گے. شائقین نے ہر دور میں سماج کے ظلم سهے ہیں. آگے بھی وہ ظلم سهتے رہیں گے اور اسی طرح اپنی قربانی دیتے رهےگے. یہ ان کی سماج کی سڈي ذہنیت کے خلاف ایک جنگ هےے، سماجی تبدیلی کی جنگ ہے جسے ہمارے نوجوان اکیلے دم جان عہد سے لڈ رہے ہیں. اس جنگ میں جو مارے جا رہے ہیں وہ صحیح معنوں میں سماجی تبدیلی کے شہید كهلايےگے. ابھی تک راجاو، مہاراجہ، لٹیرے جیتنے والوں کا تاریخ لکھی جاتی رہی ہے جب کبھی بھی سماجی تبدیلی کا تاریخ باقاعدہ لکھا جائے گا تو اس میں ان کی قربانی کی گاتھا ضرور لکھی جائے گی. اس تاریخ کے ہیرو سکندر یا تےمور نہ ہوں گے اس کے ہیرو ہوں گے ہیر رجھا، سوہنی مهيوال، لیلی مجنو اور وہ سب جو سماجی وقار کے نام پر مارے گئے یا ستايے گئے.
1 सभ्यता बेबस है ..श्रद्धान्शु शेखर
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2- अब कौन सी सभ्यता की बात चल रही है , सभ्यता सिर्फ मध्यमवर्गीय परिवारों तक सीमित रह गयी है ज़नाब .-सुधाकर आशावादी शर्मा
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3 -आदमियत सवालों के घेरे में है |आदमी के सभ्य होने पर सवालिया निशान है |औरतों को पैर की जूती समझने की जहनियत को ललकारती ललनाओं की बलि है |-अमरनाथ मधुर
4- 'प्रतीक्षा' उफ्फ....!!!-अनामिका कनोजिया
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5- ये बड़ी बिडम्बना है ....हमारे यहाँ कहावत है कि जब बेटियां पैदा होती हैं तो घर के दरवाज़े काँपते हैं क्या पता नहीं ये घर की इज्ज़त रखेगी या नीलाम करेगी ...सदियों बाद भी कुछ नहीं बदला ,,,बेटा बदचलनी करे तो कुछ नहीं बेटियां करें तो .........फैसल बिन मेहदी हसन .
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6- ये वाकई लाइक करने लायक स्टेटस है..? पर ईसा के शब्दों में पत्थरों से मार डालों,पर पहला पत्थर वो चलाऐ जिसने कोई पाप न किया हो-आशीष मिश्र
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किंग हुसैन सिर्फ ये मत देखिये कि उसने गला रेट डाला क्यूँ रेट डाला उस बात पर भी रौशनी डालिये?
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7- अफसोस की बात है लेकिन हालात ऐसा कैसे बना ?
4 hours ago · Like · 1-अवैस यासीन
8- बहुत ही अच्छा किया उसने ऐसे बेटियों के साथ ऐसा ही करना चाहिए ......आजाद अहमद
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9- हमारे नैतिकता का माप दंड अलग है ..बेटे करें तो जवानी की मस्ती ..बेटी कर ले तो पाप ...ये आज की बात नहीं ...हमारी सोसायटी की मानसिकता नहीं बदलती ..हजारों साल बाद भी ...खुद १२ सम्बन्ध रखेंगे ..मगर बेटियों का एक भी बर्दाश्त नहीं होता ....फैसल बिन मेहदी हसन
4 hours ago · Like · 1
10- आजाद भाई ,आप पहला पत्थर फेंक सकते हैं? संस्कारों की प्रथम नींव माता-पिता रखते हैं,अपवादस्वरुप शायद कोई माता-पिता हो जिन्होने मर्यादित जीवन जिया हो और संतान अमर्यादित आचरण करे-.आशीष मिश्र
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11- किसी ने कोई अच्छा काम नहीं किया !! यह बहुत ही शर्मनाक बात है की कोई एक इन्सान ऐसा कर सकता है !!अगर इंसानियत होती तो ऐसा कभी नहीं किया जाना चाहिए !! ऐसा करने वाला बेशक एक दिमागी रूप से बीमार आदमी है !!!क्यूँ कि अच्छा इन्सान ऐसा नहीं कर सकता !! रही बात हालत कि तो ! मई समझता हूँ कि हालत पैदा करने में उस घर का उस इन्सान का ! और वहां के माहौल का बहुत ही बड़ा हाथ होता है !!!-मो शब्बीर खान
