शनिवार, 4 अगस्त 2012

अन्ना ही अन्ना


              

              फेस बुक पर अन्ना ही अन्ना है और कोई बात ही नहीं हो रही है.अन्ना की चर्चायें भी अजब गजब हैं .ज्यादातर लोग तो इस बात से परेशान हैं कि  अनशन ख़त्म क्यूँ हो गया ? अन्ना टीम का एकाध अनशनकारी मर क्यूँ नहीं गया? जैसे मरना बहुत जरूरी था और उन्होंने अनशन तोड़कर बड़ा पाप किया है.कुछ कह रहें हैं कि अन्ना नौटंकी कर रहे थे उनकी असलियत सामने आ गयी है.वो राजनीति ही करना चाहते हैं इसलिए नयी पार्टी बना रहें हैं . क्यूँ भाई वोनौटंकी कर रहे थे तो तुम क्या कर रहे थे? खाली गाल बजा रहे थे और आराम से खा पी रहे थे. एक बूढा आदमी अपने प्राण दाँव पर लगाए है उसके बीमार साथी जान दिए दे रहें हैं और हम खुश हो रहे हैं अब बस या तो जन लोकपाल मिलेगा या कांग्रेस सरकार जायेगी.अब ये दोनों काम होते नहीं दिखते इसलिए लोग परेशान हो रहें हैं . उन्हें बेचैनी हो रही है कैसे काग्रेस सरकार जाए और मोदी राज आये.  जब अन्ना ने ऐलान कर दिया कि वे स्वयं राजनीतिक विकल्प गढ़ेंगे तो उनकी बेचैनी और बढ़ गयी है. ये कैसे हो सकता है? जब हम हैं तो कोई दूसरा विकल्प कैसे दे सकता है?इसलिए वे भी जो गाजे बाजे का शौर करते      हुए जंगल में हांका लगाकर घेरकर लाये गए शिकार की तरह अन्ना को दिल्ली में धकेल लाते थे शिकार के चौकस हो जाने से बोखला गए हैं. कुछ प्रचंड किस्म के बुद्धिजीवी सवाल पर सवाल दाग रहें हैं - अन्ना दलितों के लिए क्यूँ नहीं बोलता , अन्ना आदिवासियों के लिए क्यूँ नहीं बोलता , अन्ना कारपोरेट भ्रष्टाचार के खिलाफ क्यूँ नहीं बोलता ,अन्ना एन जी ओ के भ्रष्टाचार के खिलाफ क्यूँ नहीं बोलता ,अन्ना, भूख ,बेकारी , अशिक्षा ,बाल श्रम ,भ्रूण हत्या, ओनर किलिंग, बलात्कार के खिलाफ क्यूँ नहीं बोलता ? यानी वो सारे सवाल जो हमारे सामने हो सकते हैं उनके खिलाफ अन्ना को बोलना चाहिए . बात आपकी सोलह आने सही है लेकिन सवाल ये भी तो है क्या एक ही डाक्टर से सारे मर्जों की दवा चाहते हो ?