मैं रोने वाला नहीं कवि हूँ
भगत सिंह के इन विचारों को आज रेखांकित कि जरूरत इसलिए अनुभव रही है क्योंकि वर्तमान हालत ऐसे हैं जिनमें हमें यह तय करना है कि हम क्रन्तिकारी भगत सिंह के रास्ते को चुने या धर्मांध भिंडरावाले और नाथूराम गोडसे के रास्ते को | धर्मान्धता के रास्ते पर चल कर अवतार सिंह 'पाश' जैसे जन कवि तथा महात्मा गाँधी जैसे मानवतावादी कि बलि चढ़ाई गयी जबकि भगत सिंह के रास्ते पर चल कर हम उस जंग में शामिल हो सकते हैं जिसकी ओर पंजाब के गवर्नर को लिखे अपने पत्र में लिखा था कि - ' हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह युद्ध तब तक चलता रहेगा जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार जमाये रखेंगें | चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति, शासक या विशुद्ध भारतीय ही हों | उनहोंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी है| यदि शुद्ध भारतीय पूंजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तब भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता -------- इस बात की हमें चिंता नहीं है कि एक बार फिर युवकों को धोखा दिया गया है और इस बात का भी भय नहीं है की हमारे नेता पथ भ्रष्ट हो गयें हैं | हो सकता है की यह युध्द भिन्न-भिन्न दशाओं में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे | कभी यह युध्द प्रकट रूप ले ले कभी गुप्त दशा में चलता रहे | कभी भयानक रूप धारण करे, कभी किसान के स्तर पर जारी रहे | परन्तु यह युध्द जारी रहेगा | यह उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक की समाज का वर्तमान ढांचा समाप्त नहीं हो जाता | ' शहीद भगत सिंह ने जिस जंग की घोषणा की थी वह आज भी जारी है | क्योंकि अभी मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण समाप्त नहीं हुआ है |अवतार सिंह 'पाश' इस जंग में शहीद हुए | आओ हम उनके पथ पर चलें -
किस तरह चुप रह सकता हूँ
मैं कब मुकरता हूँ कि
मैं क़त्ल करता नहीं करता
मैं कातिल हूँ उनका जो इंसानियत का कत्ल करते हैं
हक़ का क़त्ल करते हैं ,
सच का क़त्ल करते हैं
जिंदगी भर इन्सानियत के कातिलो के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले पंजाब के जनकवि अवतार सिंह 'पाश 'को ३७ साल की उम्र में ही २३ मार्च १९८८ को धर्मांध दहशतगर्दों ने गोलियां बरसाकर मार दिया था | शहीदे-आज़म भगत सिंह ने २३ मार्च १९३१ को फांसी चढ़कर इन्कलाब की जिस लौ को जलाया था, जनकवि अवतार सिंह 'पाश' उसे मशाल बनाकर जिये | उनका जन्म ९ सितम्बर १९५० को ग्राम तलवंडी सलेम जिला जालंधर (पंजाब) में हुआ था | उन्होंने पहली कविता १५ वर्ष की आयु में लिखी | वे १९६७ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और १९६९ में नक्सलवादी आन्दोलन से जुड़े | १९८५ में वे अमेरिका चले गए वहाँ एंटी -४७(१९८६-८८) का संपादन करते हुए खालिस्तानी आन्दोलन के विरुद्ध सशक्त प्रचार किया |
पंजाबी भाषा के कवि 'पाश' को उनकी म्रत्यु के बाद अन्य भाषा भाषियों ने भी बखूबी पहचाना| 'पाश' की कविता की धार निराला, नागार्जुन और गोरख पाण्डेय की याद ताज़ा कर देती है | 'पाश' एक ऐसा जन कवि था जिसने केवल शब्दों का बडबोलापन ही नहीं दिखाया बल्कि व्यवस्था के खिलाफ लगातार लड़ाई भी लड़ी | वे कई बार जेल गए और पुलिस की यातना सही | उनका कहना था -
हम झूठ मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
और हम सब कुछ सचमुच देखना चाहते है
जिन्दगी, समाजवाद या कुछ ओर |
'पाश' ने १९६७ में जब कविता लिखना शुरू किया तो देश में नक्सलवादी आन्दोलन की व्यापक गूँज थी | 'पाश' मार्क्स-लेनिन-माओ की विचारधारा को अच्छी तरह समझ कर राजनीति के उस हिस्से से जुड़े जो व्यक्तिगत हत्याओं में नहीं वरन जनांदोलन चलने में विशवास रखता था | 'पाश' की कविता किसानों, खेत मजदूरों,चरवाहों को लेकर लिखी गयी है | उनकी नजर में यही भारत है | ' भारत ' शीर्षक कविता में वे कहते हैं -
जब भी कोई समूचे भारत की
'राष्टीय एकता' की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है -
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ
किसी दुष्यंत से सम्बन्धित नहीं
वरन खेतों में दायर हैं जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगाती है |
