शनिवार, 8 सितंबर 2012

रूपजीविता


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    मेरे नुपुर की रूनझुन में मेरे हृदय का क्रन्दन है
    कैसे कब किसको समझाउ मेरा जीवन भी जीवन है।

    रूप का ये बाजार की जिसमें देह के व्यापारी रहते हैं
    शाम ढले महफिल सजती है, रात ढले तल मन लुटते हैं।
    अधरों की मुस्कान में बन्दी अन्दर कितना सूनापन है।

    मैंने भी तो सपने देखे थे पैरों में पायल होगी
    जिसकी छमछम से साजन की प्यारी निदियॉं घायल होगी।
    आज कहॉं मेरे सपने हैं आज  कहॉं मेरा साजन है।

    स्वप्न सजीला लोक छीनकर दुनियॉं कैसी खुश होती है
    कागज के टुकडो  में मेरी अस्मत की कीमत देती है ।
    इन कामुक धनवानों का उपवन के भौंरे जैसा मन है।
                                 
                                         दिनॉकः 19-11-82

    [मनास ग्रेवाल  की कहानी'एक वेश्या का आख़िरी ख़त' पर फेस बुक पर हमारे ग्रुप के सदस्यों ने जो सार्थक   टिप्पणियाँ की है उसे देखकर मेरा मन उत्साह से भर गया है. मुझे अपनी एक पुरानी कविता 'रूपजीविता' याद आ गयी जिसे मैं प्रकाशित करने का लोभा संवरण नही कर पा रहा हूँ. ] 

    मनास ग्रेवाल  की कहानी 'एक वेश्या का आख़िरी ख़त' पर फेसबुक पर 'हमारी आवाज' ग्रुप में प्राप्त 

                                                    टिप्पणियाँ 

    तुकाराम   वर्मा - अगर बन सकते हो तो इनके ग्राहक नहीं इनके सेवक बनिये और इन्हें अपने जीवन को शील संपन्न बनाने के हेतु प्रेरक बनिये|

  • सुल्तान  बख्श - वेश्यायों   के  प्रति  सहानुभूति  कभी  न  दिखाएँ  माथुर  साहब ... सुल्तान  को  ये  पसंद  नहीं .. करोड़ों  मर्दों  कि  ज़िन्दगी  बर्बाद   करने  वाली  लड़की  के  प्रति  सहानुभूति   दिखाना  इन्डियन  कायरों  का  कम  है ... सभी  वेश्यायों  को  गोली  से  मर  डालना  चाहिए 

  • जेमिन  पटेल - सब  अपने  पेट  के  लिये  पेशा   करते  हैं ...हमारा  देखने  कि  नजर  में  वो  बुरा  है  मगर  क्या  बता  सकते  हो  इस पेशे    को   समाज  में  स्वीकृति  किस  ने  दी .. जब  एक  औरत  अपने  शील  बाज़ार  में  रख  देती  है  तो  क्या  उशकी  लाचारी  किसी  ने  समझने  कि  कौशिश  की  ... सब  का  जवाब  नहीं  होगा ... बस  यही  है ...

  • अमरनाथ 'मधुर'-  सुलतान साहब आप  अपनी आँख डाक्टर को दिखा लीजिये आपको कुछ कम दिखाई देता है.आपको मेरा नाम भी सही नहीं दिखाई दे रहा है और ये भी नहीं दिखाई दे रहा है कि कोई औरत शौक में वेश्याव्रत्ति नहीं करती है.बेरहम सामाजिक व्यवस्था ने उसे वेश्याव्रत्ति के दलदल में धकेला है .और तुम कहते हो उन्हें गोली मार दी जाये ? मेरा मन करता है ऐसा कहने वाले को गोली मार दूँ. अरे गोली उन्हें क्यूँ न मार दी जाये जो उनके पास जाकर अपना मुंह काला करते हैं. गोली इस समाज को क्यूँ न मार दी जाये जो वेश्या को गिरी निगाह से देखता है और वेश्यागामी पुरुष को इज्जत देता है.

  • तुकाराम  वर्मा - मधुर जी यह पुरुष प्रधान समाज जिसकी पूरी धार्मिक व्यवस्था पुरुषों के हितार्थ बनी है वह नारियों की इज्जत करना क्या जानें ,जिनकी आँख केवल अपनी हबस मिटाने के लिए उसके तन की सुंदरता देखते हैं तथा सेवकाई कराने के लिए शारीरिक बलिष्ठता देखते हैं ये नारी के ममत्व और आंतरिक सुंदरता से सदैव अपरिचित रहे हैं और रहेंगे क्योंकि इन्हें इनका धार्मिक तंत्र ऐसी सोच ही नहीं विकसित होने देता|

  • मनीष  कुमार - अमरनाथ  मधुर  जी  & Tukaram  वर्मा  जी  ... I salute for above comments, ... हमने  क्या  किया , नफरत  , दमन , अत्करमण , .... We are destroyer of land, emotions,resources, faith other-hand women is on the side of creation, love, affections ... we men are cheap in front of them .....