सवाल ये भी है कि इन सारे सवालों पर तो पहले से भी काफी लोग बोल रहें हैं अगर भ्रष्टाचार के मुद्दे को पुरजोर तरीके से अन्ना उठा रहें हैं तो वो क्या गलत कर रहें हैं ? उन्होंने बाकी मुद्दों को किसी को उठाने से मना तो नहीं किया है?फिर लोग क्यूँ नहीं उठाते हैं ? अन्ना के तौर तरीके से सहमत हों या असहमत हों उनके समर्थकों/ प्रायोजकों से भी चाहे हम असहमत हों लेकिन उनके अनशन ख़त्म करने को लेकर उन्हें चार्ज शीट  देने का किसी को कोई हक़ नहीं है .अभी लड़ाई बंद नहीं हुई है अभी लड़ाई जारी है.अन्ना का अनशन ख़त्म करना ही सही कदम है.इससे उन्हें आत्ममूल्यांकन का वक्त मिलेगा जो हर आन्दोलन की सफलता के लिए बेहद जरूरी है . मुझे न अन्ना के मुद्दे से एतराज है न अन्ना और उसकी टीम की नीयत पर संदेह है केवल उससे अपना राजनीतिक हित साधने की कौशिश करने वाले संघी गिरोह से आपत्ति है. संघी गिरोह इस आन्दोलन का भगवाकरण करने पर उतारू है लेकिन अन्ना और उसकी टीम उससे बराबर दूरी बनाए रखने में सफल हुए हैं .राम देव अति महत्वाकांक्षी है और वह अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भगवा चोले  का इस्तेमाल करना खूब जानता है .एक सीमा तक उसकी संघ से पट सकती है लेकिन नागपुर के नागों को अपने इशारे पर वह खुद नचाएगा उनसे नचाये  खुद नाचना पसंद नहीं करेगा. जो लोग अन्ना द्वारा लाखों लोगों को धोखा देने की बात करते हैं उन्हें समझाना चाहिए कि उन लाखों लोगों ने ही अन्ना को नया विकल्प देने की जरूरत बतायी है .अगर कांग्रेस का विकल्प होने का दावा करने वाली पार्टियों पर जनता को यकीन होता तो जनता उनके साथ होती .जनता को उन पर यकीन नहीं है इसलिए अन्ना जैसी शख्सियत का नयी  राजनीति गढ़ने का हौसला सराहनीय है. अच्छे और इमानदार लोगों के बिना अच्छे राजनीति नहीं हो सकती है .अच्छे सिद्धांत भी अच्छे लोग ही व्यवहार में लाते हैं वरना सिद्धांत किताबों में बंद होकर  रह जाते हैं.अन्ना को चाहिये कि वो अपने गाँव राले गणसिद्धि से मणिपुर तक पदयात्रा कर एरोम शर्मीला के पास जायें और उससे उसके मजबूत मनोबल का राज जानने के साथ साथ नयी राजानीतिक पार्टी के लिए घोषणा पत्र लिखने का अनुरोध करें.


