सोमवार, 30 जुलाई 2012

प्रेमचंद ने कहा था



जनता को आज संस्कृतियों  की रक्षा करने का न अवकाश है न जरूरत | संस्कृति अमीरों का, पेट भरों का, बेफिक्रों का  व्यसन है| दरिद्रों के लिए प्राण रक्षा ही सबसे बड़ी समस्या है .   - [ साम्प्रदायिकता और संस्कृति ]

अगर साम्प्रादायिकता अच्छी हो सकती है तो पराधीनता भी अच्छी हो सकती है .मक्कारी भी अच्छी हो सकती है . हम तो साम्प्रदायिकता को समाज का कोढ़ समझते हैं .-  [ अच्छी और बुरी साम्प्रदायिकता ]

साम्यवाद का वही विरोध करता है जो दूसरों से ज्यादा सुख भोगना चाहता है .-[ हवा का रुखा ]

भाग्यवाद सरकार का सबसे बड़ा टैक्स कलक्टर है . - [बजट १९१४]

हार में हमें अपनी कमजोरियां सूझती  हैं और जीत में खूबियाँ . -[ ठेलमठेल ]

भेष  और भीख में सनातन की मित्रता है . -[गबन ]

वियोगियों के मिलन की रात बटोहियों के पडाव की रात है जो बातों में कट जाती है .- [गबन ]

समाज का चक्र साम्य से शुरू होकर फिर साम्य पर ही ख़त्म हो जाता है एकाधिपत्य ,रईसों का प्रभुत्व उसकी मध्यवर्ती दशाएं हैं . -[ पशु से मनुष्य ]

प्रेम सीधी सादी गौ नहीं शेर है जो अपने शिकार पर किसी की आँख भी नहीं पड़ने देता है . -[गोदान ]

जिस पेट के लिए रोटी मयस्सर नहीं उसके लिए मरजाद और इज्जत ढोंग है . -[ गोदान ]

मोटे वह होते हैं जिन्हें न ऋण का सोचा होता है न इज्जत का . इस जमाने में मोटे होना बेहयाई है . सो को दुबला करके एक मोटा होता है .ऐसे मोटेपन में क्या सुख? सुखा तो तब है जब सब मोटे हों . -[गौदान ]

बूढों  के लिए अतीत के सुखों, वर्तमान के  दुखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता . -[गोदान ]

दरिद्रता और धरोहर में वही सम्बन्ध है जो कुत्ते और मांस में . -[ दो भाई ]

देहात का रास्ता सांझ होते ही बच्चों की आँख की तरह बंद हो जाता है . -[पंच परमेशवर ]

जब दूसरों के पांव के टेल गर्दन दबी हो तो उन पांवों को सहलाने में ही सुख है .-[गोदान ]

यदि साहित्यकार ने अमीरों का याचक बनने को जीवन का सहारा मान लिया है और उन आन्दोलनों ,हलचलों , क्रांतियों से बेखबर हो जो समाज में हो रही हों तो इस दुनिया में उसके  लिए कोई जगह न होने में अन्याय नहीं  है .- प्रेमचंद 


پریم چند نے کہا تھا عوام کو آج تہذیبوں کی حفاظت کرنے کا نہ چھٹی ہے نہ ضرورت | ثقافت امیروں کا، پیٹ بھرو کا، بےپھكرو کا ويسن ہے | دردرو کے لئے جان کی حفاظت ہی سب سے بڑا مسئلہ ہے. - [فرقہ پرستی اور ثقافت]
اگر سامپرادايكتا اچھی ہو سکتی ہے تو پرادھينتا بھی اچھی ہو سکتی ہے. مکاری بھی اچھی ہو سکتی ہے. ہم تو فرقہ پرستی کو معاشرے کا كوڑھ سمجھتے ہیں. - [اچھی اور بری فرقہ پرستی]
ساميواد کا وہی مخالفت کرتا ہے جو دوسروں سے مزید سکھ دینا چاہتا ہے. - [ہوا کا ركھا]
بھاگيواد حکومت کا سب سے بڑا ٹیکس كلكٹر ہے. - [بجٹ 1914]
ہار میں ہمیں اپنی كمجوريا سوجھتی ہیں اور جیت میں كھوبيا. - [ٹھےلمٹھےل]
بھےش اور بھیک میں سناتن کی دوستی ہے. - [گبن]
ويوگيو کے ملن کی رات بٹوهيو کے پڈاو کی رات ہے جو باتوں میں کٹ جاتی ہے. - [گبن]
سماج کا سائیکل سامي سے شروع ہو کر پھر سامي پر ہی ختم ہو جاتا ہے اےكادھپتي، ريسو کا بالادستی اس کی وسطی دشاے ہیں. - [جانوروں سے انسان]
محبت سیدھی سادی گو نہیں شعر ہے جو اپنے شکار پر کسی کی آنکھ بھی نہیں پڑنے دیتا ہے. - [گودان]
جس کے پیٹ کے لیے روٹی میسر نہیں اس کے لئے مرجاد اور عزت ڈھونگ ہے. - [گودان]
موٹے وہ ہوتے ہیں جنہیں نہ قرض کا سوچا ہوتا ہے نہ عزت کا. اس زمانے میں موٹے ہونا بےهياي ہے. سو کو دبلا کر کے ایک موٹا ہوتا ہے. ایسے موٹےپن میں کیا سکھ؟سکھا تو تب ہے جب سب موٹے ہوں. - [گودان]
بوڑھوں کے لئے ماضی کے سكھو، موجودہ کے دکھوں اور مستقبل کے سروناش سے مزید دل لگی اور کوئی ایسا موقع نہیں ہوتا. - [گودان]
دردرتا اور ثقافتی ورثہ میں وہی تعلق ہے جو کتے اور گوشت میں. - [دو بھائی]
دیہات کا راستہ ساجھ ہوتے ہی بچوں کی آنکھ کی طرح بند ہو جاتا ہے. - [پنچ پرمےشور]
جب دوسروں کے پاؤں کے ٹیل گردن دبی ہو تو ان قدموں کو سہلانے میں ہی سکھ ہے. - [گودان]
اگر ادیب نے امیروں کا ياچك بننے کو زندگی کا سہارا مان لیا ہے اور ان اندولنو، هلچلو، كراتيو سے بے خبر ہو جو سماج میں ہو رہی ہوں تو اس دنیا میں اس کے لئے کوئی جگہ نہ ہونے میں ظلم نہیں ہے. - پریم چند 





1 टिप्पणी:

  1. सार्थक पोस्ट , आभार.
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, प्रतीक्षा है आपकी .

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