  • मनीष  कुमार - मुझे नहीं पता पहली जननी कौन थी, परन्तु माँ ही पहली शिक्षक है उससे जो ममता, स्नेह, सरंक्षण, संयम, शीलता जैसे सिक्षा मिलती है, उसके कारन ही परुष पशु सामान हिंसक प्रवर्ती का होने के बाद भी इन सब भावनाओ से कही न कही ओत प्रोत रहता है, 
    अगर किसी की माँ भी नहीं होती तो इस संसार में उसकी छवि सुन कर ही उसके लिए तरसता है और माँ की महिमा उसको ज्यादा होती है! 
    आज शिक्षक दिवस के दिन माँ को शत शत प्रणाम

  • मनीष  कुमार - पहली स्त्री जिससे हम मिलते है वो माँ है, पहली स्त्री जो हमारे दिल को धड़काती है वो माँ है, पहली स्त्री जिसे हम कष्ट देते है या यू कहे की वो कष्ट सहती है वो माँ है, ... उसके बाद हम हर स्त्री को कष्ट देते है, मुझे बड़ा मन करता है की मैं अपनी भावनाओ को ऐसे रखु जैसे कवी रखते है ! इसलिए 
    शर्मशार वो क्या होंगे, जो कृतघ्न हो गए ! 
    हम नग्न ही आये थे और नग्न ही रह गए !! - इश्मन -

  • मनीष  कुमार - सुल्तान  बख्श  सुलतान से एक सीधा सवाल!परन्तु व्यश्या भी माँ होती है, उस पुत्र या पुत्री से पूछो उसकी राय मेरा एक प्रश्न है! ऐसी माता के पुत्र आप, मैं और सुलतान जी हो सकते थे! 

    मैं सुलतान जी से जानना चाहूँगा की आप अगर ऐसी माता के पुत्र होते तो क्या विचार रखते?

  • सुल्तान  बख्श - ये  सब  बकवास  है  अमरनाथ  मधुर  जी  कि कोई औरत शौक में वेश्याव्रत्ति नहीं करती है... मैंने  आज  तक  किसी  भी  महिला  को  मजबूरी  में  वेश्यावृति  करते  हुए  नहीं  देखा  है ... मुम्बई  में  बार  लड़कियाँ  जब  सेक्स  रैकेट  में   पकड़ी   जाती   हैं  तो  कहती  हैं  हमें  जबरदस्ती   इस  धंधें  में  धकेला  दिया  गया , हम  पेट  पालने  के  लिये  ऐसा  किये , आदि आदि  लेकिन  जब  तक  ये  नहीं  पकड़ी  जाति  तब  तक  खुल्लम  खुल्ला  लोगों  कि  जिंदगियां  बर्बाद  करती  फिरती  हैं ... दौलत  और  पैसो  की  बारिश  होने  के  बावजूद  ये  इस  काम  को  ख़ुशी  ख़ुशी  करती  रहती  हैं  ... अरे  अगर  गरीबी  और  भूक  से  लड़ने  वाली  लड़कियों  को  देखना  है  तो  जाकर  आसाम  और  छातीश्गढ़  के  आदिवासी  इलाकों  में  जाकर  देखिये  जहां  गरीब  लड़कियाँ  जंगल  से  लकड़ी  काट  कर  बोझा  धोकर  बाजार  में  बेच  देती  हैं  मगर  अपने  इज्ज़त  का  सौदा  कभी  नहीं  करतीं .. अपनी  आबरू  की  हिफाजत  के  लिये  वो  ठेकेदारों  का  खून  भी  करने  में  नहीं  हिचकती  .... और  किसी  ने  जबरदस्ती  कर  दी  तो  वो  खुदखुशी  कर  लेती  हैं ...

