रविवार, 5 अगस्त 2012

परिचर्चा : गोधरा काण्ड के सुलगते सवाल





सरोज  कुमार -गोधरा में ट्रेन में जिस तरीके से लोगों को जलाया गया 
और मोदी ने जैसा इलाज किया उसका मैं समर्थक हूँ. कुछ निर्दोष भी मारे 
गए और आप कहेंगे कि यह राजधर्म का अतिक्रमण है तो मैं इसे पसंद 
नहीं करूंगा. मैं मानता हूँ कि मुसलमान यदि वहां आक्रामक थे तो उसका 
जबाब भी आक्रामकता से हीं देना चाहिए. समुदाय के विरुद्ध समुदाय लड़ता 
है व्यक्ति के प्रति व्यक्ति लड़ता है. राज धर्म का पालन नहीं भी किया गया 
तो भी यह सही था. उसके बाद गुजरात में दंगे नहीं हुए. मैं पूरे भारत में 
सामुदायिक संघर्षों में इसी प्रकार के पहल का प्रशंसक हूँ. असम में हिन्दुओं 
कि घटती जनसँख्या को भी आपके सामने रखूंगा ताकि आप उत्तर देते 
समय इसे ध्यान में रखें. संघ में अल्पसंख्यकों, दलितों ,आदिवासियों के 
लिए कोई सम्मानजनक जगह नहीं है- इसकी पुष्टि भी चाहूँगा. लगता है 
मुझे संघ का अध्ययन करना पड़ेगा आपके विचारों के प्रभाव में आने से 
बचने के लिए. लेकिन कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टिकरण से निजात पाने का 
कोई सुझाव आप हमें दें. क्या धर्म निरपेक्षता को सही अर्थ में कांग्रेस ले 
रही है यदि नहीं तो विरोध तो मैं करूंगा न और यदि संघ उसका विरोध 
करता है तो मैं उसमें अपने आवाज क्यों न मिला दूं. भाजपा देश तोडू है 
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा.



    • अमरनाथ  मधुर - गोधरा पर इतनी बात हो चुकी है कि उस पर कोई बात करने का मतलब नहीं रह जाता है .इस पर अपने पक्ष से न संघी हटते हैं न उनके विरोधी- जो ये कहते हैं कि गोधरा काण्ड एक दुर्घटना थी उसके लिए अल्पसंख्यकों को अपनी राजानीतिक सिद्धि के लिए मोदी सरकार ने गलत तरीके से निशाना बनाया.गुजरात के शासन प्रशासन की यह जिम्मेदारी थी कि किसी भी अपराध के लिए सही अपराधी को खोजकर न्ययालय के समक्ष पेश करे तथा न्यायालय उसे क़ानून के अनुसार सजा दे.. मोदी सरकार ने गोधरा काण्ड [ जो उसके अनुसार मुसलमानों ने किया था] के जिम्मेदार लोगों का पता नहीं लगाया और बेक़सूर मुसलमानों जिसमें बूढ़े, बच्चे, औरते, गर्भवती औरते शामिल थी को बेरहमी से मारा . सरकारी मशीनरी संघी हत्यारों और बलवाइयों के साथ रही या खामोश रहीं जैसा कि उन्हें मोदी ने निर्देश दिया था. जिस किसी अधिकारी ने इस कत्ले आम को रोकने की कौशिश की उसे बेइज्जत किया गया.बड़ोदरा के डी एम् हर्ष मंदार इसके उदाहरण हैं जिन्हें अंतत : नौकरी छोड़नी पडी.मोदी के सहयोगी हरेन्द्र पाण्डया [गृहमंत्री],केशुभाई पटेल, शंकर सिह बाघेला आदि मोदी की तानाशाही का शिकार हुए हैं. विकास के आंकड़े एक तरफ़ा हैं .गुजरात के अल्पसंख्यकों की ही तरह छत्तीस गढ़ में आदिवासी संघी शासन से पीड़ित हैं.मुस्लिम तुष्टिकरण संघ का गढ़ा हुआ झूठ है. मुसलमानों की आर्थिक स्थिति देखिये उनका राजकीय सेवाओं और व्यवसायों में हिस्सा देखिये फिर बताईये कि देशके नागरिक होने के नाते उनकाइसमें कितना हिस्सा कितना होना चाहिए ?ये न कहें कि उन्हें बंटवारा कर अलग देश दे दिया गया है वे वहाँ चले जाएँ देश के बहुत सारे मुसलमान जिसमें हर क्षेर्त्र के विख्यात लोग भी शामिल हैं देश की स्वतंत्रता और एकता के लिए जिए मरे हैं और आज भी उनमें ये जज्बा कायम है 



    • सरोज  कुमार  असम में हिन्दुओं कि घटती जनसँख्या को भी आपके सामने रखूंगा ताकि आप उत्तर देते समय इसे ध्यान में रखें.