'सच' शीर्षक कविता में वे कहते हैं -
आपके मानने या न मानने से
सच को कोई फरक नहीं पड़ता
कल जब यह युग लाल किले पर
परिणाम का ताज पहने
समय की सलामी लेगा
तो आपको सच के असली अर्थ
समझ में आ जायेंगें |
सब लोगों के लिए देश भक्ति के मायने अलग अलग होते हैं कुछ के लिए राजसत्ता का गुणगान, कुछ के लिए अतीत का गौरवगान तथा कुछ के लिए देश का नक्शा, संविधान | जनकवि 'पाश' के लिए देशभक्ति अपने देश की जनता कि मोहब्बत में, उसके दुःखदर्द में बसती है |तभी तो वे कहते हैं -
मुझे देश द्रोही भी कहा जा सकता है
लेकिन मैं सच कहता हूँ यह देश अभी मेरा नहीं है
यहाँ के जवानों या किसानों का नहीं है
यह तो केवल कुछ 'आदमियों' का है
ओर हम अभी आदमी नहीं हैं ,बड़े निरीह पशु हैं |
हमारे जिस्म में जोंकों ने नहीं पालतू मगरमच्छों ने दांत गड़ाएं हैं
उठो,
उठो काम करने वाले मजदूरों उठो |
खेमो पर लाल झंडे लगाकर बैठने से कुछ न होगा
इन्हें अपने रक्त की रंगत दो |
'पाश' ने वतन के मेहनतकशों को आवाज दी कि वे देश को सही मायने में अपना देश बनाने के लिए व्यवस्था परिवर्तन के लिए उठ खड़े हों | ऐसी हर आवाज को व्यवस्था के पोषकों ने सदा देश कि सुरक्षा के लिए खतरा बताया है | 'पाश ने इसी सुरक्षा को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए क
यदि देश कि सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाए
ओर मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश कि सुरक्षा से खतरा है |
आगे वे कहते हैं -
अगर देश कि सुरक्षा ऐसी होती कि
हर हड़ताल को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा कि खिड़की में ही खिलेगा
अक्ल, हुकुम के कुँए पर रहट की तरह ही धरती
सींचेगी,
मेहनत राज महलों के दर पर बुहारी ही बनेगी
तो हमें देश कि सुरक्षा से खतरा है |
तो हमें देश कि सुरक्षा से खतरा है |
आपातकाल घोषित कर देश को ऐसी सुरक्षा देने वाली श्रीमती इंदिरा गाँधी के खिलाफ उनका गुस्सा उनके देहांत के बाद भी ठंडा नहीं हुआ बल्कि राष्ट्र को शोकग्रस्त देखकर ओर उबाल खा गया | उन्होंने ' बेदखली के लिए विनय पत्र ' कविता में जो कहा श्रीमती गाँधी कि हत्या के शोकपूर्ण माहौल में उसे सुनकर लोग अवाक् रह गये |
मैंने उम्र भर उसके खिलाफ़ सोचा और लिखा है
अगर उसके शोक में सारा देश शा
तो इस देश से मेरा नाम काट दें |
तो इस देश से मेरा नाम काट दें |
सन ८४ के सिख विरोधी दंगों में उन्होंने बेख़ौफ़ होकर कहा -
मैंने हमेशा ही उसे क़त्ल किया है
हर परिचित की छाती में ढूँढकर
अगर उसके कातिलों को सड़कों पर इस तरह देखा
जाना है |
तो मुझे भी मिले इसकी सजा |
'पाश' की मानसिक व्यथा उस समय और बढ गयी जब श्रीमती गाँधी के बाद भी वंशवाद की परंपरा जारी ही रहती है | आवेश की हालत में बेदखली का यह लावा इस तरह फूट पड़ता है -
इसका जो भी नाम है गुंडों की सल्तनत का
मैं इसका नागरिक होने पर थूकता हूँ
हाँ मैं भारत हूँ चुभता हुआ उसकी आँखों में
अगर उसका अपना कोई खानदानी भारत है
तो मेरा नाम उससे भी अभी काट दें |
बगावत की ऐसी आवाज शायद ही किसी कवि ने बुलंद की हो | 'पाश' के तेवर तानाशाही निजाम के साथ-साथ धर्मांध दहशतगर्दों के खिलाफ भी उसी हौसलें से लोहा लेते रहे | उन्होंने धर्मगुरुओं को चुनौती देते हुए कहा -
किसी भी धर्म का कोई ग्रन्थ
मेरे जख्मी होठों की चुप से अधिक पवित्र नहीं है |
जख्मी होठों की यह चुप्पी ढिठाई या कुफ्र नहीं है धर्मांध लोगों के पास वह समझ ही कहाँ होती है कवि 'पाश' उनसे कुछ बात कर सकते तभी तो वह कहते है -
तुझसे दिल का सच कहना दिल की बेअदबी है
सच की बेअदबी है
तुझसे गिला करना इसकी हेठी है
जा तू शिकायत के काबिल होकर आ
अभी तो मेरी हर शिकायत से तेरा कद बहुत छोटा है
' धर्म दीक्षा के लिए विनय पत्र ' कविता में 'पाश' ने भिंडरवाले की फासिस्ट विचारधारा पर आधारित खालिस्तानी आन्दोलन के अमानवीय पक्ष को एक माँ की गुहार के माध्यम से उभरा है| धर्म गुरु से माँ अपने बेटे की दीक्षा व रक्षा चाहती है क्योंकि 'आदमी बेचारा सर पर रहा नहीं' क्योंकि धर्मगुरु कि हुंकार ने 'अच्छे खासे परिवारों को बाड़े ' में बदल दिया है |