  • सुल्तान  बख्श - फिल्म  इंडस्ट्री   में  करूदों  और  अरबों  रुपयें  कमाने  के  बाद  फ़िल्मी  निकायों  द्वारा  फिल्मे  के  प्रोडूसर  और  डिरेक्टर  और  मंत्री  लोगों  का  बिस्तर  गरम  करना  क्या   मजबूरी  में  होता  है  ? क्या  शनि  लिवोन , लारा  दुत्ता , नेहा  धूपिया  मजबूरी  में  अपना  अंग  प्रदर्शन  करती  हैं ...? क्या  ये  भूखी  मर  रहीं  होती  हैं  ? क्या  ये  नैकाएं  विदेशों  में  जाकर  बुले  फिल्मो  ka  निर्माण  मजबूरी  में  करती  हैं  ? क्या  पोर्न  स्टार   मजबूरी  में  सेक्सी  फिल्म   बनातें  हैं  सिर्फ  पेट  पालने  के  लिये  ? क्या  करोड़ों   रुपये  पाने  के  बाद   भी  इनकी  भूख  नहीं  मरती  और  इनका  पेट  नहीं  भरता  ? फिर  आप  कैसे  कह  रहे  हैं  की  कोई औरत शौक में वेश्याव्रत्ति नहीं करती है...?

  • सुल्तान  बख्श - औरतें  मजबूरी  में  सिर्फ  लोगों  के  घरों  में  जाकर  झाड़ू  पोंछा  करती  हैं , सर  पर  लकड़ियों  का बण्डल  लादकर   कर  बाजार  में  बेचती  है , दरजी  का  काम  करती  हैं ,भीख  मांगती हैं ... सब्जी  बेचती  हैं , मजदूरी  करती   हैं . .. खेतों  में  धन , गेहूं , की  बुवाई  रोपाई  का काम करती  हैं ...आदि आदि  काम  करती  हैं  लेकिन  अपनी  इज्ज़त  नहीं  बेचती ... वही  औरत  अपनी  इज्ज़त  बेचती  है  जिसको  कोई  मजबूरी  नहं i होता  और  सेक्स  का  भूत  उस  पर  सवार  होता  है ...

  • सुल्तान  बख्श - इस  लिये  जरूरी  है  सभी  सेक्स  वोरकर   को  सउदी   अरब  की  तर्ज  पर  चौराहे  पर  बांध  कर  पत्थर  मारमार कर मार   डालना   चाहिए .  

  • अमरनाथ 'मधुर' - ये हिन्दुस्तान है सारे जहां से अच्छा. सउदी अरब के बेरहम इस्लामी क़ानून यहाँ नहीं चलेंगें. ऐसा क़ानून जो औरत पर पत्थर बरसाता है और मर्द को कुछ नहीं कहता है इंसानियत पर कहर है, कोई क़ानून नहीं है. हम इसका खुलमखुल्ला विरोध करते हैं .

  • फानी  'जोधपुरी' - जवाब  नहीं. 

  • मनीष  कुमार - सुलतान जी आप मेरे एक सीधे सवाल का जवाब नहीं दे पाए, बल्कि और बवाल मचा गए ! 
    देखे दोस्त मैं एक बात कहूँगा, आप से विनय करूँगा, आप यहाँ पर स्पष्ट रूप से माफ़ी मांगे, मै ये कतई सहन नहीं करूँगा! 

    औरतो की सामाजिक स्तिथि के तहत मैं लाचार हूँ! मगर इतना भी नहीं की इस पुरुष प्रधान और पाखंडी धर्मो की समाजिक दमन की धज्जिया न उड़ा पाऊ! 

    मैं स्पष्ट कह देता हूँ, स्त्री के जिस पहले रूप से हम मिलते है वो माँ का रूप है, आप अपने धर्म या खुदा की आयिडोलोजी  अपने पास रखिये, अगर सम्मान नहीं है तो उसे दिल में रखिये परन्तु सरेआम स्त्री का अपमान मत करिए! 

    धर्म के अच्छे  विचारों का मैं सम्मान करता हूँ, आस्था को ठेस पहुचना मेरा काम नहीं, ये भी है कि स्त्री का मैं पाखंडी धर्म से अधिक सम्मान करता हु! 