    • श्रद्धान्शु  शेखर  आप  हिन्दू  है .. सॉरी .. आप  कट्टर  हिन्दू  हैं  अफ़सोस !  की  आप  में  धर्म निरपेक्ष   देश  के  नागरिक  जैसे  गुण  नहीं  देख  प्  रहा  हूँ .

    • तुकाराम  वर्मा  १-भारत मेंमुसलमानआक्रमणकारियों का जब प्रवेश हुआ था तब वे संख्या की दृष्टि से कितने थे? और भारत में उनका मुकाबला करने के लिए कौन उत्तरदायी थे? इस पर विचार कीजिये और जो उत्तरदायी थे, उनके निकाम्मेपन को आज किस तरह महिमा मंडित करने के दुष्प्रचार किये जा रहे हैं इस पर चिंतन कीजिये| 
      २-अल्पसंख्यकों, दलितों ,आदिवासियों को सम्मानजन नहीं अपितु संघ की परिधि से उन्हें १९७० के पूर्व तक बाहर ही रक्खा गया| मैंने अनेक संघ की क्षात्रों के हेतु लगने वाली शाखाओं में भाग लिया था कभी, जहा से मुस्लिम बच्चों को भगा दिया जाता था|


      ३-कोई राजनैतिक दल वर्तमान में देश तोडूं नहीं हो सकता लेकिन समाज के बीच नफ़रत फैलाने के हथियार से वोट पाने की जुगाड निरन्तर हो रहीं है|


      ४-हम सब भारतीय हैं ,हमारा भारतीयता जाति और धर्म है इसकी बात करने वाले राजनैतिक दलों को नहीं सुहाते |लोकतंत्र को और भारतीय संविधान को कमजोर करने का इससे अधिक कारगर कोई हथियार नहीं है कि हमें धर्म के आधार पर विभाजित किया जाय|यह किसी से छिपा नहीं है कि धार्मिक दुराव की राजनीति कौन कर रहा है |


    • अमरनाथ  मधुर -पहले तो आप ये देख लें कि संघ का एजेंडा अखंड भारत है जिसमें पाकिस्तान,भारत और बंगलादेश तीनों शामिल हैं. अब अगर तीनों एक होंगें तो वहाँ के रहने वाले कहाँ जायेगें ? एक देश में उसके नागरिक देश के किसी भी हिस्से में बसने के लिए स्वतंत्र होते हैं तो संघ के हिसाब से पडौसी देश की जनता इस एकीकरण की शुरुआत कर चुकी है राजनीतिक  रूप से ये जब होगा तब होता रहेगा .
      ये संघ की बात है जो ऐसे ही सपने देखता रहता है लेकिन जमीनी हकीकत को नजअंदाज करता है. अखंड भारत के हम भी हिमायती हैं लेकिन उसे हिदू मुसलमान में बांटकर नहीं रखेंगें. कोई भी सवाल धर्म की नजर से नहीं देखा जाएगा. अब बात असम में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने की करें?इसका जबाब जानने से पहले ये जरूर बता दें आपने जो आदिवासियों,वनवासियों का हिन्दूकरण किया है और उनके क्षेत्रों में अपना कब्ज़ा जमाया है क्या वो उन्हें अल्पसंखयक बनाना नहीं है ? सिक्किम छतीसगढ़ ,झारखंड, उड़ीसा और समस्त पूर्वोत्तर भारत क्या आपके अतिक्रमण का शिकार नहीं हैं? क्या अंडमान निकोबार के आदिवासियीं को आपने चिड़ियाघर का जीव नहीं बनाया है ? इसके बाद भी आप हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का सवाल उठा रहे हैं? आप तय कर लें ये घुसपैठियों की समस्या है या हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने की समस्या है? क्योंकि जब बंगलादेश से हिन्दू आते हैं तब आपको कोई तकलीप नहीं होती है ? हिदुओं के अल्पसंख्यक होने की बात भी संघी करते हैं असम के लिए तो ये उसके मूल निवासियों के अल्पसंख्यक हो जाने की समस्या है.