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12- मैं आपका बहुत आभारी हूँ कि आपने केवल औपचारिकता नही निभायी बल्कि एक सवेंदनशील और सामयिक मुद्दे पर अपने विचार पूरी स्पष्टता से रखे ।ऐसे ही विमर्श से पूरे समाज का द्रष्टिकोण बनता है । आपने माना है कि लड़कों और लड़कियों के आचरण के मानदंड अलग अलग हैं । मैं इस विभेद को ही सारे विमर्श के केंद्र में रखता हूँ । मेरी नजर में लडके और लड़की में किसी भी तरह का भेदभाव यहाँ तक कि असामाजिक गतिविधियों में भी अस्वीकार्य है ।चाहे और किसी कारण से लड़कियां दण्डित या निन्दित हों लेकिन लिंगभेद के कारण तोनहीं होनी चाहियें ।अब बात बाप की या परिवार की इज्जत की करें जैसा कि मैंने पहले कहा अगर यह लड़कों के आचरण से खराब नहीं होती तो लड़कियों से क्यूँ खराब होने लगा जाती है ? दूसरे क्या जान से मारने से इज्जत बढ़ जाती है? अगर वो लड़की जैसा कि कहा जाता है कि पुलिस में भर्ती होने की तैयारी कर रही थी पुलिस में होती तो क्या तब भी उसका बाप उसका सर कलम करता ?जब आप एक लड़की हर बड़े ओहदे पर देखना चाहते हैं और इसके लिये उसे फैसले की आजादी देते हैं तो फिर प्यार और शादी की स्वतंत्रता क्यूँ नहीं देते ?वेश्या का सवाल उठाकर आपने बर्र के छत्ते को छेड़ दिया है ।वेश्या किसी पुरुष के बगैर पतित नहीं हो सकती ।वेश्या की जरुरत लम्पट पुरुषों को है । यह धन को सम्मान देने वाले समाज की देन है।वेश्या मानव गरिमा और सभ्यता के माथे का कलंक है ।जैसे हिन्दू समाज में अस्पर्श्य वर्ण के लोग हैं स्त्रियों में वेश्या हैं । ये आख़री पायदान की जमात है जिनके सीने पर पैर रखकर सर्व समाज ऊपर पहुँचता रहा है और ऊपर पहुँच कर धिक्कारता भी रहा है । लेकिन ये हमेशा नहीं चल सकता ।अगर आप उनकी हालत को नहीं बदलेंगे तो वो एक दिन सारी व्यवस्था बदल देंगें । हम जानते हैं कि समाज के श्रीमंत ऐसा नहीं होने देंगे । इसलिये हमारी आवाज उनके खिलाफ बुलंद है ।
जवाब देंहटाएं13-जब बात प्रेम की हो तो और उसका मकसद शादी ही हो न की सिर्फ टाइम पास मटर गश्ती हो । साथही प्रेम परिपक्व उम्र यानि अपना भविष्य भली-भांति सोच-समझने वाली आयु में हुआ हो तो उस हालात में प्रेमी-प्रेमिका के साथ ऐसी दुर्घटना होना अफसोस की बात है ... पर यदि कच्ची उम्र में बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड... सिर्फ अपने टाइमपास के लिए माँ-बाप को बेवकूफ बनाएँ ...हज़ार बार समझाने पर भी वो बाज़ न आयें ऐसे मे पेरेंट को क्या करना चाहिए ?????कई बार तो बेशर्म बच्चे माँ-बाप की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ाकर पोलिस तक में उनके खिलाफ रिपोर्ट लिखा देते हैं ॥ ऐसे बच्चों से माँ-बाप तंग होकर क्या खुद जान दे दें ??????? कहिए आपने शायद सारा समाचार नहीं पढ़ा एहसान ने अपनी बेटियों को बहुत ही समझाने की कोशिश की थी ... पर पानी सर से ऊपर हो चुका था क्या इन हालात में उसे खुद ही आत्महत्या कर लेनी चाहिए थी ? कोई भी माँ या बाप अपने बच्चे की जान नहीं लेना चाहता ... आप उन्हे शहीद की श्रेणी मे रखना चाहते हैं जो माँ-बाप की इज्ज़त से खेलते हैं .... इज्ज़त क्या है???????? जो वेश्या के पास नहीं इसलिए वो मारी नहीं जाती ॥ क्या इज्ज़त के बिना समाज में रह सकता है कोई ॥ आपने कहा की बेटों को कोई नहीं कहता । कहते हैं पर वो पुरुष है न बलशाली है इसलिए सब डरते हैं उस से । और जो लड़कियां पूरा- का पूरा खानदान तबाह कर देती हैं इस मोहब्बत में उनका क्या .... जरूरत है एक नए नजरिये से इस पहलू को देखने की और सुधार करने की ॥मेरा तो इतना तक मानना है की एक उम्र तक पहुँचते-पहुँचते,क्यूँ न बच्चों को नई दिशा प्रदान की जाए उनकी आँखों में उनके जीवन साथी के सपने ऐसे भरें जैसा माँ-बाप चाहते हैं ।और इसकी शुरुआत घर के साथ-साथ स्कूल में भी हो । तब कोई एहसान अपनी ही बेटियों को मारने का दर्द न सहेगा
-मनु राणा