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پھیس بک پر انا ہی انا ہے اور کوئی بات ہی نہیں ہو رہی ہے. انا کی چرچايے بھی عجب غضب ہیں. زیادہ تر لوگ تو اس بات سے پریشان ہیں کی انشن ختم کیوں ہو گیا؟ انا ٹیم کا ایک آدھ احتجاجی مر کیوں نہیں گیا؟ جیسے مرنا بہت ضروری تھا اور انہوں نے انشن توڑ کر بڑا گناہ کیا ہے. کچھ کہہ رہے ہیں کہ انا نوٹكي کر رہے تھے ان کی اصلیت سامنے آ گئی ہے. وہ سیاست ہی کرنا چاہتے ہیں اس لئے نئی پارٹی بنا رہے ہیں. کیوں بھائی وہ نوٹكي کر رہے تھے تو تم کیا کر رہے تھے؟ خالی گال بجا رہے تھے اور آرام سے کھا پی رہے تھے. ایک بوڈھا آدمی اپنی جان داؤ پر لگائے ہے اس کے بیمار ساتھی جان دئے دے رہیں ہیں اور ہم خوش ہو رہے ہیں اب بس یا تو عوامی لوک پال ملے گا یا کانگریس حکومت جائے گی. اب یہ دونوں کام ہوتے نہیں نظر آتے اس لئے لوگ پریشان ہو رہے ہیں. انہیں بے چینی ہو رہی ہے کس طرح كاگرےس حکومت جائے اور مودی راج آئے. اب جب انا نے اعلان کر دیا کہ وہ خود سیاسی اختیارات گڑھےگے تو ان کی بے چینی اور بڑھ گئی ہے. یہ کیسے ہو سکتا ہے؟ جب ہم ہیں تو کوئی دوسرا آپشن کیسے دے سکتا ہے؟ اس لئے وہ بھی جو گاجے باجے کا شور کرتے ہوئے جنگل میں هاكا لگا کر گھیر کر لائے گئے شکار کی طرح انا کو دہلی میں دھکیل لاتے تھے شکار کے چوکس ہو جانے سے بوكھلا گئے ہیں. کچھ پرچنڈ قسم کے دانشور سوال پر سوال داغ رہے ہیں - انا دلتوں کے لئے کیوں نہیں بولتا، انا قبائلیوں کے لئے کیوں نہیں بولتا، انا کارپوریٹ بدعنوانی کے خلاف کیوں نہیں بولتا، انا این جی او کے بدعنوانی کے خلاف کیوں نہیں بولتا، انا ، بھوک، بے کاری، ناخواندگی، چائلڈ لیبر، جنین قتل، اونر کلنگ، عصمت دری کے خلاف کیوں نہیں بولتا؟ یعنی وہ سارے سوال جو ہمارے سامنے ہو سکتے ہیں ان کے خلاف انا کو بولنا چاہئے. بات آپ کی سولہ آنے درست ہے لیکن سوال یہ بھی تو ہے کیا ایک ہی ڈاکٹر سے سارے مرجو کی دوا چاہتے ہو؟ سوال یہ بھی ہے کہ ان تمام سوالات پر تو پہلے سے بھی کافی لوگ دھن رہے ہیں اگر بدعنوانی کے مسئلے کو پرزور طریقے انااٹھا رہے ہیں تو وہ کیا غلط کر رہے ہیں؟ انہوں نے باقی مسائل کو کسی کو اٹھانے سے انکار تو نہیں کیا ہے؟ پھر لوگ کیوں نہیں اٹھاتے ہیں؟ انا کے طور طریقے سے متفق ہوں یا متفق ہوں ان کے حامیوں سپانسرز سے بھی چاہے ہم اختلاف ہوں لیکن ان کے انشن ختم کرنے کو لے کر انہیں چارج سرد دینے کا کسی کو کوئی حق نہیں ہے. ابھی لڑائی بند نہیں ہوئی ہے ابھی لڑائی جاری ہے.انا کا انشن ختم کرنا ہی صحیح قدم ہے. اس سے انہیں اتممولياكن کا وقت ملے گا جو ہر تحریک کی کامیابی کے لئے بے حد ضروری ہے. مجھے نہ انا کے مسئلے سے اعتراض ہے نہ انا اور اس کی ٹیم کی نیت پر شک ہے صرف اس سے اپنا سیاسی مفاد سادھنے کی كوشش کرنے والے سگھي گروہ سے اعتراض ہے. سگھي گروہ اس تحریک کا بھگواكر کرنے پر آمادہ ہے لیکن انا اور اس کی ٹیم اس سے برابر دوری برقرار رکھنے میں کامیاب ہوئے ہیں. رام دیو انتہائی حوصلہ افزا ہے اور وہ اپنی تمناؤں کو پورا کرنے کے لئے بھگوا چھولے کا استعمال کرنا خوب جانتا ہے. ایک حد تک اس کی یونین سے پٹ سکتی ہے لیکن ناگپور کے ناگو کو اپنے اشارے پر وہ خود نچاےگا ان سے خود ناچنا پسند نہیں کرے گا. ابھی ان کے مہم یوں ہی رک رک کر چلتے رهےگے ان سے کسی نتیجے کی امید کرنا پلفباجی ہوگی.

