बुधवार, 12 सितंबर 2012

देश द्रोह का अपराध और असीम त्रिवेदी के कार्टून

     
      असीम त्रिवेदी ने राष्ट्रीय चिह्न अशोक चक्र को राहुल,सोनिया और भेदियों के रूप में चित्रित कर एक कार्टून बनाया जो इन नेताओं पर कटाक्ष के साथ साथ जनता के विक्षोभ को भी प्रदर्शित कर्ता है.उन्हें देशद्रोह के अपराध में गिरप्तार किया गया है . मजाक और अपराध में फर्क होता है. क़ानून में सजा अपराध के लिए मिलती है,मजाक के लिए नहीं. असीम त्रिवेदी ने कार्टून बन्नाकर कोई अपराध नहीं किया है. इसलिए मैं असीम त्रिवेदी की गिरप्तारी का विरोध करता हूँ लेकिन उनके इस विवादास्पद कार्टून की भी कड़ी भर्त्सना करता हूँ. वैसे कार्टून बनाना कोई अपराध नहीं है. अगर कार्टून बनाना राजद्रोह है तो इस हिसाब से हमारे देश के सारे राजनेताओं की माताओं पर भी मुकदमा दायर होना चाहिए जिन्होंने इतने बड़े-बड़े कार्टून पैदा किये !         

         भारतीय कानून संहिता के अनुच्छेद 124 A में देशद्रोह की परिभाषा दी गई है जिसमें लिखा है कि अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन भी करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सज़ा हो सकती है.प्रश्न यह है कि क्या सरकार के विरुद्ध  लिखना देशद्रोह है ? क्या सरकार  ही  देश है या देश और  सरकार से अलग अलग हैं ? हमारी समझ से देश और सरकार अलग-अलग हैं और सरकार के विरुद्ध  लिखना  देशद्रोह नहीं है. जनता के पक्षपती अधिकांशत सरकार के विरोध में लिखते रहें हैं क्योंकि अक्सर सरकार चला रहे लोग जनता के हितों की अनदेखी करते हैं. असीम त्रिवेदी ने जो विवादित कार्टून बनाया है वो भी सरकार के मुख्य कर्ता धर्ताओं के विरुद्ध जनाक्रोश को व्यक्त करने के लिए बनाया है. उसका मकसद देश को विखंडित या अपमानित करना नहीं है. अत: वो किसी भी तरह देशद्रोह नहीं है. यद्यपि मैं अपनी बात इस तरह कहना पसंद नहीं करता. 
                              
         हमारे राष्ट्रीय प्रतीक हमारे राष्ट्र की संप्रभुता के द्योतक हैं. उनका गलत तरीके से इस्तेमाल या उनका विकृत विरूपण शोभनीय नहीं है. ऐसे करने वाले की निंदा की जानी चाहिए. असीम त्रिवेदी ने सरकार के संचालन कर्ताओं को ही राष्ट्र समझ लिया है या उनके  ऐसा समझने के भ्रम का चित्रण किया है. यह भी वही गलती है जो हमारे संविधान निर्माताओं ने की है. देश और सरकार को अलग अलग माना जाना चाहिए. कोई सरकार गलत हो सकती है और उसके विरुद्ध जन विद्रोह हो सकता है जो सरकार की निगाह में बेशक  देशद्रोह हो लेकिन देश द्रोह नहीं है. देश को तोड़ने का षडयंत्र या प्रयास सफल हो या असफल देशद्रोह है जिसकी इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती, जनता को भी नहीं दी जा सकती है चाहे  जनता बहुमत में ही उसके पक्ष  क्यों न हो . क्योंकि हम सन 1947  में जनमत संग्रह से  देश का विभाजन कर चुके हैं जो गलत निर्णय था और उसके परिणाम यह भारतीय उप महाद्वीप आज तक भुगत रहा है. इसलिए मैं कहता हूँ कि राष्ट्र के प्रतिको का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन राष्टीय एकता के नाम पर दमन और बेतुकी पाबंदियों को तुरंत समाप्त कर देना चाहिए.राष्ट्रीय एकता राजनीतिक और प्रशानिक रूप से ढीला ढाला परिसंघ मेंही हो सकती है किन्तु जो भावनात्मक रूप से मजबूत होनी  चाहिए.  
   
