शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

मानवता के सॉंग


माफ़ीनामों का मौसम है, मैं भी मांगू तू भी माँग
मैं भी पव्वा पी लेता हूँ तू भी खा ले थोड़ी भांग .


जब तक झूठ चलेगा अपना तब तक डटकर बोलेंगे
एक दिन तो गिर ही जानी है झूठ की पोली ऊँची डांग.


जनता को पहचान कहाँ है झूठे सच्चे लोगों की
तू भी थोड़ी नौटंकी कर, मैं भी देख रहा हूँ साँग .


जो सोता है जग भी जाए जागने वाला क्या जागे
चाहे मुर्गा खूब लगाये, रोज सवेरे ऊँची बाँग .


जान गयी दस बीस यहाँ दो चार धमाके होने से
ये तो होता ही रहता है टांग पे रखकर बैठो टाँग .


अपना माल खरा चोखा है,मोहर आई एस आई की
उसकी बातों पर मत जाना उसकी बातें बिलकुल राँग.


अपने जर्जर मापदंड से मापों मत गहराई को
मैं गायक हूँ गाता ही रहता हूँ मानवता के सॉंग.

  

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