    • श्रद्धान्शु  शेखर - इतिहास  का  अध्ययन  कीजिये
      मुस्लिमो  कि  संख्या  वृद्धि  कि  वजह  धर्म  परिवर्तन  बी  है यह  पोस्ट  निश्चित  ही  सांप्रदायिक  सद्भाव  बिगाड़ने  वाली  अपवित्र  पोस्ट  है यह  भी  ध्यान  रखें  कि  जेसे  अनेक  आक्रमणकारी  जातीय  आज   हिन्दू  धर्म  में  सम्मिलित , तो  आक्रमणकारी  सिर्फ  मुस्लिम  ही क्यूँ ?लोकतंत्र  हिंदुत्व  पर  नहीं  टिका  है .

    • सरोज  कुमार  नहीं सवाल यह है की आक्रामकता का जबाब आप कैसे देंगे ? अफजल गुरु ने संसद पर हमला किया था उसे जब आप सजा नहीं देंगे तो ? दंगे करो हिन्दुओं को भगा दो और उनकी जमीं पर अधिकार कर लो - इस आक्रामकता का क्या जबाब है मित्रों. कानून ? कशमीरी पंडितो के हक़ में कौन सा कानून है ? मैं कट्टर हो गया और आप न्याय भी नहीं देंगे ? तो क्या करें ? विलुप्त हो जाएँ?

    • अमरनाथ  मधुर  ये सवाल तो छत्तीसगढ़ केआदिवासी भी आपसे पूछ रहे हैं . देश के किसान नौजवान भी पूछ रहें हैं . असल में ये देश अभी हमारा है ही कहाँ ? ये तो अम्बानी, टाटा, डालमियां का है .

    • श्रद्धान्शु  शेखर - हम  अल्पसंखाको  के  लिए  भी  तो  सोचिये आप  हिन्दू  हो , आप  जेसे  कट्टर  हिन्दू  तो  मुझ  जेसे  अल्पसंख्यक  को  मेरे  प्यारे  देश  में गुलाम  बना  दोगे या  बाहर  निकाल  दोगे ? या  मार  डालोगे ?


    • अमरनाथ  मधुरअफजल गुरु हो या कसाब हो क़ानून अपना काम कर रहा है. भाजपा सरकार तो आतंकवादियों को हवाई जहाज में बैठाकर अफगानिस्तान छोड़ आयी थी. कारगिल युद्ध और कफ़न घोटाला भी आप भूले नहीं होंगें. क्या वही हालात दोबारा देखना चाहते हैं .

    • तुकाराम वर्मा - मुझे नहीं ज्ञात कि मित्र आक्रामकता कितनी किसमे है और दलितों की ग्रामीण थोड़ी-थोड़ी सी जमीन पर मुसलमानों ने कब्जा किया है अथवा किसी अन्य ने,कश्मीर के गैर मुस्लिमों से मुहब्बत करने वालों को भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों में किये जा रहे जुल्म आखिर क्यों नहीं दिखते? डायने कहकर औरतों को मारने वाले उनकी सम्पात्ति को हड़पने वाले क्यों नहीं दिखते, भूर्ण हत्या करने वाले क्यों नहीं दिखते, जूठे भोजन को कचरों के ढेर में बीनकर खाने वाले क्यों नहीं दिखते क्या इन असहनीय बीमारियों की पीड़ा कश्मीर के लोगों से अधिक है यदि है भी तो उसे कोई अनुचित तो नहीं कह रहा|


    • श्रद्धान्शु  शेखर  यह  अपवित्र  पोस्ट  हैं .. आप  के  अशुभ  विचार  इस  देश  के  धर्मनिरपेक्ष  अमन  पसंद  नागरिको  को  संक्रमित  ना  कर  पाए , इसी  भावना  के  साथ  मैं  आप  को  आप  के  हाल  पे  छोरता  हु .. अब  विदा  लेता  हूँ .. 

    • सरोज  कुमार  जी हाँ यह बात पसंद आई. कानून अपना काम कर रहा है. गोडसे को दो साल के अन्दर फांसी और अफजल के फांसी के विरुद्ध याचिका की ११ साल जेल में बिताने के बाद फांसी अन्याय है. यह अंतर क्यों ? कानून अपना काम कर रहा है. ठीक कहा. मैं तो पूछता हूँ क्या इस देश को औकात भी है की अफजल को फांसी दे सके ? वह केवल गोडसे को फांसी दे सकता है क्योंकि वह हिन्दू है. और मैं कट्टर नहीं हूँ. यह बात आप समझे. विचार प्रकट कर रहा हूँ केवल इसलिए की कुछ प्रश्न है मन में केवल उत्तर चाहता हूँ.