      दोस्त पूछते हैं मैं असीम त्रिवेदी की गिरप्तारी का विरोध करता हूँ लेकिन उनके इस विवादास्पद कार्टून की भी कड़ी भर्त्सना करता हूँ ??यह कैसा मजाक है?क्यूँ भाई किसी की कड़ी भर्त्सना करने का मतलब ये तो नहीं होता है कि मैं उसे पकड़कर पीटने लगूँ. क्या किसी लेखक कि निंदा,भर्त्सना उसके लिए किसी सजा से कम है ? क्या इस कार्टून के समतुल्य अपराध पहले नहीं हुए ? क्या सबको पकड़ कर बंद किया गया या असीम त्रिवेदी को इसलिए प्रताड़ित किया जा रहा है कि वो कांग्रेस के विरुद्ध बोल रहा है?हाँ ये सारे नेता कभी कभी कार्टून दिखते हैं तभी इन पर कार्टून बनाते हैं.  एक कार्टूनिस्ट से भारत के सम्मान को खतरा पैदा हो गया है मैं ऐसा नहीं मानता हूँ. हाँ ये जरूर कहता हूँ चाहे हमें पसंद हो या न हो हमें अपने राष्ट्र प्रतीकों का सम्मान करना ही चाहिये. क्योंकि अब सही हो या गलत वे हमारे राष्ट्र की संप्रभुता के द्योतक हैं. इसलिए मैं असीम त्रिवेदी के कार्टून की सराहना नहीं करता हूँ बल्कि उसे नापसंद करता हूँ लेकिन उनकी गिरप्तारी का कड़ा विरोध करता हूँ.

         

1 टिप्पणी:

  1. 1-मासूम गाज़ियाबादी - ज़िन्दाबाद

    2-सरोज कुमार -'सरकार' यह तो शब्द हीं सामंतवादी है. सही अर्थ में सरकार तो वह है जो वोट देकर इन्हें वहां भेजती है. और असीम त्रिवेदी ने उन वोट देनेवालों के विरुद्ध कुछ नहीं कहा. यदि कहा भी तो देशद्रोह नहीं है. सत्ता का आचरण ठीक होता तो असीम का कार्टून आपत्तिजनक जरूर होता. लेकिन तब भी उसे ऐसा करने कि छूट होनी चाहिए. कलाकार मुकुटों से ऊपर होते हैं. देश की सीमा में उन्हें देखना हीं नहीं चाहिए.
    3-अशोक राठोड - यह एक घ्रनास्पद कार्य है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर , इस तरह की नीचता के प्रदर्शन की इजाज़त किसी को नहीं मिलनी चाहिए . चाहे वो कितना ही बड़ा और प्रभावशाली कलाकार ही क्यों न हो. ऐसे चित्र बनाने से कला का प्रदर्शन नहीं होता बल्कि उस कलाकार की नीच मानसिकता का प्रदशन होता है लेकिन ये नियम प्रत्येक के ऊपर एक सामानरूप से लागू होना चाहिए.

    4-Govind Singh Parmar you are right sir

    5-गोविन्द सिंह परमार - वो कला का प्रदर्शन नहीं कर रहा था ,वो आज के हालात को वयां कर रहा था ,हा मै मानता हु ये प्रतीक हमारे राष्ट्र की संप्रभुता के द्योतक हैं इनका आदर होना ही चाहिए.

    6-राजेन्द्र सिंह - अंग्रेजो के ज़माने का ये काला कानून कब तक चलता रहेगा सैडीशन लॉ यानि देशद्रोह कानून एक उपनिवेशीय कानून है जो ब्रितानी राज ने बनाया था. लेकिन भारतीय संविधान में उसे अपना लिया गया था.
    भारतीय कानून संहिता के अनुच्छेद 124 A में देशद्रोह की परिभाषा दी गई है जिसमें लिखा है कि अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन भी करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सज़ा हो सकती है. हालांकि ब्रिटेन ने ये कानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में ये विवादित कानून आज भी मौजूद है.

    भारत पर ब्रितानी राज के समय इसे महात्मा गांधी के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था.


    7-अमरदीप सिंह - मधुर साहब आप बिलकुल सही कह रहे हैं .


    8-तुकाराम वर्मा - देश के विरुद्ध किये जाने वाले कार्य देश द्रोह कहें जाते हैं, चूँकि अंग्रेजों ने अपनी सत्ता संरक्षण हेतु सरकार के विरुद्ध अभिव्यक्ति को देश द्रोह माना था वही मान्यता आज़ादी के वाद यह यहाँ की सरकारों ने स्वीकार कर ली जो न केवल अनैतिक है अपितु अमानवीय है|वर्तमान में आंशिक देश द्रोह है नागरिकों को पर्याप्त,शिक्षा स्वास्थ्य आवास उपलब्ध कराने के कार्यों में व्यवधान,तथा पूर्ण देश द्रोह है:-देश की संप्रभुता को खंडित करने के प्रयास,देश के विरुद्ध जासूसी,देश की समृद्धि पर डांका डालना,देश के जन-धन को क्षतिग्रस्त करने के व्यक्तिगत और सामूहिक कार्य |

    9-नीर गौतम - सच मैं भैया सबसे बड़े कार्टून तो हमारी सरकार के यह नेता हैं .


    10-तुकाराम वर्मा - मानव द्वारा किसी भी कला की अभिव्यक्ति किसी भी विधा के माध्यम से सर्जनात्मक होती है|किसी को बेइज्जत करना कला नहीं अपराध है|हास्य और व्यंग्य भी चेतना जाग्रत करने हेतु पड़े हुए परदे को हटाकर वस्तुस्थिति को सामने लाने का माध्यम है|कला के माध्यम से समाज को भ्रष्ट करना उसकी चेतना सुप्त करना,अन्याय है|


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