    मुझे जहा (स्त्री के कई रूपों) से प्रेम मिलता है मै उसका अधिक सम्मान करता हू! धर्म से सिर्फ नफरत मिलती है !
  • फानी  जोधपुरी - तुकाराम  वर्मा  साहब,सुल्तान  बख्श साहब,जेमिन  पटेल  साहब,मनीष  कुमार  यादव  साहब,अमरनाथ  'मधुर'  साहब, आप बुद्धिजीवियों की पोस्टों को पढ़ा तो में अल्पज्ञानी भी कुछ कहना चाहता हूँ .मैं आप लोगो के बीच एक नया ज़विया रखता हूँ .लोगों का मानना वेश्या एक गाली है सिर्फ उसके कर्मों की वजह से शौक या मजबूरी पे मैं कुछ नहीं कहूँगा क्यों की यहाँ मामला 50-50 का है कुछ की मज़बूरी होती है और कुछ को जायके बदलने का शौक ये सत्य है की आज की पीढी अपने शौक और ज़रूरतों की गुलाम हो चुकी है मैंने कई केस देखे हैं जिसमे छात्राएं अपने शौकों और विलासिताए पूरी करने इस दलदल में उतरी हैं मगर वेश्यावृत्ति एक आवश्यक बुराई है प्राचीन कल से ही गणिकाओं का उल्लेख होता रहा है मौर्य कल में नगरवधुएं हुवा करती थी उस कल में कभी भी बलात्कार का वर्णन नहीं है 
         मैं आज के सन्दर्भ में नहीं कहूँगा की वेश्याएं होनी चाहिए मगर जो ज़रूरत किसी आदमी को वेश्या के दरवाज़े पे ले जाती उस ज़रूरत का कोई समाधान ज़रूर निकलना चाहिए.नारी कोमल है,शांत है,विदुषी है,देवी है या सीधे शब्दों में ये कह दो की नारी सृष्टि है तो गलत नहीं है क्यों की अगर नारी न होती तो कुछ नहीं होता नारी एक अगरबत्ती के सामान है जलेगी तो भी सुगंध देगी ये पुरुषों की ज़िम्मेदारी है की उसे पूजा घर में लगाये या परनाली पे.यदि ये पुरुष समाज उसे अंधकार के गर्त और अंधी गलियों से निकल लाये तो बात बन सकती है वेश्यालयों को बंद करना समाधान नहीं है उनको आगे बढ़ के अपनाना समाधान है 
    मेरा मकसद किसी को ठेस पहुँचाना नहीं है अगर किसी को बुरा लगा तो मैं करबद्ध क्षमा याचना करता हूँ

  • शैल  त्यागी  'बेज़ार' - सुलतान  जी  की  बात  पर  मैं  एक  बात  और  जोड़ना  चाहूँगा  कि  संभव  कि  कुछ  महिलाऐं  बतौर  शौक़  इसे  अपनाती  हैं , मगर  ये  उनका  अपना  स्वतंत्र  निर्णय  है , ये  हक  उन्हें  hona  चाहिए  कि  उन्हें  जीवन  कैसी  जीना  है  न  कि  इसे  कोई  पुरुष  निर्धारित  करेगा . एक  वेश्या  का  भी  उतना  ही  सम्मान  है  जितना  एक  आम  स्त्री  का . और  एक  बात  कि  पर  पुरुष  गमन  करने  वी  स्त्री  को  तो  इतना  कुछ  कह  दिया  जाता  है , मगर  पर  स्त्री  गमन  करने  वाले  पुरुष  को  समाज  क्यूँ  लांछित  नहीं  करता 

  • सिद्धार्थ  वर्मा - प्रिय मित्र श्री अमरनाथ मधुर, साथी श्री मनीष ग्रेवाल जी की कहानी "एक वेश्या का आखिरी ख़त" पढ़कर मुझे स्वर्गीय सआदत हसन "मंटो" की कहानियां याद आ गईं | कहानी "एक वेश्या का आखिरी ख़त" मन को छू गयी. बहुत सुदर. आप और श्री मनीष ग्रेवाल जी दोनों को साधुवाद |

  • अमरनाथ 'मधुर' -  फानी साहब आप इस चर्चा में शरीक हैं ये एक अच्छी बात है.आपसे कुछेक बिन्दुओं पर थोडा कम सहमती है.जैसे कि ये कहना कि जो ज़रूरत किसी आदमी को वेश्या के दरवाज़े पे ले जाती है  उस ज़रूरत का कोई समाधान ज़रूर निकलना चाहिए. क्या जरूरत है जिसे आप बाजार से खरीद कर पूरा करना चाहते हैं ? क्या यही अधिकार आप स्त्री को भी देंगें ? क्योंकि जरूरतें तो सबकी एक सी हैं . भूख औरत मर्द का भेदभाव नहीं करती है और रोटी जात धर्म लेकर पैदा नहीं होती है. तो फिर इतना दिमागी खुलापन रखिये कि जो जरूरतें आप बाजार में जाकर पूरा करना चाहते हैं वही जरूरतें आपके परिवार की स्त्रियाँ भी जैसे चाहें वैसे पूरा कर सकें. मेरा विश्वाश है जिस दिन ये स्वीकार कर लिया जाएगा उस दिन किसी को बाजार जाने की जरूरत नहीं होगी और तब ऐसा कोई बाजार ढूंढें भी नहीं मिलेगा.दूसरी बात नारी के प्रति अतिरिक्त श्रद्धा भाव भी अनावश्यक है. उसकी किसी स्त्री को जरूरत ही नहीं है आप तो सिर्फ उसे अपने बराबर मान लीजिये.