      अमरनाथ  मधुरमुसलमानों से ज्यादा हिन्दू अपराधी हैं जिनकी फांसी की दया याचिका राष्ट्रपति के पास निस्तारित किये जाने को शेष है. इस लम्बी प्रक्रिया पर तो सवाल है. वैसे मैं गोडसे हो या कसाब किसी को भी फांसी देने खिलाफ हूँ . फांसी अपराध का उचित दंड नहीं है . फांसी तो अपराधी को पुरस्कार की तरह है. अपराध के एहसास से अपराधी मुक्त हो जाता है और कुछ नासमझ लोगों की निगाह में शहीद का दर्जा पा जाता है .इससे अच्छा है कि सश्रम कठोर आजन्म कारावास की सजा दी जाए ताकिअपराधी को बराबर ये एहसास हो कि उसने कुछ गलत किया है जिसकी वो सजा भुगत रहा है.



    • अमरनाथ  मधुर  कश्मीर के पंडितों के विस्थापन के बारे में भी बढ़ा चढ़कर बोला जाता है. कश्मीर में घुसपैठियों से डरकर या उनसे उत्पीडित होकर कुछ कश्मीरी पंडित भाग आयें हैं. ये कश्मीर सरकार उससे भी ज्यादा केंद्र सरकार की विफलता है जो सरहदों की ठीक से हिफाजत नहीं कर पा रही है या यूँ कहें कश्मीर के अनसुलझे सवाल की समस्या है. मैं कश्मीर में गया हूँ और ये देखा कश्मीरी पंडितों की संपत्ति की उनके पडौसी मुसलमान हिफाजत कर रहें हैं उस पर कब्ज़ा नहीं कर लिया है.आतंकवादियों से लड़ने में भी कश्मीरियों का योगदान कम नहीं है लेकिन हर प्रश्न को हिन्दू मुसलमान से देखने वाले जटिल सवालों और उलझा देते हैं.


    • सरोज  कुमार - नहीं, प्रश्नों के उत्तर देने से बचने पर उलझाव आता है. सबकुछ तो कहीं भी ठीक नहीं हो सकता. हम तो केवल विचार विमर्श कर रहे हैं. आप मुझे संतुष्ट करें. मैं आपकी तरह क्यों नहीं सोच पाता ? क्योंकि मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते.

    • अमरनाथ  मधुर - मैं संघ के बैक ग्राउंड से हूँ. संघी साहित्य बहुत पढ़ा है उनकी गतिविधियों का हिस्सा भी रहा हूँ. उसके बाद बहुत सा प्रगतिशील साहित्य पढ़ा है, अम्बेडकर वादियों का साहित्य पढ़ा है. गांधी साहित्य से भी बहुत कुछ जाना है.पढ़ना और लिखना अपना जीवन है. सवाल आते हैं तो जबाब भी आते हैं.


    • सरोज  कुमार - कश्मीर में हिन्दुओं की जनसँख्या घटी है ? तो हिन्दुओं की रणनीति क्या होनी चाहिए वहाँ ? मुसलमानों की जनसँख्या तो कहीं नहीं घट रही. गुजरात में भी नहीं.



    • सरोज  कुमार - तो कानून तो ऐसे हीं काम करता है मित्र. तो हिन्दुओं को अपनी विलुप्ति से बचने का कोई मार्ग है क्या ?

    • अमरनाथ  मधुर - हर सवाल को हिन्दू मुसलमान की निगाह से क्यूँ देखते हो ? तथ्य यह है कि गरीबों की आबादी बढ़ रही है. मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है तो जरूर उनकी गरीबी भी बढ़ रही होगी. आबादी ज्यादा तो गरीबी ज्यादा गरीबी ज्यादा तो आबादी ज्यादा .ये दुश्चक्र है जिसे राज्य की आर्थिक सहाय से ही तोडा जा सकता है .सरकार जब भी ऐसा करती है आप तुष्टिकरण का शौर मचा देते हो.आखिर इलाज क्या है ? गुजरात का प्रयोग तो पूरे देश में दोहरा नहीं सकते हो न इससे उनकी आबादी कम होने वाली है .