         
لاکھوں لوگوں نے ہی انا کو نیا اختیارات دینے کی ضرورت بتائی ہے. اگر کانگریس کا انتخاب ہونے کا دعوی کرنے والی جماعتوں پر عوام کو یقین ہوتا تو عوام ان کے ساتھ ہوتی. عوام کو ان پر یقین نہیں ہے اس لئے انا جیسی شخصیتوں کا نیا سیاست گڑھنے کا حوصلہ قابل تعریف ہے. اچھے اور اماندار لوگوں کے بغیر اچھے سیاست نہیں ہو سکتی ہے. اچھے اصول بھی اچھے لوگ ہی برتاؤ میں لاتے ہیں ورنہ اصول کتابوں میں بند رہا جاتے ہیں."انا کو چاہیے کہ وہ اپنے گاؤں رالے گسددھ سے منی پور تک پدياترا کر اےروم شرمیلا کے پاس جائیں اور اس سے اس کے مضبوط حوصلہ کا راج جاننے کے ساتھ ساتھ نئی راجانيتك پارٹی کے لئے اعلان خط لکھنے کی درخواست کریں."

1 टिप्पणी:

  1. 1-सत्यप्रकाश गुप्ता - ये पूँजी पतीयों से संचालित जनतंत्र है ...इसीलिए ये धनतंत्र में बदल गया है ....आपसे कोई मतभेद नहीं है ...हम लोग भी इस भ्रष्टाचार से संचालित जनतंत्र में आन्दोलन कर रहे हैं कि जनतंत्र धनतंत्र से बाहर आ जाए ....जनतंत्र सहीं में जन से संचालित हो .....


    2-देवेश त्रिपाठी सहमत ...


    3-Ashok Dogra Madhurji , Wonderful and Great !!! I agree with you 100% as far as Anna's fast braking is concerned as far as formation of political party only time will tell because running a movement and . I hope you do remember sometime back I commented on one of your posts with "Savarkar ke bara mei he sent only one mercy petition from Andaman Jail. Perhaps you are not aware of the treatment being given to prisoners and there was no point in dying there, yes that is his weak point you can criticize him on that" but certainly you can not ignore his contribution to fight against British. Situations can be different but essence is same. But I am sorry to say you have not acknowledged the facts which you should in a discussion and if you do not agree present some arguments, facts and not mere allegation

    4-दिगम्बर आशु -पहले ढेर सारे लोग अन्नाये हुए थे.
    अब उनमें से कुछ लोग भन्नाए हुए हैं.
    अशोक पाण्डेय - शेर दो कदम पीछे जाता है , इसलिए नहीं की वो डर गया ............ बल्कि इसलिए की और जोर से हमला करे .
    5-दीवाकर पाण्डेय - चलिए मान लिया कि हमने कुछ नही किया पर जब हर सवाल का जबाब में अन्ना बोले लोकपाल तो समझ नही आता .. और फिर रास्ता बदल के बोले कि अब 2014 में चुनाव के लिए पार्टी बनायेंगें , मतलब 2014 तक कोई लोकपाल नहीं , क्या 2014 में अन्ना के इतने लोग जीत जायेंगें कि ये लोकपाल ला सकें ?? नहीं .. होगा बस ये कि कांग्रेस विरोधी वोते बाँटेंगे न कांग्रेसी फिर जीतेंगें न अन्ना तब इसी कांग्रेस को सपोर्ट देंगे सेकुलरिस्म के नाम पे . लोकपाल गया भाद में . बात इसकी नही कि हमने क्या क्या , बात उसकी है कि जो लाखों लोग अपना काम छोड़कर के इनको सुप्पोर्ट करने आये वो लोग ठगा हुआ फील करेंगे . अगर अन्ना का ये कदम कांग्रेस के इशारे पे नहीं भी है तो भी अन्ना का ये कदम केवल कांग्रेस के लिए ही है सर जी जानता ही तो लूटेरो को भी चुन रही है , नहीं तो समस्या कहाँ रहती . असल में एक सांपनाथ तो दूसरा नागनाथ . वैसे अभी जनता ने राजनितिक अन्ना को समर्थन नहीं दिया है .. वो तो तब पता चलेगा जब इनके कैंडीडेट जीतेंगे . विधान सभा चुनाव में क्यूँ नहीं जनता ने इनको समर्थन दिया जब ये कांग्रेस के अग्नेस्त प्रचार कर रहे थे .. कंगी का वोते परसेंट तो बाधा ही न ..

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