  • प्रस्तुति -अमरनाथ 'मधुर' [एडमिन] ग्रुप -'हमारी आवाज' 

1 टिप्पणी:


  1. बेनामी10 सितम्बर 2012 8:06 pm
    1-अमरदीप सिंह मैंने उस कहानी को पढ़ा था ... दी l चीर गयी वो कहानी

    2-आदर्शिनी श्रीवास्तव- अवश्य पढूंगी सर किन्तु ये काव्य पंक्तियाँ अनुपम हैं

    3-Siddharth verma- Very beautiful poem Sri Amarnath Madhur ji.

    4-मनीष कुमार - मुझे बहुत अच्छी लगी ये कविता

    मेरे नुपुर की रूनझुन में मेरे हृदय का क्रन्दन है
    कैसे कब किसको समझाउ मेरा जीवन भी जीवन है।

    5-मनाश ग्रेवाल -
    आपके प्रयास और प्रतिबद्धता बेजोड़ है। धन्यवाद!
    वेश्यावृति के कारण, हालांकि ये अंतिम नहीं हैं.......
    .....यह बड़ा जटिल विषय है, क्योंकि यह सीधा-सीधा मानवीय मुद्दों से जुड़े अंतर्द्वंद्वों से जुड़ा हुआ है। जैसे कुछ लड़कियाँ इसे विभिन्न कारणों से स्वेच्छा से अपनाती हैं जबकि बाक़ी दूसरी धकेल दी जाती हैं। आधुनिकता के नकारात्मक उत्पाद, सयुंक्त परिवारों का विघटन, आयातित राजनैतिक व शैक्षिक प्रणालियाँ, निजी महत्वाकांक्षाएं, बेरोजगारी एवं अन्य सामाजिक व ऐतिहासिक कारण............

    .......और मैं इस समस्या से कैसे निपटूंगा (यह मेरा नज़रिया है).....हालांकि यह समस्या सम्मिलित प्रयासों की तलबगार है......
    ......मधुर जी, इस समस्या के प्रति मैं बेहद संवेदनशील हूं। इस दिशा में मेरे प्रयास जारी हैं और समाज यह भरोसा रखे कि जिस दिन भी मैं सक्षम हो जाऊंगा, मैं सबसे पहला रूपया अपने परिवार पर खर्च करने की बजाय, इस समस्या के उन्मूलन हेतु करूंगा।



    6-चंदन कुमार मिश्र- वाह! अमर साहब!

    7-मणि बाला - हम लोग वेश्याओं को हमेशा गन्दी नजरो से देखते है , पर कभी यह नहीं सोचते कि यह यहाँ क्यों है , किन हालातों में यहाँ पहुंची . बाहर से सुन्दर दिखने वाली औरतों के दिल में कितना गम है यह कोई नही सोचता , उनके पास सब होता पैसा , गाड़िया , जान , दिल लुटाने वाले लोग , जो नहीं होता वो है परिवार , और जिनके पास होता है उनके परिवार वाले उन्हें अपने से दूर कर देते हैं .


    8-मुकेश वैस्सर्वल इंसा - लेकिन हम इनको अपना तो सकते हैं, इनको भी परिवार का हिस्सा बनाकर ,इनके जीवन को सुधार सकते हैं इनके जो अधिकार हैं ,वे सब धूर्त और हवास में पागल पुरुषों ने छीन लिए हैं ,वो हम वापस लोटा सकते हैं ,

    जिनकी बहन या बेटी नहीं है ,वो इनको बहन -बेटी बना सकते हैं ,जिनकी शादी नहीं हुयी हो ,, वो इनको अपनी पत्नी बना सकते हैं ,समाज को बदलने के लिए करांति कि जरुरत होती है ,और क्रान्ति हमारे अलावा और कोई नहीं कर सकता

    9-मणि बाला - तो आप को खुद इस क्रांति कि पहल करना चाहेंगे .


    10-मुकेश विस्सर्वल इंसा- जी जरुर मणि बाला जी ,मैंने ना तो भासन दिया है ,और कुछ भी ऐसा लिखा है जो मैं ना क्र सकूँ ,मेरी सिस्टर्स तो पहले ही बहुत हैं ,
    मगर मैं ऐसी जगह से किसी लड़की को गोद लेने कि पूरी कोशिश करूंग.

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