    • सरोज  कुमार-  जी सहमत हूँ आपसे. सवाल हिन्दू मुस्लमान का नहीं होना चाहिए लेकिन यह दुसरे पक्ष को समझाने में तो हमारी नानी मरती है. जो घुसपैठिये सीमा पर से आते हैं उन्हें अपने घरों में पनाह कौन देता है ? दूसरी तरफ वे कहते रहेंगे की ऐसे कुछ लोगों की करतूतों से पूरी कौम आतकवादी नहीं हो जाती. दोनों काम चलता रहेगा और हम धर्मनिरपेक्षता और उदारता का ढोल पीटते हुए विलुप्त हो जायेंगे. अब बात को समाप्त करने की इजाजत चाहता हूँ.


    • अमरनाथ  मधुर - आबादी के हिसाब से दुनिया में हम पहले स्थान पर पहुँचने वाले हैं इसलिए विलुप्त होने की बात फिजूल है.कश्मीर का सच यह है कि वहाँ के लोग फ़ौज और आतंकवादियों दोनों से त्रस्त हैं. फ़ौज का नागरिकों से कैसा व्यवहार होता है इसका नमूना पाकिस्तान और बंगला देश ही नहीं पूर्वोत्तर भारत भी है. कश्मीर में रात में आतंकवादी और दिन में फ़ौजी घरों में घुस जाते हैं.फिर क्या कुछ होता है इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. कश्मीर के बेरोजगार नौजवान हताश हैं .ज़रा भी आवाज उठाते हैं तो आतंकवादी बताकर मारे जाने का खतरा रहता है मारे भी जा रहें हैं.एक तथ्य यह भी है कि फ़ौज ,नेताओं और तमाम सरकारी मशीनरी के लिए आतंकवाद फायदे का उद्योग हो गया है.वो अपने फायदे के लिए इस आग को सुलगाये रखना चाहते हैं. पडौसी पाकिस्तान की राजनीति तो इसी से जीवन पाती है.कश्मीर में आतंकवाद की समस्या इतनी बड़ी नहीं है जितनी छत्तीसगढ़ ,झारखंड में आदिवासियों की समस्या है.उसे देखें और तब हिन्दू हितों की बात करें.
मो 0 सरफराज  साहिल-सवाल - आपके एक पडोसी ने अमेरिका 
         मे एक आदमी का कतल कर दिया बदले मे अमेरिका के सारे 
         लोगोने मिलकर आपके सारे फैमिली का कतल कर दिया ।
         अगर  ये आक्रमकता  ही  तो  दुनिया  का  सबसे  बड़ा  मुर्ख  
         इन्सान  में  हूँ जो  आज  तक  अपने  हिन्दू  पड़ोसिओ  कि  रक्षा   
         कर  रहा  हूँ अभी 2 कुछ  देर  पहले  एक  मित्र  ने  पोस्ट  डाला  
        था  कि  गुजरात में  गरीब  मुसलमानों  को  मरना  एक  आक्रमकता  
        था  तो मैं  आक्रामक  क्यों  नहीं  हूँ  जबकि  मेरे  गाँव  में  ७हज़र  
        मुसलमान रहते   हैं  और  २हज़र  हिन्दूजब  चहुँ  तब  अपनी  
        आक्रमकता  दिखा सकता  हूँ  , सफाया  कर  सकता  हूँ  लेकिन  
        अब  शर्म  आ  रही  हैअपने  आप  पर  कि  जब  गुजरात  में  मेरे  
        गरीब  मुसलमान  भाई मारे  जा  रहे  तब  मैंने  अपनी  अक्र्मता  
        नहीं  दिखाईमेरे  जीवन  किसबसे  बड़ी  भूल  यही  थी  कि  आज  
        तक  हिन्दुओ  को  गाँव  में भाई  कि  तरह  मानता  हूँखैर  , अब  
        मैं  फिर  से  आक्रामक  बनना चाहता  हूँ  , क्या  आप लोग  मेरा  
        समर्थन  करेंगे  ?


अमरनाथ मधुर -नहीं हम आपका समर्थन नहीं करेगें हाँ जो मजे से 
        बैठे मिठाई खा रहें हैं  उनके बारे में हम कुछ नहीं कह सकते हैं. 

वेद  प्रकाश  वटुक - अगर  एक  हैवान  पागल  हो  गया  है ,  
      तो सब  हैवान  पागल  हो  जाए ? नहीं  हममें   आपमें सबमें  
      इंसानियत जिंदा  रखनी  है.

             फेस बुक परिचर्चा : दि0 05-08-12 ग्रुप 'हमारी आवाज' 
                                                                                            

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