'पाश' की मशहूर कविताओं में कामरेड से बातचीत; लोहा, हाथ, कुँए, तूफान कभी मात नहीं खाते, युध्द और शांति, तीसरा महायुध्द तथा सबसे खतरनाक प्रमुख हैं | अपनी अंतिम तथा संभवत: अपूर्ण कविता 'सबसे खतरनाक' में वे कहते हैं -
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
क्या शहीद अवतार सिंह 'पाश' और भगत सिंह के सपने मर जायेंगें ? क्या हम धर्मांध और स्वेछाचारी सत्ताधीशों के आगे झुक जायेंगें ? बलिदान दिवस २३ मार्च को शहीद भगत सिंह को याद करते हुए उनके उन शब्दों का ध्यान करें जो उन्होंने ग़दर पार्टी के आन्दोलन के सम्बन्ध में आजीवन कारावास की सजा प्राप्त लाला राम सरन दास की काव्य पुस्तक 'ड्रीमलैंड' की भूमिका में लिखा था -
' प्राय: सभी राष्ट्रवादी धर्मों में तालमेल बैठाने का प्रयास करते हैं | प्रश्न को सुलझाने का यह तरीका लम्बा और गोलमोल है और जहाँ तक मेरा सवाल है मैं इसे कार्ल मार्क्स के एक वाक्य में यह कह कर रद्द कर दूंगा कि धर्म जनता के लिए अफीम है इसे में उन्होंने आगे लिखा है ' भविष्य के समाज में अर्थात कमुनिस्ट समाज में ,जिसका हम निर्माण करना चाहते हैं, हम धर्मार्थ संस्थाएँ इस्थापित करने नहीं जा रहे हैं बल्कि उस समाज में न गरीब रहेंगें न जरूरतमंद, न दान देने वाले न दान लेने वाले | '
नौजवान भारत सभा के घोषणापत्र में भी शहीद भगत सिंह ने लिखा है कि ' धार्मिक अन्धविश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं वे हमारे रस्ते के रोड़े साबित हुए हैं हमें उनसे हर हालत में छुटकारा पा लेना चाहिए जो चीजें आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती उन्हें समाप्त हो जाना चाहिये | '
भगत सिंह के इन विचारों को आज रेखांकित कि जरूरत इसलिए अनुभव रही है क्योंकि वर्तमान हालत ऐसे हैं जिनमें हमें यह तय करना है कि हम क्रन्तिकारी भगत सिंह के रास्ते को चुने या धर्मांध भिंडरावाले और नाथूराम गोडसे के रास्ते को | धर्मान्धता के रास्ते पर चल कर अवतार सिंह 'पाश' जैसे जन कवि तथा महात्मा गाँधी जैसे मानवतावादी कि बलि चढ़ाई गयी जबकि भगत सिंह के रास्ते पर चल कर हम उस जंग में शामिल हो सकते हैं जिसकी ओर पंजाब के गवर्नर को लिखे अपने पत्र में लिखा था कि - ' हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह युद्ध तब तक चलता रहेगा जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार जमाये रखेंगें | चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति, शासक या विशुद्ध भारतीय ही हों | उनहोंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी है| यदि शुद्ध भारतीय पूंजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तब भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता -------- इस बात की हमें चिंता नहीं है कि एक बार फिर युवकों को धोखा दिया गया है और इस बात का भी भय नहीं है की हमारे नेता पथ भ्रष्ट हो गयें हैं | हो सकता है की यह युध्द भिन्न-भिन्न दशाओं में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे | कभी यह युध्द प्रकट रूप ले ले कभी गुप्त दशा में चलता रहे | कभी भयानक रूप धारण करे, कभी किसान के स्तर पर जारी रहे | परन्तु यह युध्द जारी रहेगा | यह उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक की समाज का वर्तमान ढांचा समाप्त नहीं हो जाता | ' शहीद भगत सिंह ने जिस जंग की घोषणा की थी वह आज भी जारी है | क्योंकि अभी मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण समाप्त नहीं हुआ है |अवतार सिंह 'पाश' इस जंग में शहीद हुए | आओ हम उनके पथ पर चलें - हम लड़ेंगें साथी उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगें साथी गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगें साथी जिंदगी के टुकड़े
क़त्ल हुए जज्बात की कसम खा कर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खा कर
हम लड़ेंगें साथी |
हम लड़ेंगें
कि लड़ने के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगें की अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगें अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की याद
जिन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगें साथी |
अमरनाथ 'मधुर'
मो. न .9457266975








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